पावन उद्देश्य हमारा
करता है धुतिमय सविता।
चुप निशा उतर आती है,
गाती है मेरी कविता ॥
करूणानिधि की वत्सलता
विस्मृति का वरदान मिला है।
अनवरत तरंगित होती
स्मृति से अंकित समय शिला ॥
मेरी पीड़ा जन्मी है
प्रतिभा की प्रतिमा बनकर
कभी राम सीता बनकर
कभी कृष्ण मीरा बनकर॥
-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
1 टिप्पणी:
waah waah
waah waah
BADHAI>>>>>>
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