इंसान को व देश को पंगु, बीमार और कंगाल बनाती मोटरवाहन क्रांति:
साईकिल ही इक्कीसवीं सदी का आदर्श वाहन हो सकती है।
साईकिल ही इक्कीसवीं सदी का आदर्श वाहन हो सकती है।
दोस्तों,
पिछले दिनों पेट्रोल की कीमत में 3 रुपए प्रति लीटर की बढ़ोत्तरी हो गई। डीजल की कीमत भी बढ़ने वाली है। कुछ महीने पहले जब से सरकार ने पेट्रोल-डीजल की कीमतों को नियंत्रण-मुक्त करने का फैसला किया, तब से छः बार उनके दाम बढ़ गए हैं। पहले से महंगाई की मार से जूझती जनता पर यह बड़ा अत्याचार है। सरकारों ने पेट्रोल-डीजल पर भारी टैक्स लगा रख है। यदि उसे कम कर दिया जाए तो राहत मिल सकती है।
लेकिन इस संकट से राहत पाने के लिए हम भी कुछ कर सकते हैं, यदि कुछ नए और रचनात्मक तरीके से हम सोचना शुरु करें। यदि थोड़ा विचार करेंगें तो हम पाएंगे कि कई काम पहले हम पैदल या साईकिल से जाकर कर लेते थे, अब
मोटरसाईकिल या कार से करते हैं। क्या यह गैर-जरुरी नहीं है ? जरुरी लग सकता हैं क्योंकि उनकी आदत पड़ गई है। क्या यह आदत हमारे लिए, हमारे नगर के लिए, समाज के लिए और देश के लिए अच्छी है ? पिछले दिनों देश में मोटर-वाहनों की जो बाढ़ आई है, एक तरह की मोटरवाहन क्रांति आई है, जिसमें हम भी बिना सोचे-विचारे बह गए हैं, क्या वह स्वागत-योग्य है ? इसके कारण जो संकट पैदा हो रहे हैं, क्या हमने उन पर सोचा है ?
आइए, विचार करें -
आइए, हम कुछ बातों पर विचार करते हैं:-
1. मोटरवाहनों में प्रयोग होने वाला पेट्रोल/डीजल देश के बाहर से आयात करना पड़ता है, जिससे देश का धन बाहर जाता है। यदि हम पैदल या साईकिल से चलते हैं, तो कोई ईंधन खर्च नहीं होता।
2. मोटरवाहनों को बनाने वाली ज्यादातर कंपनियां विदेशी है या फिर विदेशी कंपनियों की भागीदारी है। तकनालाॅजी व पुर्जों का भी आयात होता है। विदेशी कंपनियों के मुनाफे व रायल्टी के रुप में भी देश का काफी पैसा बाहर जाता है। दूसरी तरफ, साईकिलें बनाने वाली करीब सारी कंपनियां भारतीय है।
3. मोटरवाहन गाड़ियां बड़े-बड़े कारखानों में बनती है, जो पूरे मशीनीकृत और स्वचालित होते हैं। इनमें बहुत कम रोजगार मिलता है। जबकि साईकिलें व उनके पुर्जें ज्यादातर लघु उद्योगों में बनते हैं, जिनसे ज्यादा रोजगार पैदा होता है।
4. औद्योगीकरण के नाम पर मोटरवाहन कंपनियों को सरकार कई कर-रियायतें, अनुदान, सस्ती जमीन दे रही है। सिंगूर जैसे संघर्ष भी इसके कारण पैदा हो रहे हैं।
5. मोटरवाहनों से हमारी सड़को पर भीड़ बढ़ती जा रही है और पैदल चलने की जगह भी नहीं बची है। टेªफिक जाम होने लगे हैं। बड़े शहरों में पार्किंग की समस्या भी भयानक हो गई है।
6. इन मोटरगाड़ियों के लिए शहरों में सड़कों को चैड़ा किया जा रहा है। उसके लिए अतिक्रमण हटाने के नाम पर गरीब हाथठेले वालों, गुमठी वालों, छोटे दुकानदारों को हटाया जा रहा है और उनकी रोजी-रोटी छीनी जा रही है। कई जगह घरों को भी तोड़ा जा रहा है। इसी तरह राजमार्गों को चार लेन-छः लेन बनाने, बायपास और एक्सप्रेस मार्ग बनाने में भारी मात्रा में किसानों को उजाड़ा जा रहा है तथा खेती की जमीन छीनी जा रही है। यदि इसी तरह बड़े पैमाने पर खेतों को खतम किया जाता रहा तो, देश में अन्न संकट पैदा हो सकता है।
