शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

मिली है ज़िंदगी मुझको किसी सौग़ात की तरह














कभी
बादल कभी बिजली कभी बरसात की तरह
मिली है ज़िंदगी मुझको किसी सौग़ात की तरह,

मैं जिसके साथ होती हूँ उसी के साथ होती हूँ
जुदाई में भी होती हूँ मिलन की रात की तरह'

समझ पाती नहीं हूँ मैं किसी की बात का मतलब
सभी की बात लगती है उसी की बात की तरह,

किसी की याद के जुगनू कभी जब जगमगाते हैं
तभी अल्फ़ाज़ सजते हैं किसी बारात की तरह''

जिसे देखा किया 'मीत' बिना देखे भी हर लम्हा
बिना उसके भी सुनाती हूँ उसे नग़्मात की तरह....!

-मीत

1 टिप्पणी:

Tausif Hindustani ने कहा…

किसी की याद के जुगनू कभी जब जगमगाते हैं
तभी अल्फ़ाज़ सजते हैं किसी बारात की तरह''
dabirnews.blogspot.com

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