भारतीय संविधान के अनुसार राज्य कर्मचारियों को अपनी मांगो के समर्थन में हड़ताल का अधिकार है वहीँ काम नहीं तो दाम नहीं के सिधान्त के अनुसार हड़ताल के समय कर्मचारियों की उस दिन का वेतन न देने का प्राविधान है । उत्तर प्रदेश के राज्य कर्मचारी शिक्षक अपनी मांगो के लिए लखनऊ में प्रदर्शन कर रहे थे जिसपर उत्तर प्रदेश सरकार के विशेष चहेते जिला मजिस्टे्ट अमित घोष ने लाठियां व गोलियां चलवायीं डी.आई.जी लखनऊ ने निहत्थी महिलाओं को लाठियों से पीटा । सरकारी कार्यालयों में घुस कर गैर हडताली कर्मचारियों को भी पीटा गया। कल दिनांक 22-01-2010 को राजधानी के प्रमुख सरकारी अस्पताल बलरामपुर हॉस्पिटल में पुलिस और पी.एस.सी, हड़ताल खत्म कराने के नाम पर मरीजों तथा कर्मचारियों के ऊपर अकारण लाठीचार्ज कर दिया अस्पताल के आसपास के राहगीरों को भी पीटा गया । रात में पुलिस अधिकारियों के नेतृत्व में कर्मचारी नेताओं के घरों में घुसकर उनके बीबी और बच्चो की राजाइयाँ डंडो से फेंक कर उनके पतियों का सुराग मालूम करने का प्रयास जारी रहा। कर्मचारियों की पत्नियां व बच्चे राज्य के नौकर नहीं हैं। महिलाओं व बच्चों को राज्य सरकार द्वारा प्रताड़ित करने का कोई औचित्य नहीं है। उनके साथ इस तरह की अभद्रता करना सीधे-सीधे राज्य की गुंडागर्दी है और यह भी एक गंभीर अपराध है ।
लखनऊ के जिला मजिस्टे्ट अमित घोष उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती को खुश करने के लिए कृषि विभाग के एक कर्मचारी को तीन थप्पड़ मारे । डी.आई.जी पुलिस व जिला मजिस्टे्ट अमित घोष पागलपन की सीमा से बढ़ कर आतंक का राज पैदा कर रहे हैं । राज्य द्वारा किये गए अपराधों के लिए कोई कानून नहीं है ?
लखनऊ के जिला मजिस्टे्ट अमित घोष उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती को खुश करने के लिए कृषि विभाग के एक कर्मचारी को तीन थप्पड़ मारे । डी.आई.जी पुलिस व जिला मजिस्टे्ट अमित घोष पागलपन की सीमा से बढ़ कर आतंक का राज पैदा कर रहे हैं । राज्य द्वारा किये गए अपराधों के लिए कोई कानून नहीं है ?
सुमन
loksangharsha.blogspot.com
3 टिप्पणियां:
"जिला मजिस्टे्ट अमित घोष उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती को खुश करने के लिए कृषि विभाग के एक कर्मचारी को तीन थप्पड़ मारे"
बहुत दुर्भाग्यपूर्ण घटना है जो चीख चीख कर कह रही है की ब्यूरोक्रेसी की रीढ़ उत्तर प्रदेश में टूट चुकी है और उच्च पदस्थ अधिकारी जिनसे व्यवस्था बनाने की अपेक्षा होती है वे भी अपनी सारी नैतिकता टाक पर रखकर सत्ता का चरण चुम्बन्न कर रहे हैं -एक विवेकहीन हो चुके अधिकारी से आप और क्या उम्मीद कर सकते हैं -मौजूदा क़ानून के तहत उस पर कार्यवाही होनी चाहिए -और कडा दंड मिला चाहिए तब जाकरआंदोलित कर्मचारियों का विश्वास इस व्यवस्था में पुन्रास्थापित हो पायेगा जो तार तार हो गया है ! आश्चर्य हैलाट साहब अभी भी कुर्सी पर विद्यमान हैं !
नागार्जुन याद आ गये:-
'तानाशाही तामझाम है लोकतन्त्र का नारा'
खुलेआम गुंडागर्दी है.
एक टिप्पणी भेजें