धर्म से सम्बन्ध त्योहार होली, ईद या क्रिसमस आदि हों अथवा राष्ट्रीय पर्व हों, सभी के मानने का मूल उद्देश्य कहीं पीछे छूट गया है, आडम्बर एवँ ढोंग का पक्ष अब सर्वोपर है।
स्वतंत्रता दिवस आया भी गया भी, ऐसा लगा कि बस लकीर पीट रहे हैं। प्रत्येक स्थान पर वही भाषण-बाजी, जो बहुत समय से होती आ रही है। रिश्वतखोर एवँ भ्रष्ट अफ़सर भी और मातहत भी, नेता भी और जनता भी, एक पक्ष, भाषण देता है, दूसरा सुनता है, अफ़सर नेता मंत्री कड़े अन्दाज़ में श्रोताओं को ईमानदारी की सीख देते हैं, श्रोता मन ही मन मुस्काता है। दूसरे दिन फिर दोनो पक्ष एक दूसरे से रिश्वत का हिसाब किताब करते हैं, बजट को ‘यूटीलाइज़‘ करने के तौर तरीक़ों पर विचार-मर्श करते हैं।
संविधान, नियम, क़ायदे चाहे जितने अच्छे बन जाए उनका कुछ भी प्रभाव उस समय तक नहीं पड़ सकता जब तक देश के नागरिक ज़िम्मेदार नहीं बनते। शिक्षा, टेक्नालाजी आदि से भौतिक सुख तो हासिल हो सकते हैं परन्तु नैतिक परिवर्तन या व्यवस्था परिवर्तन न तो हो सकते हैं, न हो रहे हैं।
इस संबंध में प्रथम राष्ट्रपति डा0 राजेन्द्र प्रसाद के एक पत्र दिनाँक 13 जनवरी 1950 के कुछ अंशों पर ध्यान दीजिए, जो उन्हों नें संविधान सभा को प्रेषित किया गया था। वे कहते हैं- ‘‘कोई भी संविधान चाहे वह कितना ही सुन्दर, सुव्यवस्थित और सुदृढ़ क्यों न बनाया गया हो, यदि उसको चलाने वाले सच्चे, निस्प्रह, निस्वीथ देश और राष्ट्र के सेवक न हों तो संविधान कुछ भी नहीं कर सकता। संविधान निर्जीव वस्तु है। उस में मनुष्य जान डालता है, और अगर मनुष्य खोटा हो तो अच्छे संविधान को भी बुरे काम में लगा सकता है। और यदि मनुष्य अच्छा है तो आर्दश संविधान न होने पर भी वह सेवा का काम उस से निकाल सकता है।‘‘
अब जिन लोेगों के हाथ में शासन, प्रशासन एवं प्रबंघन की लगाम है और जिनके कृत्यों का प्रभाव दूर-दूर तक पहुँचता है, उनकी क्या स्थिति इस समय चल रही है, उसका अन्दाज़ा कार्मिक मंत्रालय की एक ताज़ा सर्वेक्षण रिर्पोट से कीजिए, जो हैदराबाद की संस्था ‘सेंटर फार गुड गवर्नेंस‘ के सहयोग से आई है। इस सर्वेक्षण के तहत आई0ए0एस0, आई0एफ़0एस0, आई0पी0एस0, आई0आर0एस0 और छह अन्य केन्द्रीय के 4808 अधिकारियों से सवाल पूछे गए जो गुप्त रक्खे गए हैं।
अस्सी फीसदी अधिकारी इस बात से सहमत थे कि राजनेता भ्रष्टाचार में इस कारण सफ़ल हो जाते हैं क्यों कि सिविल सेवा के अधिकारी उनका साथ देने को हमेशा तत्पर रहते हैं। यह भी स्वीकार किया कि अक्सर ये दंड पाने से बच जाते हैं। इन्हीं को सब से अच्छी पोस्टिंग मिलती है। ईमानदार अधिकारियों को निराधार शिकायतों के बूते परेशान किया जाता है। डा0 राजेन्द्र प्रसाद की भाषा मंे यही ‘खोटे‘ लोग हैं।
