स्वतंत्रता के पश्चात भी हमारी पुलिस व्यवस्था व न्याय व्यवस्था में सुधार होने के बजाए कितनी गिरावट आई है उसका तजा तरीन उदहारण बाराबंकी जनपद में कृष्णा नाम की युवती की हत्या में आठ लोगों को कारागार में जाकर अपनी जमानत करानी पड़ी थी। मृतका कृष्णा के मामले की विवेचना पांच पुलिस उपनिरीक्षकों ने की थी। पुलिस के जिम्मेदार अधिकारियों के दिशा निर्देश में हत्या जैसे गंभीर मामलों में भी गैर जिम्मेदार तरीके से विवेचना हुई। आरोप पत्र मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के यहाँ दाखिल हुआ जिस पर उन्होंने संज्ञान लेकर वाद को सत्र न्यायलय सुनवाई हेतु प्रेषित कर दिया। सत्र न्यायधीश महोदय ने उक्त वाद को अतिरिक्त सत्र न्यायधीश कोर्ट नंबर 8 में सुनवाई हेतु भेजा किन्तु अचानक 21 जून 2010 को मृतका कृष्णा न्यायलय के समक्ष उपस्थित हुई और अपने को जीवित होने का प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया। इस उदहारण से हम आप अंदाजा लगा सकते हैं कि हमारी व्यवस्थाएं कितनी शर्मनाक हालत में पहुँच चुकी हैं। जिसकी हत्या नहीं हुई है उसकी हत्या के आरोप में लोग जेल जा रहे हैं। देश भर में हत्या जैसे गंभीर मामलों में विवेचना थानों में बैठकर ही लिख दी जाती है। यह भी पता लागने की कोशिश नहीं की जाती है कि जिस लाश को वह जिस व्यक्ति की कह रहे हैं उसकी है या नहीं।
पुलिस उपनिरीक्षकों और उनके पर्यवेक्षण अधिकारीयों को हमारी न्यायिक व्यवस्था दण्डित करने में असमर्थ है क्योंकि हम सब अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए तरह-तरह के बहाने खोज लेते हैं।
पुलिस उपनिरीक्षकों और उनके पर्यवेक्षण अधिकारीयों को हमारी न्यायिक व्यवस्था दण्डित करने में असमर्थ है क्योंकि हम सब अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए तरह-तरह के बहाने खोज लेते हैं।
दूसरी तरफ देश में राष्ट्रमंडल खेल होने वाले हैं और अपने पैसे खर्च कर के अपनी गुलामी के दिनों की याद ताजा कर रहे हैं तो वहीँ 2012 के ओलम्पिक खेलों में जुटे ब्रिटेन ने अपने नागरिकों को सलाह दी है कि वह न भारतीयों को छुवें न करीब जायें। अब आप ही सोचिये कि हमारी मानसिकताएं क्या हैं।
सुमन
लो क सं घ र्ष !
10 टिप्पणियां:
इस देश के हर भाग में अव्यवस्था का बोलबाला है। बात केवल न्याय व्यवस्था, पुलिस और घोटालों का ही नहीं। ऐसा कोई क्षेत्र बचा ही नहीं जहां भ्रष्टाचार, निकम्मेपन और तानाशाही रूपी संक्रमण ना हो। दुख इस बात का है कि इसके पालक पोषक और संरक्षक भी इस देश के हम आप जैसे लोग ही है। शुरुआत कहां से होगी, इसका इंतजार करने से बेहतर है जो जहां है वहीं से शुरुआत करें, तभी इसे बचाया जा सकता है।
शर्मनाक है ऐसी आजादी ,सत्य और न्याय के लिए तो कोई भी कुछ नहीं कर रहा है ...
sumanji,
bahut hi sharmnaak hai, aaj ajaadi ka matlab poori tarah badal gaya hai
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
श्र्म आती है ऐसी कारगुजारी देख कर आभार इस जानकारी के लिये।
आपके विचार से पूर्णत: सहमत हूं ! पुलिस के ऐसे फर्जी कारनामों के एक यही नहीं असंख्य उदाहरण हैं ! हमारे नेता भ्रष्ट हैं, प्रशासन में बैठे अधिकारी अकर्मण्य हैं और जनता नादान और गुमराह है ऐसे में हम किस उज्ज्वल भविष्य का सपना देख रहे हैं हम खुद नहीं जानते ! बहुत विचारोत्तेजक आलेख है यह ! बधाई !
hmm ...
सार्थक पोस्ट विचार-मंथन का आमंत्रण देती.
समय हो तो अवश्य पढ़ें उद्व्वेलित कर देने वाली एक रचना
विभाजन की ६३ वीं बरसी पर आर्तनाद :कलश से यूँ गुज़रकर जब अज़ान हैं पुकारती http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_12.html
shahroz
bahut achha likha hai
... सार्थक अभिव्यक्ति !!!
यह एक कडवा सच है जिसका खुलासा आपने किया है ।
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