7. इन्हीं मोटरगाड़ियों के लिए एक्सप्रेसवे, हाईवे, बायपास, फ्लाईओवर, नए पुल, पार्किंग स्थल आदि बनाने में इस गरीब देश का अरबों-खरबों रुपया बरबाद हो रहा है। यदि इतनी गाड़ियां नहीं होती, तो पुरानी सड़कों और पुराने पुलों से भी काम चल सकता था। इनके कारण सड़कों की मरम्मत पर भी ज्यादा खर्च करना पड़ता है।
8. यह मत सोचिए कि मोटरगाड़ियों की संख्या में यह विस्फोट आबादी में वृद्धि के कारण हो रहा है। भारत की आबादी तो केवल दो-ढाई फीसदी की दर से बढ़ रही है, किन्तु गाड़ियों (खास तौर पर कारों व मोटरसाईकिलों) की तादाद हर साल 20-25 प्रतिशत बढ़ रही है। बसों और ट्रकों की संख्या तो ठीक है (उसमें भी कुछ गैर जरुरी परिवहन हो सकता है) किन्तु एक कार सिर्फ एक या दो आदमी को ले जाती है और जगह काफी घेरती है। यह आबादी विस्फोट नहीं, ‘कार विस्फोट’ है, जो मुसीबत पैदा कर रहा है।
9. मोटरवाहनों के कारण सड़कों पर दुर्घटनाएं भी बढ़ती जा रही हैं। हमारे राजमार्ग मौत के राजमार्ग बनते जा रहे हैं।
10. मोटरगाड़ियों के धुएं से हवा जहरीली होती जा रही है। दुनिया के पर्यावरण को बिगाड़ने, जलवायु परिवर्तन और धरती के गरम होने में मोटरगाड़ियों का भी योगदान है। इसी तरह शोर भी बढ़ता जा रहा है। ऐसी ही हालत रही तो लोग जल्दी ऊंचा सुनने लगेंगें और बहरापन बढ़ेगा।
11. पैदल या साईकिल से चलने पर शरीर की कसरत होती है। गाड़ियों से चलने से मोटापा,हृदयरोग, रक्तचाप, मधुमेह, कब्ज, बवासीर जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं। अपना शरीर ठीक रखने के लिए हमंे अलग से जिम, योगासन, भ्रमण, दवाईयों का सहारा लेना पड़ रहा है। यदि पैदल या साईकिल से चलते तो शायद इनकी जरुरत ही नहीं पड़ती (या कम पड़ती)।
12. पृथ्वी पर जितने भी चैपाये हैं, उनमें सिर्फ इंसान ने ही पिछले पैरों पर खड़े होकर चलना सीखा है (चिम्पांजी और कंगारु जरुर दो अपवाद है)। इंसान ने लाखों सालों में यह महारत हासिल की है। यदि गाड़ियों का ऐसा प्रचलन बढ़ता गया, तो कहीं वह पैदल चलना भूल तो नहीं जाएगा ? इतिहास में बड़े-बड़े काम पैदल चलकर ही हुए है। गौतम बुद्ध, महावीर स्वामी, ईसामसीह, शंकराचार्य और गुरुनानक ने पैदल घूम-घूम कर ही अपना संदेश फैलाया है। व्हेनसांग, फाह्यान और मार्को पोलो ने पैदल ही दुनिया की दूरियां नापी थी।
13. महंगी कारों और मोटरसाईकिलों ने इस देश में विलासिता और शान-शौकत की भोगवादी संस्कृति को बढ़ावा दिया है तथा अमीर-गरीब की खाई को बढ़ाया है। दुनिया में कभी भी सबके पास कार नहीं हो सकती है, लेकिन साईकिल हो सकती है। इक्कीसवीं सदी का आदर्श वाहन साईकिल ही हो सकता है।
14. दुनिया के अमीर देशों में भी साईकिलों का प्रचलन और लोकप्रियता बढ़ रही है। वहां के रास्तों पर पैदल व साईकिलों के लिए अलग लेन बनाई जाती है। डेनमार्क की सड़कों पर अब मोटर गाड़ियों से ज्यादा साईकिलें दिखाई देती हैं। फ्रांस में प्रतिवर्ष पूरे देश का चक्कर लगाने वाली एक अंतरराष्ट्रीय साईकिल दौड़ आयोजित होती है, जिसे देखने के लिए लाखों लोग जुटते हंै। इस का नाम ‘टूर डी फ्रांस’ है। पेरिस मंे नगर निगम ने किराये पर देने के लिए 20 हजार साईकिलों की एक जोरदार व्यवस्था की है, जिन्हें 1639 केन्द्रों से कहीं से भी उठा सकते हैं और कहीं भी जमा कर सकते हैं। इसका नाम है ‘वेलिब’ यानी साईकिल की आजादी। यूरोप, अमरीका, कनाडा, आस्टेªलिया आदि में कई नगरों में ऐसी योजनाएं शुरु हुई हैं और ऐसी साईकिल दौड़ें भी लोकप्रिय हो रही है। क्या हम उनसे सीखेंगे ?
हम क्या कर सकते हैं ?
