मधु स्मृति के कानन वन में,
वेदना विकल रोती है।
स्नेह भरे दीपक लौ से
दुःख की कालिख घिरती है॥
परिचय की अभिलाषा में ,
लहरें तट से टकराती।
सुंदर होगा आलिंगन ,
आतुरता में बढ़ जाती॥
तुम थे तो केवल तुम थे,
या पथ था सूना-सूना।
या गंध सुमन का संगम ,
कलियों का तरपन सूना ॥
-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ''राही''
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