शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

कोई राधा, कोई मरयम न अब जलने पाए

महफ़िल जश्न है हर शख्स यहाँ शादाँ है
मुफलिसी सह के भी किस्मत पे अपनी नाजाँ है
अब गुलामी नहीं अंग्रेज की, आजाद हैं हम
हम हैं मसरूर सभी और यहाँ शाद हैं हम
हुस्न इस देश का अंग्रेजो ने मिटा डाला
खिरमने मेल मुहब्बत को भी जला डाला
चलो कि अज्म करें और इक जसारत हम
मिटा दें मिल के सभी नफरतों अदावत हम
अब कभी मुंबई, गुजरात होने पाए
अब कभी जुल्म की बरसात होने पाए
की चिंगारिए रंजिश को बुझा डालें हम
मुफलिसी बेकसी आतंक मिटा डालें हम
कोई राधा , कोई मरयम, अब जलने पाए
जुल्म की कोख में आतंक पलने पाए
गोरे अय्यारों की हम पॉलिसी मिटा डालें
एक आदर्श वतन अपना हम बना डालें

डॉक्टर मोहमद तारिक कासमी
उन्नाव जिला कारागार से
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