हम एक जगह लिख चुके हैं कि कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी और भाजपा की तरफ से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं। कह सकते हैं कि राहुल गांधी अगर कांग्रेस के युवराज हैं तो नरेंद्र मोदी भाजपा के। दोनों पार्टियाँ अपने-अपने युवराजों को आगे बढ़ाने में लगी हैं। भाजपा और सामान्य नागरिक समाज ध्यान दे सकता है कि युवराज बूढ़ा होता है तो औरंगजेब बन जाता है। ऐसे में सोनिया के सेकुलर सिपाही कहेंगे कि इसीलिए, यानी नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री न बन जाएँ, कांग्रेस का साथ देना चाहिए। लेकिन वे यह नहीं समझते कि उससे भाजपा को ही फायदा होता है। वह कांग्रेस का विपक्ष बनी रहती है, कई राज्यों में उसकी सरकार चलती रहती है और केंद्र में सत्तासीन होने की संभावना बनी रहती है। छः साल तक केंद्र में सरकार चलाने वाली भाजपा फिर सत्ता में नहीं आ पाएगी, इसका सुनिश्चय कम से कम कांग्रेस के भरोसे नहीं हो सकता। सेकुलर विद्वानों के कांग्रेस का समर्थन करने का नतीजा यह होता है कि देश में नई राजनीति पैदा नहीं हो पाती जो भाजपा और कांग्रेस की जगह ले सके।
यूरोप में एक बहस लंबे समय से चली आ रही है कि ‘होलोकास्ट’ की घटना को भुला दिया जाए या बराबर याद रखा जाए? इस बहस में एक विचार यह भी सामने आता रहा है, जिसका अनुमोदन ईरान के वर्तमान राष्ट्रपति अहमदीनेजाद करते हैं, ‘होलोकास्ट’ वास्तव में हुआ ही नहीं था। हमारे प्रधानमंत्री भी कई बार परेशान होकर कहते हैं कि 1984 के दंगों में मारे गए सिखों के परिजनों को न्याय दिलाने की बात अब बंद होनी चाहिए। यानी उस घटना को भुला देना चाहिए। किसी समाज या देश के साथ जो बुरी घटना बीत चुकी है क्या उसे भुला देना ऐसा समाधन है कि भविष्य में आने वाली पीढ़ियों को फिर से वैसी अथवा उससे ज्यादा त्रासद घटना का सामना न करना पड़े?
नागरिक समाज को यह नहीं भूलना चाहिए कि आने वाले समय में कांग्रेस 1984 से ज्यादा भयानक नरसंहार को अंजाम दे सकती है और भाजपा 2002 से ज्यादा भयानक नरसंहार को। इन दोनों राजनैतिक जमातों का पूँजीवादी साम्राज्यवाद से पुख्ता गठजोड़ हो चुका है। इससे दोनों में देश को बेचने और तोड़ने की ताकत बढ़ गई है। लिहाजा, भारत में एक वैकल्पिक राजनीति और विचारधारा की आसन्न जरूरत है। इस दिशा में केवल छोटी राजनैतिक पार्टियों और जनांदोलनकारी संगठनों को ही नहीं, मुख्यधारा की उन राजनैतिक पार्टियों को भी पहल करने की जरूरत है जिनकी कभी भाजपा और कभी कांग्रेस के साथ जुड़ने की नियति बन चुकी है।
-प्रेम सिंह
(समाप्त)
मो0: 09873276726
यूरोप में एक बहस लंबे समय से चली आ रही है कि ‘होलोकास्ट’ की घटना को भुला दिया जाए या बराबर याद रखा जाए? इस बहस में एक विचार यह भी सामने आता रहा है, जिसका अनुमोदन ईरान के वर्तमान राष्ट्रपति अहमदीनेजाद करते हैं, ‘होलोकास्ट’ वास्तव में हुआ ही नहीं था। हमारे प्रधानमंत्री भी कई बार परेशान होकर कहते हैं कि 1984 के दंगों में मारे गए सिखों के परिजनों को न्याय दिलाने की बात अब बंद होनी चाहिए। यानी उस घटना को भुला देना चाहिए। किसी समाज या देश के साथ जो बुरी घटना बीत चुकी है क्या उसे भुला देना ऐसा समाधन है कि भविष्य में आने वाली पीढ़ियों को फिर से वैसी अथवा उससे ज्यादा त्रासद घटना का सामना न करना पड़े?
नागरिक समाज को यह नहीं भूलना चाहिए कि आने वाले समय में कांग्रेस 1984 से ज्यादा भयानक नरसंहार को अंजाम दे सकती है और भाजपा 2002 से ज्यादा भयानक नरसंहार को। इन दोनों राजनैतिक जमातों का पूँजीवादी साम्राज्यवाद से पुख्ता गठजोड़ हो चुका है। इससे दोनों में देश को बेचने और तोड़ने की ताकत बढ़ गई है। लिहाजा, भारत में एक वैकल्पिक राजनीति और विचारधारा की आसन्न जरूरत है। इस दिशा में केवल छोटी राजनैतिक पार्टियों और जनांदोलनकारी संगठनों को ही नहीं, मुख्यधारा की उन राजनैतिक पार्टियों को भी पहल करने की जरूरत है जिनकी कभी भाजपा और कभी कांग्रेस के साथ जुड़ने की नियति बन चुकी है।
-प्रेम सिंह
(समाप्त)
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