शुक्रवार, 22 मई 2009

सब अधूरे सपन रह गए


मीत संग संग चले इस तरह
भीड़ में हम अलग रह गए
सूनी कुटिया के आँगन में ज्यों
दीप जलते जले रह गए॥

गुम्बदों ने जो साये किए,
झोपडी झूम कर जल उठी
उनको महलो के साये मिले,
धूप में हम सभी रह गए॥

नत नयन से निखरती कला ,
हास अधरों पे छिटका हुआ।
नूपुरों की खनक सुन के भी
सब अधूरे सपन रह गए ॥

सिन्धु मंथन का उद्देश्य था
सबके अधरों को अमृत मिले।
जो कनोर रहे वास जी पा गए ॥

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

nat nayan se nikharti kala aur nupoor ki khanak ka koi jawab nahi sir.............maza aagaya

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