बुधवार, 6 मई 2009

राम वाले राम को ही छलते चले गए॥

लगता था राजनीति अन्धकार मुक्त होगी
न्याय नीति प्रेम की सुहानी भोर आएगी
बेडिया विदेशी दासता की खंड- खंड होंगी,
प्रभुता स्वदेशी की समग्र ओर छापेगी
देश में सभी समान ,वन्देमातरम गान
राम राज कल्पना अन्नत छोर पायेगी


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ध्वस्त मनसूबे सभी जनता के हो गए है;
होम जो किया तो हाथ जलते चले गए
वाह रे गरीब देश कैसा दुर्भाग्य तेरा,
पाँच लाख रस में निगलते चले गए
धर्म की जला के आग रोटी सेंक पेट भर ,
सत्ता कामिनी में खूब रमते चले गए
राम को तो वनवास दे दिया है कायरो ने,
राम वाले राम को ही छलते चले गए

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डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

jinhonne ram ko nahi chhoda ve aam ko kya chhodenge

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