''साम्प्रदायिकता तर्क के बजाये जोर जबरदस्ती और सामाजिक हिंसा पर आधारित होती है। ''
-- मुद्राराक्षस
महंत विनय दास:वर्तमान परिवेश में आप साम्प्रदायिकता को किस तरह परिभाषित करना चाहेंगे ?
मुद्राराक्षस:समाज में जब विचार प्रक्रिया में रोगाणु पैदा होते है तो वे साम्प्रदायिकता का रूप ले लेते है । जैसे मनुष्य बीमार होता है वैसे ही समाज में अस्वास्थ्य का लक्षण साम्प्रदायिकता होती है।
महंत विनयदास: समाज के लिए हिंदू साम्प्रदायिकता ज्यादा घातक है या मुस्लिम?
मुद्राराक्षस:किसी प्रकार की कोई भी साम्प्रदायिकता समाज के लिए घातक होती है । क्योंकि साम्प्रदायिकता तर्क के बजाय जोर जबरदस्ती और सामाजिक हिंसा पर आधारित होती है ।
महंत विनयदास : मुझे लगता है इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया दोनों ने मात्र मुस्लिम को ही आतंकवादी के तौर पर पेश किया है। क्या आप को नही लगता की इस सन्दर्भ में मीडिया वालो ने अपनी अति रंजित भूमिका निभाई है ?
मुद्राराक्षस:यह बात तो सच है। समाज की तरह मीडिया में भी अर्धशिक्षित और अल्प शिक्षित लोगो की बहुतायत है। समाज को लेकर उनके विचार गंभीर नही होते । फूटपाथी विचारधारा ही उन पर हावी होती है। यही वजह है की वे विवेक से काम लेते नही दिखते। मीडिया के अधिकांश लोग चूंकि हिंदू है। इसलिए वे एक हिंदू की तरह ही सोचते है और ये नतीजे निकाल लेते है की जो हिंदू नही है वह ग़लत है । इसी आधार पर उन्होंने मुसलमानों को सांप्रदायिक मान लिया है।
महंत विनयदास :आज यह आम धारणा बन कर रह गई है की हिन्दी पत्रकारिता करनी है तो हिंदू बनकर करना होगा,ठीकउसी तरह जिस तरह से उर्दू पत्रकारिता मुसलमान बनकर की जाती है । क्या आप को नही लगता की आज प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक दोनों मीडिया अपनी अतिवादी भूमिका के कारण जनता की दृष्टि में अविश्वसनीय होते जा रहे है ?
मुद्राराक्षस:अविश्वसनीयता की बात तो सही है आप की । लेकिन उनका महत्त्व इसलिए बना हुआ है की अर्ध्शिक्षा या कुशिक्षा बहुत प्रभावी भूमिका अदा करती है । गहरे विचार समाज में लोकप्रिय नही होते । यही स्तिथि मीडिया में काम करने वाले लोगो की भी होती है । यही वजह है की वे अधिकांशत: सतही रह जाते है। सामाजिक चेतना न तो उनमें होती है और नही वे सामाजिक चेतना दे पाते है।
महंत विनयदास:क्या आप को लगता है की समाज के शिक्षित होने के साथ समाज की यह तस्वीर बदल जायेगी?
मुद्रराक्षस:अर्ध शिक्षा किसी भी युग में समाप्त नही होती। इतिहास में किसी युग में समग्र शिक्षित समाज का उदाहरण नही मिलता है समाज अधिकांश:लोकप्रियता पर चलता है । अन्तर यही होता है की अगर समाज को चलने वाला महत्वपूर्ण विचारक है तो उसकी बात नीचे तक जाती है. आज समाज में जो लोग ऊपर है वे ख़ुद भी वैचारिक दृष्टि से अर्ध शिक्षित या कुशिक्षित है। इसलिए समाज में अर्धशिक्षित या कुशिक्षित ही लोकप्रिय है ,जिसकी आड़ में हमारे राजनेता और धर्म के ठेकेदार काजी पंडित अपना-अपना उल्लू सीधा करते है। समाज में आतंक पैदा करते है।
क्रमश:
आतंकवाद का सच में प्रकाशित
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