शुक्रवार, 1 मई 2009

फूल गायें तो समझो वसंत है ..


महकी हुई हवायें तो समझो वसंत है
कांटो में फूल गायें तो समझो वसंत है
कोयल की तान पर नए पातो का थिरकना-
भौंरा भी गुनगुनाये तो समझो वसंत है

तिरछी हो नैन कोर तो समझो वसंत है
अधरों पे प्यासी भोर तो समझो बसंत है
उलझी लटें सवाँरने का होश तक हो-
चितवन में हो चितचोर तो समझो वसंत है

बहकी हुई अदाएं तो समझो वसंत है
यौवन चुभन जगाये तो समझो वसंत है
प्रियतम को रात छोटी लगे प्रिय के साथ में-
जोगी भी बहक जाए तो समझो वसंत है

मिटा संसार है प्यार की टोलियाँ
बोलते है सभी कुछ नई बोलियाँ
आपके प्राण में काव्य सुरसरि बसी-
ये लगेगा तभी जब बजे तालियाँ

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

3 टिप्‍पणियां:

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

सब ओर आया बसंत है पर इधर तो भीषण गर्म है . अच्छी रचना बधाई .

बेनामी ने कहा…

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बेनामी ने कहा…

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