दुनिया में अगर दर्द का मौसम नही होता -
चेहरों पे तबस्सुम का ये आलम नही होता ।
क्या चीज मुहब्बत है ये हम कैसे समझते -
अश्को से अगर दामने दिल नम नही होता ।
इक वो है की माथे पे हमावत है शिकने-
इक मैं हूँ कि किसी हाल में वह हम नही होता।
-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही '
1 टिप्पणी:
dard ka mausam mubaraq
tabssum ka aalam mubaraq
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