यह खबर क्या आप ने पढ़ी कि बैकुंठ में मुर्दों को लाइन लगनी पड़ी ? बात यह है कि लखनऊ में भैसकुंड नामक शमशान घाट गोमती तट पर है, जहाँ पर दाह संस्कार अपग्रेड करके संपन्न होता है, इसी स्थल का नाम बाद में बैकुंठधाम कर दिया गया। यहाँ के महापात्रों ने मुर्दों को नोचना शुरू किया अर्थात क्रिया कर्म हेतु बड़ी रकमों की सौदेबाजी करने लगे, जिसके कारण क्रिया कर्म में विलम्ब होने लगे और इसी बीच कई-कई शवो को अपनी अंतिम यात्रा हेतु इसी प्रकार लाइन में शामिल होना पड़ा। जिस प्रकार ये बेचारे जिंदगी भर राशन की दुकान पर, कभी रेल की खिड़की आदि पर लाइन में धक्के-मुक्की में लगे रहते थे, दुखद यह है कि अब भी उन्हें इस कष्ट से राम का नाम लिए जाने से भी मुक्ति नहीं मिल सकी।
लखनऊ के महापौर ने इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप किया तथा ` 500 /- प्रति लाश निर्धारित कर दिया। अब महापात्रों ने तीन स्लैब आर्थिक स्तिथि के आधार पर बना कर पैसे में बढ़ोत्तरी की मांग रख दी है, मुर्दे 'वेटिंग' में चल रहे हैं।
महापात्रों से उन सभी को डरना चाहिए जिन्हें मरना है, इन्ही के मन्त्रों के सहारे मुर्दा बैकुंठ की राह पकड़ता है ताकि मुर्दे के सभी पाप, महापात्र अपने जतन से धुलवा दे, फिर यह कि जब मुर्दा अनाप- शनाप काम कर घर भर गया तो घर वालों को ज्यादा खर्च कर देने में क्यों कष्ट होता है ?
अब महापात्रों से ससम्मान यह पूछता है कि उन्होंने जो 'स्लैब सिस्टम' निर्धन वर्ग, माध्यम वर्ग एवं संपन्न वर्ग हेतु प्रस्तावित किया है, उसके निर्धारण एवं सत्यापन हेतु वे क्या उपाय करेंगे- इनकम टैक्स स्टेटमेंट की प्रतिलिपि लेंगे या आय प्रमाण पत्र ? झूठे प्रपत्रों पर ' एक्शन का क्या तरीका होगा ? '
अब दूसरी और देखिये तो कब्रों का मसला भी बड़ा टेढ़ा है, पैसा है तो जन्नत भी आसान है। पैसा चाहते जितना भी पड़े दरगाह, मस्जिद या इमामबाड़े में अच्छी जगह कब्र मिल जाए तो क्या कहना जिंदगी भर अधार्मिक रहे, किसी बुरे काम से नहीं डरे लेकिन मरने के बाद 'शोर्ट कट' से जन्नत जाने का पूरा इंतजाम वारिसों को समझा गए थे। मरने के बाद भी 'स्टेटस सिम्बल' के उसी प्रकार दीवाने हैं, जैसे कि जीवन में थे।
सब से बुरी स्तिथि तो हम जैसे गरीबों की होती है, न दुनिया में चैन न बाद में कोई उम्मीद। कभी घबराते हैं तो मौत को याद करते हैं- मगर फिर ये शेर पढ़ कर निराश हो जाते हैं-
लखनऊ के महापौर ने इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप किया तथा `
महापात्रों से उन सभी को डरना चाहिए जिन्हें मरना है, इन्ही के मन्त्रों के सहारे मुर्दा बैकुंठ की राह पकड़ता है ताकि मुर्दे के सभी पाप, महापात्र अपने जतन से धुलवा दे, फिर यह कि जब मुर्दा अनाप- शनाप काम कर घर भर गया तो घर वालों को ज्यादा खर्च कर देने में क्यों कष्ट होता है ?
अब महापात्रों से ससम्मान यह पूछता है कि उन्होंने जो 'स्लैब सिस्टम' निर्धन वर्ग, माध्यम वर्ग एवं संपन्न वर्ग हेतु प्रस्तावित किया है, उसके निर्धारण एवं सत्यापन हेतु वे क्या उपाय करेंगे- इनकम टैक्स स्टेटमेंट की प्रतिलिपि लेंगे या आय प्रमाण पत्र ? झूठे प्रपत्रों पर ' एक्शन का क्या तरीका होगा ? '
अब दूसरी और देखिये तो कब्रों का मसला भी बड़ा टेढ़ा है, पैसा है तो जन्नत भी आसान है। पैसा चाहते जितना भी पड़े दरगाह, मस्जिद या इमामबाड़े में अच्छी जगह कब्र मिल जाए तो क्या कहना जिंदगी भर अधार्मिक रहे, किसी बुरे काम से नहीं डरे लेकिन मरने के बाद 'शोर्ट कट' से जन्नत जाने का पूरा इंतजाम वारिसों को समझा गए थे। मरने के बाद भी 'स्टेटस सिम्बल' के उसी प्रकार दीवाने हैं, जैसे कि जीवन में थे।
सब से बुरी स्तिथि तो हम जैसे गरीबों की होती है, न दुनिया में चैन न बाद में कोई उम्मीद। कभी घबराते हैं तो मौत को याद करते हैं- मगर फिर ये शेर पढ़ कर निराश हो जाते हैं-
अब तो घबरा के यह कहते हैं कि मर जायेंगे,
मर के भी चैन न पाया तो किधर जायेंगे॥
मर के भी चैन न पाया तो किधर जायेंगे॥
-डॉक्टर एस.एम हैदर
8 टिप्पणियां:
हाय हाय ये मजबूरी! मरने के भी इतने मसाइल!! भगवान बचाए!
मरनो भलो बिदेस में, जहाँ न अपनो कोय
माटी खाए जानवरा महा महोच्छव होए!
सही फर्माया...रुपयों के बल पर जीवन में हर जगह शार्टकट है...मरने के बाद भी पैसा बोलता है.....
लौट के बुद्धू अपने घर आयेंगे!
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धनयवाद ... apnivani.com टीम.
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Very nice, sumanji. :)
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
...prabhaavashaalee post !!!
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