शनिवार, 27 जून 2009

मुंद जाते पहुनाई से


परिवर्तन नियम समर्पित ,
झुककर मिलना फिर जाना।
आंखों की बोली मिलती ,
तो संधि उलझते जाना॥

संध्या तो अपने रंग में,
अम्बर को ही रंग देती।
ब्रीङा की तेरी लाली,
निज में संचित कर लेती॥

अनगिनत प्रश्न करता हूँ,
अंतस की परछाई से।
निर्लिप्त नयन हंस-हंस कर,
मुंद जाते पहुनाई से ॥

-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

3 टिप्‍पणियां:

Urmi ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत रचना है!

Vinay ने कहा…

बहुत बढ़िया
---
प्रेम अंधा होता है - वैज्ञानिक शोध

बेनामी ने कहा…

Hi,

Find here one of the best effective and also unforgettable creation a specially in Hindi.

Thanks for sharing!!

Health Care Tips | Health Tips | Fitness Tips | Somnath

Share |