रविवार, 14 मार्च 2010

धर्म के नाम पर अधर्म के मार्ग पर समाज

धर्म के नाम पर आज परस्पर इंसानों में बढ़ती नफरत की दीवारों ने इंसानियत को दर किनार कर इंसान को हैवान बना डाला है। आज इंसान इंसान के खून का प्यासा है। धर्म के नाम पर अधर्मी काम किये जा रहे हैं। मासूम बच्चों की बलि चढ़ाई जाती है। धार्मिक द्वेष के आवेश में आकर मस्जिद व मंदिर तोड़े जाते हैं तथा धमाके कर के जनहानि पहुंचाई जाती है। धर्म के अनुयाइयों की यह हालत देखकर धर्म के ना मानने वाले सीना फुलाने का अवसर पाकर धार्मिक व्यक्तियों से अपने को बेहतर बताते हैं और अपने पंथ का प्रचार करते नहीं थकते।
पहले इंसान बना या धर्म। इस प्रश्न को विद्वानों के आगे रखा जाये तो अलग अलग विचार आना लाज़मी है क्योंकि हर विद्वान अपने अपने ढंग से अपना तर्क देगा। इस बहस में ना जाकर यदि सीधे यह बात की जाये कि कोई भी धर्म हो वह बना इंसानों के लिए ही है और उसका मुख्य लक्ष्य इंसानियत को बढ़ावा देना है।
परन्तु आज के संसार में सामाजिक परिवेश कि घर जा रहे हैं इंसान पर हैवानियत तारी है। इंसानियत को एक किनारे रख व दूसरे की मदद का सेवाभाव समाप्त हो चला है और सोर अधर्मी काम व धर्म की चादर ओढ़कर कर रहा है। इंसानों का धर्म के नाम पर शोषण एवं दोहन पाखण्डी साधू मोलवी और पादरी करते फिर रहे हैं उनकी अक्ल पर धार्मिक भावनाओं का ऐसा काला पर्दा डाल दिया जाता है कि वह बिल्कुल कुंद हो जाती है।
कोई देवबंदी के नाम पर तो कोई बरेलवी के नाम पर कोई अहले हदीस व 24 नं0 के नाम पर तो कोई शिया सुन्नी के नाम पर तो कोई, सनातन व असनातन के नाम पर कोई आशाराम बापू के नाम पर तो कोई साई के नाम पर तो कोई गायत्री पंथ के नाम पर तो कोई वारसी के नाम पर तो कोई रज्जाकी के नाम पर तो कोई निरंकारी व अकाली के नाम पर कोई कैथोलिक के नाम पर तो कोई प्रोटेस्टेस्ट के नाम पर अपनी धार्मिक विचारधारा की दुकान चला रहा है। मनुष्यों को उपदेश तो धर्म के नाम पर दिये जा रहे हैं परन्तु इंसानों के धार्मिक प्रतिद्वन्दता एवं विद्वेष फैलाने की तालीम दी जा रही है।
नतीजा आज हमारे सामने है। हजारों साल सलीबी जंगे हुई। राम रावण युद्ध हुआ। महाभारत के युद्ध की क्या चर्चा रही। जंगे ओहद, जंगे बद्र, की लडाईयां हुई। इन सभी जंगों के बारे में बताया जाता है कि या धर्म की रक्षा करने वालों व अधार्मियों के मध्य हुई परन्तु इंसान को हैवान बनने से कोई भी बचा न पाया बल्कि अब इंसानों की संख्या घटती जा रही है और हैवानों की बढ़ती जा रही है या यूं कहा जाये तो बेहतर रहेगा कि मनुष्य ने भौतिकता के क्षेत्र में तो उन्नति कर ली परन्तु इंसानियत का पतन हो गया।
पाठक यह पंक्तियाँ पढ़कर अवश्य सोच रहे होंगे कि लेखक या तो औगनोस्टिक है या थैइस्ट परन्तु मुझे इस बात पर गर्व है कि मैं पहले इंसान हूं और बाद में किसी धर्म का अनुयायी। गलती किसी भी धर्म की शिक्षा में नही है गलती उसके अनुयाइयों में है जो अपनी बदनीयती व स्वार्थी प्रवृत्ति के चलते ऐसे कर्म करते रहते हैं जो धर्म के लिए बदनामी का कारण बनते हैं। इतना ही नहीं धर्मालम्बियों ने अपनी स्वार्थी प्रवृत्ति के चलते धर्म के स्वरूप को ही बदल डाला है।

मोहम्मद तारिक खान

2 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

हजारों साल सलीबी जंगे हुई। राम रावण युद्ध हुआ। महाभारत के युद्ध की क्या चर्चा रही। जंगे ओहद, जंगे बद्र, की लडाईयां हुई। इन सभी जंगों के बारे में बताया जाता है कि या धर्म की रक्षा करने वालों व अधार्मियों के मध्य हुई परन्तु इंसान को हैवान बनने से कोई भी बचा न पाया बल्कि अब इंसानों की संख्या घटती जा रही है और हैवानों की बढ़ती जा रही है या यूं कहा जाये तो बेहतर रहेगा कि मनुष्य ने भौतिकता के क्षेत्र में तो उन्नति कर ली परन्तु इंसानियत का पतन हो गया।

bilkul sahi keh rahe ho sir ji.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बिल्कुल सही!
सटीक रहा यह आलेख!

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