बुधवार, 11 अगस्त 2010

उत्तर प्रदेश पुलिस की विवेचना अभियुक्त के मिलने के बाद प्रारंभ होती है

उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की हालत बद से बदतर होती जा रही हैकिसी भी पुलिस स्टेशन पर जब कोई प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज होती है तो सामान्यत: विवेचना करने के लिए एक पुलिस उपनिरीक्षक को उस वाद का विवेचना अधिकारी नियुक्त किया जाता हैउसका प्रथम कर्तव्य यह होता है कि विवेचना मिलते ही रिपोर्ट दर्ज करने करने वाले हेड मोहर्रिर के बयान को दर्ज करने से शुरू करना चाहिए उसके बाद वादी मुकदमा का बयान दर्ज करने के बाद घटना स्थल का निरीक्षण करना चाहिए और उसके पश्चात साक्ष्य सबूत मिलने पर विवेचना समाप्त करते हुए आरोप पत्र सम्बंधित न्यायलय में दाखिल करना चाहिएयदि साक्ष्य सबूत नहीं हैं तो फ़ाइनल रिपोर्ट न्यायलय के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए यहीं पर जमानत की भी व्यवस्था शुरू हो जाती हैयदि अपराध जमानतीय है तो अभियुक्त को जमानत सहित बंद पत्र के साथ छोड़ देना चाहिए यदि अजमानतीय है तो 24 घंटो के अन्दर ही उस अभियुक्त को न्यायलय के समक्ष प्रस्तुत कर देना चाहिए लेकिन अब विवेचना अधिकारी विवेचना मिलते ही नामजद अभियुक्तों से मिलकर सब से पहले मिलकर तय तोड़ करते हैं और गंभीर अपराधों में उसे हल्का करने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है और समर्थ अभियुक्तों के समक्ष विवेचना अधिकारी तथा सम्बंधित पर्यवेक्षण अधिकारीगण तय तोड़ करके फ़ाइनल रिपोर्ट लगाने का काम कर रहे है
बाराबंकी में फौजदारी के अधिवक्ता श्री अरविन्द कुमार वर्मा के साथ लूटपाट हुई थी जिसमें अंतर्गत धारा 395, 397 आई.पी.सी का वाद दर्ज हुआ थाविवेचन अधिकारी को विवेचना मिलते ही उसने अभियुक्तगणों से मिलते ही सबसे पहले उसने अंतर्गत धारा 395, 397 हटा कर अंतर्गत धारा 307 कर दिया और फिर धीरे-धीरे उसकी विवेचना अभियुक्त को लाभ पहुँचाने के लिए ही हो रही है
हर गंभीर अपराध में अपराधी को विवेचना अधिकारी से लेकर पर्यवेक्षण अधिकारियों तक अभियुक्त को ही लाभ पहुँचाने का कार्य करते हैं और अब तो उत्तर प्रदेश सरकार ने समर्थ बड़े अपराधियों को अग्रिम जमानत की व्यवस्था भी कर दी है

सुमन
लो क सं घ र्ष !

2 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला ने कहा…

ाच्छी जानकारी है धन्यवाद।

हास्यफुहार ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति।

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