न्याय विभाग में अकुशल पीठासीन अधिकारियों के कारण जनता को न्याय नहीं मिल पा रहा है । मिलावट के कानून के एक जजमेंट में अपर सत्र न्यायधीश ने माननीय उच्च न्यायलय के समक्ष यह स्वीकार किया कि उन्हें अंतर्गत धरा 272 आई.पी.सी के तहत कितनी सजा देनी चाहिए थी उसकी जानकारी नहीं थी । विधि के अनुसार यह माना जाता है कि कानून जैसे बन गया उसकी जानकारी भारतीय संघ से सम्बंधित सारे लोगो को हो गयी है । न्याय विभाग में गुण-दोष के आधार पर निर्णय नहीं हो पा रहे हैं इसलिए भी वाद लंबित रहते हैं । अकुशल पीठासीन अधिकारी अपने सारे अपराधिक वाद के जजमेंट में सजा सुना कर इतिश्री कर लेते हैं। सजा सुना देने से वाद का निर्णय नहीं हो जाता है और अब व्यवहार में अधिकांश पीठासीन अधिकारी अभियोजन पक्ष के एजेंट के रूप में कार्य करते हुए देखे जा सकते हैं. भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता तथा उससे सम्बंधित अन्य विधियों की अनदेखी होती है जनता पीठासीन अधिकारियो को बड़े सम्मान की निगाह से देखती है लेकिन उनके निर्णय जो आ रहे है उससे न्याय नहीं हो पा रहा है आज आवश्यकता इस बात की है की पीठासीन अधिकारियों को और बेहतर प्रशिक्षण और कानून की जानकारी दी जाए ।
सुमन
loksangharsha.blogspot.com
सुमन
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3 टिप्पणियां:
सच कहा आप ने जब न्याय धीश को ही नही पता तो क्या न्याय करेगा, हेरान हुं मै ऎसी खबरे पढ कर.
धन्यवाद इस सुंदर जानकारी के लिये
राम बचाएं।
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अपना ब्लॉग सबसे बढ़िया, बाकी चूल्हे-भाड़ में।
ब्लॉगिंग की ताकत को Science Reporter ने भी स्वीकारा।
एक अतिमहत्वपूर्ण मुद्दा उठाया गया है। शुभकामनाएं! क्या आपको ये काफी लगता है कि पीठासीन अधिकारियों को और बेहतर प्रशिक्षण और कानून की जानकारी दी जाने से समस्या का हल हो जायेगा? इस बात की जरुरत नहीं कि ये गिरावट कब से आई हमारी मशीनरी में और क्यूँ आई है? मेरे हिसाब से ये सब पता करना भी आवश्यक है और तभी इस समस्या का निवारण इसके मूल से हो सकेगा। धन्यवाद!
http://draashu.blogspot.com
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