अब तसवीर का दूसरा रूख भी देखिए, इस रेगिस्तान में कहीं-कहीं फूल भी खिले हुए हैं। अभी-अभी एक पूर्व विधायक एवँ पूर्व मंत्री लमेहटा जिला फतेहपुर के एक साधारण किसान परिवार में जन्मे श्री जागेश्वर प्रसाद के सरल जीवन का हाल भावे के सम्पर्क में आए और तीस हज़ार एकड़ भूमि एकत्र करके गरीबों को दान करा दी। ये 20 साल विधायक एवँ 5 वर्ष राम नरेश यादव के मंत्री मण्डल में स्वास्थ्य राज्य मंत्री रहे। इनकी सादगी का हाल ये है कि शहर के देवीगंज मोहल्ले की तंग गली में एक बग़ैर प्लास्टर की कोठरी में रहते हैं, इनके पास सायकिल तक नहीं है। दो धोती कुर्ते, एक जोड़ी जूता कुछ और ज़रूरी सामान और कागज़ पत्तर इनकी ग्रहस्थी हैं। अस्सी की उम्र में भी जन सेवा का जज़्बर है, कहीं किसी का काम हो तुरन्त चल पड़ते हैं। इस उम्र में भी खेती किसानी का काम खुद करते है। उनका यह ढ़ंग मजबूरी वश नहीं स्वप्रेरित है, जिस से वे संतुष्ट हैं।
काश ऐसे लोग होते तो देश की अनेक समस्यायें ख़ुद सख़ुद हल हो जातीं, इस त्यागी को मैं सलाम करता हूँ, जो इस भ्रष्टाचार के माहौल में ज़रा भी विचलित नहीं हुए-
हवा चल रही है, दिया जल रहा हैI
डा0 एस0एम0 हैदर
स्वतंत्रता दिवस आया भी गया भी, ऐसा लगा कि बस लकीर पीट रहे हैं। प्रत्येक स्थान पर वही भाषण-बाजी, जो बहुत समय से होती आ रही है। रिश्वतखोर एवँ भ्रष्ट अफ़सर भी और मातहत भी, नेता भी और जनता भी, एक पक्ष, भाषण देता है, दूसरा सुनता है, अफ़सर नेता मंत्री कड़े अन्दाज़ में श्रोताओं को ईमानदारी की सीख देते हैं, श्रोता मन ही मन मुस्काता है। दूसरे दिन फिर दोनो पक्ष एक दूसरे से रिश्वत का हिसाब किताब करते हैं, बजट को ‘यूटीलाइज़‘ करने के तौर तरीक़ों पर विचार-मर्श करते हैं।
संविधान, नियम, क़ायदे चाहे जितने अच्छे बन जाए उनका कुछ भी प्रभाव उस समय तक नहीं पड़ सकता जब तक देश के नागरिक ज़िम्मेदार नहीं बनते। शिक्षा, टेक्नालाजी आदि से भौतिक सुख तो हासिल हो सकते हैं परन्तु नैतिक परिवर्तन या व्यवस्था परिवर्तन न तो हो सकते हैं, न हो रहे हैं।
इस संबंध में प्रथम राष्ट्रपति डा0 राजेन्द्र प्रसाद के एक पत्र दिनाँक 13 जनवरी 1950 के कुछ अंशों पर ध्यान दीजिए, जो उन्हों नें संविधान सभा को प्रेषित किया गया था। वे कहते हैं- ‘‘कोई भी संविधान चाहे वह कितना ही सुन्दर, सुव्यवस्थित और सुदृढ़ क्यों न बनाया गया हो, यदि उसको चलाने वाले सच्चे, निस्प्रह, निस्वीथ देश और राष्ट्र के सेवक न हों तो संविधान कुछ भी नहीं कर सकता। संविधान निर्जीव वस्तु है। उस में मनुष्य जान डालता है, और अगर मनुष्य खोटा हो तो अच्छे संविधान को भी बुरे काम में लगा सकता है। और यदि मनुष्य अच्छा है तो आर्दश संविधान न होने पर भी वह सेवा का काम उस से निकाल सकता है।‘‘
