क्षिति से नभ का आलिंगन
है लता पुष्प की दूरी।
प्रतिकूल पवन के झोंके
इच्छा अनुकूल अधूरी ॥
चिंतन की पहली रेखा
मूरत पर जाकर टिकती ।
फिर रंग भरने में आशा
पगली सी फिरती रहती॥
चिर परिचित से लगते हैं
छवि चित्रित मानस पट पर।
अस्तित्व मिटाकर जैसे-
हिम होता तुंग शिखर पर॥
-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही '
2 टिप्पणियां:
dhnya ho raahiji,
aapke kavya me sadaiv jeevant chitra milte hain
samvedna saakshat aa kar khadi ho jaati hai
main aapko pranaam preshit karta hoon
badhai badhai badhai
bahut badhiya kaavy rachana . dhanyawad.
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