मंगलवार, 28 अप्रैल 2009

होम तन हो गया ..


नीड़ निर्माङ में होम तन हो गया
कर्म की साध पर रोम बन हो गया
एक आंधी बसेरा उडा ले चली -
रक्त
आंसू बने मोम तन हो गया

पाप का हो शमन चाहते ही नही
कंस
का हो दमन चाहते ही नही
कुछ
सभाओ में दुस्शासनो ने की ठसक-
द्रोपती का तन वसन चाहते ही नही

सर्जनाये सुधर नही होती
वंदनाएं
अमर नही होती
आप आते मेरे सपनो में-
कल्पनाएँ मधुर नही होती

नम के तारो से बिखरी हुई जिंदगी
फूल कलियों सी महकी हुई जिंदगी
भर नजर देखकर मुङके वो चल दिए-
जाम खाली खनकती हुई जिंदगी

डॉक्टर
यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

1 टिप्पणी:

श्यामल सुमन ने कहा…

नीड़ निर्माङ में होम तन हो गया ।
कर्म की साध पर रोम बन हो गया।
एक आंधी बसेरा उडा ले चली -
रक्त आंसू बने मोम तन हो गया॥

यह "निर्माङ" समझ में नहीं आयी। क्या इसका तात्पर्य निर्माण से है? फिर भी रचना अच्छी लगी। बधाई। चलिए मैं भी कुछ त्वरित जोड़ने की कोशिश करता हूँ-

काम तन से करें होम तन न करें।
रचना पढ़ते ही व्योम मन हो गया।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

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