रविवार, 12 अप्रैल 2009

बहारें


बहारें जब गुजरती है ॥
कई चोटें उभरती है ॥

कहीं सरगम हंसी,खुशियाँ -
कहीं आहे निकलती है ॥

खुदा महफूज रख बेटी -
चिताएं रोज जलती है ॥

कलेजा मुहँ को आता है -
कहीं जुल्फें बिखरती है ॥

-----------------डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही '

1 टिप्पणी:

श्यामल सुमन ने कहा…

हो चाहत गर सभी पूरी।
तो रातें खुद सँवरती है।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

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