अब जिन लोेगों के हाथ में शासन, प्रशासन एवं प्रबंघन की लगाम है और जिनके कृत्यों का प्रभाव दूर-दूर तक पहुँचता है, उनकी क्या स्थिति इस समय चल रही है, उसका अन्दाज़ा कार्मिक मंत्रालय की एक ताज़ा सर्वेक्षण रिर्पोट से कीजिए, जो हैदराबाद की संस्था ‘सेंटर फार गुड गवर्नेंस‘ के सहयोग से आई है। इस सर्वेक्षण के तहत आई0ए0एस0, आई0एफ़0एस0, आई0पी0एस0, आई0आर0एस0 और छह अन्य केन्द्रीय के 4808 अधिकारियों से सवाल पूछे गए जो गुप्त रक्खे गए हैं।
अस्सी फीसदी अधिकारी इस बात से सहमत थे कि राजनेता भ्रष्टाचार में इस कारण सफ़ल हो जाते हैं क्यों कि सिविल सेवा के अधिकारी उनका साथ देने को हमेशा तत्पर रहते हैं। यह भी स्वीकार किया कि अक्सर ये दंड पाने से बच जाते हैं। इन्हीं को सब से अच्छी पोस्टिंग मिलती है। ईमानदार अधिकारियों को निराधार शिकायतों के बूते परेशान किया जाता है। डा0 राजेन्द्र प्रसाद की भाषा मंे यही ‘खोटे‘ लोग हैं।
अब तसवीर का दूसरा रूख भी देखिए, इस रेगिस्तान में कहीं-कहीं फूल भी खिले हुए हैं। अभी-अभी एक पूर्व विधायक एवँ पूर्व मंत्री लमेहटा जिला फतेहपुर के एक साधारण किसान परिवार में जन्मे श्री जागेश्वर प्रसाद के सरल जीवन का हाल भावे के सम्पर्क में आए और तीस हज़ार एकड़ भूमि एकत्र करके गरीबों को दान करा दी। ये 20 साल विधायक एवँ 5 वर्ष राम नरेश यादव के मंत्री मण्डल में स्वास्थ्य राज्य मंत्री रहे। इनकी सादगी का हाल ये है कि शहर के देवीगंज मोहल्ले की तंग गली में एक बग़ैर प्लास्टर की कोठरी में रहते हैं, इनके पास सायकिल तक नहीं है। दो धोती कुर्ते, एक जोड़ी जूता कुछ और ज़रूरी सामान और कागज़ पत्तर इनकी ग्रहस्थी हैं। अस्सी की उम्र में भी जन सेवा का जज़्बर है, कहीं किसी का काम हो तुरन्त चल पड़ते हैं। इस उम्र में भी खेती किसानी का काम खुद करते है। उनका यह ढ़ंग मजबूरी वश नहीं स्वप्रेरित है, जिस से वे संतुष्ट हैं।
काश ऐसे लोग होते तो देश की अनेक समस्यायें ख़ुद सख़ुद हल हो जातीं, इस त्यागी को मैं सलाम करता हूँ, जो इस भ्रष्टाचार के माहौल में ज़रा भी विचलित नहीं हुए-
हवा चल रही है, दिया जल रहा हैI
डा0 एस0एम0 हैदर
3 टिप्पणियां:
NICE.
इक्के दुक्के प्रयास भी सराहनीय अवश्य हैं, किन्तु इन इक्के दुक्के प्रयासों से परिवर्तन नहीं आ सकता.
बहुत बढ़िया प्रस्तुति
हमारे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
मालीगांव
साया
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