क्रंदन शेष रहा मन का ।
भ्रमता जीव ,नियति रूठी,
परिचय पाषाण ह्रदय का॥
लज्जित हो मेरी लघुता ,
कोई नरेश बन जाए।
अधखुली पलक पंकज में,
जगती का भेद छिपाए॥
आशा की ज्योति सजाये ,
है दीप शिखा जलने को।
लौ में आकर्षण संचित
है शलभ मौन जलने को॥
-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
2 टिप्पणियां:
mai pase se photographar hu,
mai man ka nahi sharir ka sondray bata sakata hu,
lajjit ho meri laghuta
man ka chitran bahut achche roop me nkiya gaya hai
बहुत सुन्दर रचना आभार.
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