सोमवार, 27 सितंबर 2010

दलित उत्पीड़न-झज्जर, गोहाना और अब मिर्चपुर भाग 1

उत्पीड़न और मानवाधिकार हनन के मामले में उत्तर भारत के राज्यों में होड़ सी लगी हुई है। मानवाधिकार हनन के मामले में उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर है, तो दलितों के सामूहिक उत्पीड़न के मामलों में हरियाणा सबसे आगे खड़ा दिखाई देता है। हालाँकि हरियाणा में दलितों के सामूहिक उत्पीड़न की घटनाओं का इतिहास पुराना है। जो विकास के तमाम पैमाने छूने के बावजूद कहीं से भी धीमा नहीं पड़ा है। हाल में सामूहिक उत्पीड़न की घटना 21 अप्रैल को हिसार के नारनौंद के समीपवर्ती गाँव मिर्चपुर में सामने आईं। जहाँ वाल्मीकि समुदाय के घरों को जाट समुदाय के दबंगों ने मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दी। जिसमें 12 वीं की छात्रा सहित और उसके पिता की मौत हो गई।
गौरतलब है कि यह घटना 21वीं सदी के भारत के उस राज्य में हुई है, जिसने विकास के कथित पैमानों को छुआ है। जिसने हरितक्रांति के जरिए देश की उत्पादकता बढ़ाने में हिस्सेदारी निभाई है। लेकिन अफसोस की बात है कि हरित क्रांति जातीय दुराग्रह को तोड़ने की क्रांति नहीं कर पाई है। आर्थिक विकास के पैमाने में हरियाणा दूसरे राज्यों के मुकाबले ऊपरी क्रम में आता है, बावजूद इसके सामाजिक अपराधों के मामले में कहीं भी कोई सकारात्मक बदलाव नजर नहीं आता है। चाहे मामला खाप पंचायतों के जरिए गैर-तार्किक और मध्ययुगीन फरमान सुनाने का हो या दलितों के साथ जातीय दुराग्रह का, हरियाणा की हालत चिंताजनक है। अगर हरियाणा में दलित उत्पीडन की बड़ी घटनाओं पर गौर करें तो मिर्चपुर में दलित बस्ती पर सामूहिक हमलाकर घर जलाने की घटना कोई अकेली घटना नहीं है। बल्कि महज बीते दस साल का रिकॉर्ड देखें तो 21 वीं सदी के पहले दशक में ही इतनी घटनाएँ सामने आईं हैं, कि लोकतंत्र और सामाजिक न्याय दोनों शर्मसार हो जाएँ। 15 अक्टूबर साल 2002 में झज्जर जिले के दुलीना में पाँच दलितों को मार दिया गया। 15 फरवरी 2003 को कैथल जिले के हरसौला गाँव में 50 दलित घरों को आग के हवाले कर दिया गया। 31 अगस्त 2005 को गोहाना में 14 दलित घरों को आग लगा दी गई। 12 मार्च 2007 को करनाल के सालवाल गाँव में 16 दलित परिवारों को निशाना बनाया गया और उनके घरों को आग लगा दी गई। इसके अलावा रोहतक में राकेश लारा नामक दलित युवक की निर्मम हत्या हरियाणा में दलित उत्पीड़न की बड़ी-बड़ी घटनाएँ हैं। जबकि दलित उत्पीड़न की सैकड़ों वारदातें जो रोज-ब-रोज सामने आती हैं, उनकी गणना ही मुश्किल है।
हरियाणा के मिर्चपुर की घटना के पीछे के कारणों पर गौर करें तो जातीय वैमनस्य ही सबसे बड़ा कारण रहा। पालतू कुतिया को ईंट मारने जैसे मामूली विवाद को लेकर जाट समुदाय के दबंगों ने बाल्मीकि गाँव को घेर कर उसमें आग लगा दी। जिसमें 25 घर खाक हो गए और दो लोगों की जानें चली गईं। दबंगई ने मानवता के सामने सवाल पैदा कर दिया। शारीरिक रूप से अक्षम सुमन 12वीं की छात्रा थी। आग में घिर गई और उसकी जलने से दर्दनाक मौत हो गई। उसकी जली हुई तिपहिया साइकिल दबंगों के अपराध की भीषणता को उजागर करने के लिए काफी है। सुमन को बचाने गए उसके पिता ताराचंद भी आग की चपेट में आ गए। जिनकी अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई। हालाँकि अधिकारी इस बारे में अलग बयान देते हैं। उनका कहना है कि मामला नहर में नहाने को लेकर शुरू हुआ, जिसे बाद में कुछ असामाजिक तत्वों ने तूल दे दिया। हिसार जिला प्रशासन उत्पीड़न की इस जघन्य घटना को असामाजिक तत्वों के सिर मढ़ने की कोशिश कर रहा है। जबकि गाँव को सामूहिक रूप से निशाना बनाया गया। लेकिन पूरे घटनाक्रम में और