बुधवार, 13 मई 2009

जहाँ जीव की माफ़ होती खताएं...


कभी कामना कामना को लजाये॥
चलो तृप्ति के द्वार डोली सजाएं॥

मुझे आइना जो दिखाने लगे वो-
कई सूरतो में दिखी लालसायें॥

तटों को बहाने चली धार मानी
मिटी रेत के गांव की भावनाएँ॥

उडे आंधियो के सहारे -सहारे -
मिटाती रही जिंदगी वासनाएं॥

उसी राह को खोज ले पस्त ''राही''
जहाँ जीव की माफ़ होती खताएं॥

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ''राही''

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