शनिवार, 2 मई 2009
बाजार बहुत है ..
भाषा न भाव छंद तो फ़नकार बहुत है।
तुलसी- कबीर- सूर के आधार बहुत है।
तेरी खुदी को तेरा खुदा मिल ही जाएगा-
इन्सान बिकना चाहे तो बाजार बहुत है।
आंसू की न होती न मुस्कान की भाषा।
आँखों की दिलो की नेह पहचान की भाषा।
हिन्दी नही उर्दू नही वरन इंतना समझिये -
घर दिल में बना ले वह इन्सान की भाषा ।
चाह होगी तो कोशिशे होंगी ।
प्यार होगा तो रंजिशें होगी ।
स्वार्थ होगा दोस्ती होगी-
प्राण होंगे तो बंदिशे होंगी ।
पुण्य है ,पाप है , कर्म फल है यही
जन्म है, मृत्यु है , गम विजय है यही
आदमी का बुढापा बताता हमे -
स्वर्ग भी है यही नर्क भी है यहीं।।
-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल' राही '
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