उसके बाद की कार्रवाइयों में प्रशासन का चरित्र संदिग्ध बना रहा। पीड़ित दलित परिवारों ने प्रशासन पर दबंगों का साथ देने का आरोप लगाया। हालाँकि पूरी घटना को मुआवजे से रफा-दफा करने की राजनीति भी की गई। संसदीय सचिव जयबीर वाल्मीकि ने मृतकों के परिजनों में से एक-एक को सरकारी नौकरी और सभी पीड़ित परिवारों को दो-दो क्विंटल गेहँू देने की घोषणा की। जबकि पीड़ित दलित परिवारों ने अपनी लड़ाई को विस्तार दे दिया था। परिवारों ने लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज कराने की माँग को लेकर सुमन और ताराचंद के शवों को रखकर प्रदर्शन किया। इस माँग से बन रहे चैतरफा दबाव में पुलिस ने नारनौंद के थाना प्रभारी तथा हाँसी के तहसीलदार के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया। साथ में नारनौंद के थाना प्रभारी विनोद काजल को निलंबित कर दिया गया। थाना प्रभारी तथा तहसीलदार के खिलाफ दर्ज किए गए मुकदमे की एफ0आई0आर0 की प्रति की माँग को लेकर पुलिस तथा पीड़ितों के बीच झड़प भी हुई। पीड़ित परिवारों के दबाव के चलते दोनों को गिरफ्तार भी किया गया।
प्रशासन की लापरवाही और पक्षपातपूर्ण रवैय्ये की पोल खुलकर उस समय फिर सामने आ गई, जब आगजनी, तोड़फोड़ और लूटपाट का जायजा लेने के लिए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष बूटा सिंह और मानवाधिकार आयोग की टीम मिर्चपुर गाँव के दौरे पर पहुँची। जब मानवाधिकार आयोग की टीम गाँव में मौजूद थी, तभी दबंगों के समर्थन में एक महापंचायत वहाँ पर चल रही थी। इस महापंचायत पर एतराज जताते हुए मानवाधिकार की टीम ने जिलाधिकारी ओ0पी0 श्योराण से जवाब तलब किया तो जिलाधिकारी का जवाब भी कम आश्चर्य प्रकट करने वाला नहीं था। उन्होंने टीम को बताया कि महापंचायत केवल इसी बात पर हो रही है कि पुलिस किसी को गिरफ्तार नहीं करे, बल्कि महापंचायत के लोग आरोपियों को पुलिस के यहाँ हाजिर कर देंगे। मिर्चपुर का दौरा करने के बाद राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष बूटा सिंह ने हिसार जिला प्रशासन के कामकाज से असंतोष जाहिर किया। उन्होंने कहा कि घटना के समय नारनौंद के थाना प्रभारी और तहसीलदार गाँव में मौके पर मौजूद थे और दलित बस्ती पर जाट दबंगों के धावे के समय दोनों अधिकारियों ने दलितों की सुरक्षा को लेकर कोई कदम नहीं उठाया, जिसकी वजह से इतनी बड़ी घटना हुई, इसलिए इस घटना में दोनों बराबर के जिम्मेदार हैं। साथ में उन्होंने प्रशासन पर असंवेदनशील होने का भी आरोप लगाया। गौरतलब है कि घटना के बाद मिर्चपुर गाँव पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया था, लेकिन गाँव में जाटों की महापंचायत चल रही थी। पीड़ित परिवारों का अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित होना स्वाभाविक था। मिर्चपुर गाँव से 40 परिवार पलायन कर हिसार लघु सचिवालय में सुरक्षा और दूसरी जगह बसाने की माँग को लेकर लोकासंघर्ष पर बैठ गए। हालात के गंभीर होने का अंदाजा लगते ही हरियाणा के मुख्यमंत्री ने मिर्चपुर गाँव का दौरा कर मृतकों के परिजनों को 10-10 लाख रूपये का मुआवजा और एक परिजन को नौकरी देने की घोषणा की। कहा गया कि गाँव में पुलिस बटालियन 24 घंटे तैनात रहेगी, जब तक ग्रामीण अपनी सुरक्षा को लेकर संतुष्ट न हो जाएँ। कुल मिलाकर जिला प्रशासन जिस मामले को रोकने में विफल रहा, उसे मुआवजे और लुभावनी घोषणाओं के सहारे भरने की राजनीति होने लगी।

-ऋषि कुमार सिंह
संपर्कः 09313129941
लोकसंघर्ष पत्रिका के सितम्बर अंक में प्रकाशित

1 टिप्पणी:

Aditya ने कहा…

Nice blog and good information shared here.

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