इलाहाबाद में हिन्दी चिट्ठाकारों का जमावडा हुआ। जिसमें हिन्दी चिट्ठाकारी से सम्बंधित पुस्तक का विमोचन हुआ । इस कार्यक्रम का आयोजन महात्मा गाँधी अन्तराष्ट्रीय विश्विद्यालय वर्धा व हिन्दुस्तान अकादमी इलाहाबाद ने किया था । हिन्दी चिट्ठाकारों ने इस आयोजन के बहाने सुप्रसिद्ध आलोचक डॉ. नामवर सिंह से लेकर हर तरह की व्यवस्था-अव्यस्था के सम्बन्ध में चिट्ठाकारी की है जिसमें व्यक्तिगत भड़ास से लेकर आरोप-प्रत्यारोप विगत इतिहास शामिल है । इस तरह से लगता यह है की किसी भी हिन्दी चिट्ठाकारों के आयोजन में शामिल होने वाला नही है । इस में शामिल होने का मतलब चिट्ठा जगत में अपने सम्बन्ध में तमाम आवश्यक और अनावश्यक विवाद को शामिल कर लेना है । इलाहाबाद की हिन्दुस्तान अकादमी व महात्मा गाँधी अन्तराष्ट्रीय विश्विद्यालय वर्धा ने यह आयोजन करके हिन्दी चिट्ठाजगत को सम्मान ही प्रदान किया है और इसमें प्रमुख चिट्ठाकार सर्वश्री रविरतलामी, मसिजिवी, अनूप, प्रियंकर, विनीत कुमार ने भी रचनात्मक समझ के साथ ही आयोजन में शिरकत की होगी। शायद उन्होंने भी इस आरोप प्रत्यारोप के बारे में सोचा न होगा. इस कार्य से हिन्दी चिट्ठाजगत को महत्व मिला है किंतु अंतरजाल पर अब आ रही अनावश्यक बहस हिन्दी चिट्ठाजगत की छुद्र मानसिकता को प्रर्दशित कर रही है । अच्छा यह होता कि अनावश्यक आरोप-प्रत्यारोप करने कि बजाये जैसा वह उचित समझते है । उसी तरीके का कार्यक्रम कर डालें । किसी रेखा को छोटा करने से अच्छा है कि उससे बड़ी रेखा खींच दी जाए इस सम्बन्ध में यह पंक्तियाँ महत्वपूर्ण है :-
'कैसे उनके रिश्तें है कैसे ये पड़ोसी हैं ,
भीगती हैं जब आँखें होंठ मुस्कुरातें है ।
क्या अजीब फितरत है इस जहाँ में बौनों की,
बढ़ तो ख़ुद नही सकते, कद मेरा घटाते है ॥
'कैसे उनके रिश्तें है कैसे ये पड़ोसी हैं ,
भीगती हैं जब आँखें होंठ मुस्कुरातें है ।
क्या अजीब फितरत है इस जहाँ में बौनों की,
बढ़ तो ख़ुद नही सकते, कद मेरा घटाते है ॥
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