1. कार-मोटर साईकिल की जगह पैदल व साईकिल पर चलना शुरु करें। लंबी दूरी के लिए सार्वजनिक वाहनों (बस, रेलगाड़ी, रिक्शा, टैक्सी आदि) का इस्तेमाल करें।
2. अपने नगर व इलाके में साईकिल का प्रचार करें। साईकिल-दौड़ें व साईकिल-रैलियां आयोजित करें। ‘साईकिल क्लब’ का गठन करें। जीवन भर साईकिल चलाने वाले बुर्जुगों को सम्मानित करें।
3. मोटरवाहन उद्योग को सरकार द्वारा दिए जा रही रियायतों, अनुदान व प्रोत्साहन का विरोध करें। सरकार की परिवहन नीति बदलने के लिए जनमत बनाएं।
4. शहरों के व्यस्त बाजारों और भीड़ वाले इलाकों को ‘वाहन-मुक्त जोन’ बनाने के लिए अभियान चलाएं। सड़कों पर पैदल व साईकिलों के लिए अलग लेन बनाने की मांग करें।
5. बच्चों द्वारा वाहन चलाने पर पूरी तरह रोक लगे और सही प्रशिक्षण व जांच के बगैर किसी को ड्राइविंग लाईसेन्स न दिया जाए, इस दिशा में कोशिश करें।
सुनील
मोबाईल 09425040452
पिछले दिनों पेट्रोल की कीमत में 3 रुपए प्रति लीटर की बढ़ोत्तरी हो गई। डीजल की कीमत भी बढ़ने वाली है। कुछ महीने पहले जब से सरकार ने पेट्रोल-डीजल की कीमतों को नियंत्रण-मुक्त करने का फैसला किया, तब से छः बार उनके दाम बढ़ गए हैं। पहले से महंगाई की मार से जूझती जनता पर यह बड़ा अत्याचार है। सरकारों ने पेट्रोल-डीजल पर भारी टैक्स लगा रख है। यदि उसे कम कर दिया जाए तो राहत मिल सकती है।
लेकिन इस संकट से राहत पाने के लिए हम भी कुछ कर सकते हैं, यदि कुछ नए और रचनात्मक तरीके से हम सोचना शुरु करें। यदि थोड़ा विचार करेंगें तो हम पाएंगे कि कई काम पहले हम पैदल या साईकिल से जाकर कर लेते थे, अब
मोटरसाईकिल या कार से करते हैं। क्या यह गैर-जरुरी नहीं है ? जरुरी लग सकता हैं क्योंकि उनकी आदत पड़ गई है। क्या यह आदत हमारे लिए, हमारे नगर के लिए, समाज के लिए और देश के लिए अच्छी है ? पिछले दिनों देश में मोटर-वाहनों की जो बाढ़ आई है, एक तरह की मोटरवाहन क्रांति आई है, जिसमें हम भी बिना सोचे-विचारे बह गए हैं, क्या वह स्वागत-योग्य है ? इसके कारण जो संकट पैदा हो रहे हैं, क्या हमने उन पर सोचा है ?
आइए, विचार करें -
आइए, हम कुछ बातों पर विचार करते हैं:-
1. मोटरवाहनों में प्रयोग होने वाला पेट्रोल/डीजल देश के बाहर से आयात करना पड़ता है, जिससे देश का धन बाहर जाता है। यदि हम पैदल या साईकिल से चलते हैं, तो कोई ईंधन खर्च नहीं होता।
2. मोटरवाहनों को बनाने वाली ज्यादातर कंपनियां विदेशी है या फिर विदेशी कंपनियों की भागीदारी है। तकनालाॅजी व पुर्जों का भी आयात होता है। विदेशी कंपनियों के मुनाफे व रायल्टी के रुप में भी देश का काफी पैसा बाहर जाता है। दूसरी तरफ, साईकिलें बनाने वाली करीब सारी कंपनियां भारतीय है।
3. मोटरवाहन गाड़ियां बड़े-बड़े कारखानों में बनती है, जो पूरे मशीनीकृत और स्वचालित होते हैं। इनमें बहुत कम रोजगार मिलता है। जबकि साईकिलें व उनके पुर्जें ज्यादातर लघु उद्योगों में बनते हैं, जिनसे ज्यादा रोजगार पैदा होता है।
4. औद्योगीकरण के नाम पर मोटरवाहन कंपनियों को सरकार कई कर-रियायतें, अनुदान, सस्ती जमीन दे रही है। सिंगूर जैसे संघर्ष भी इसके कारण पैदा हो रहे हैं।
5. मोटरवाहनों से हमारी सड़को पर भीड़ बढ़ती जा रही है और पैदल चलने की जगह भी नहीं बची है। टेªफिक जाम होने लगे हैं। बड़े शहरों में पार्किंग की समस्या भी भयानक हो गई है।
6. इन मोटरगाड़ियों के लिए शहरों में सड़कों को चैड़ा किया जा रहा है। उसके लिए अतिक्रमण हटाने के नाम पर गरीब हाथठेले वालों, गुमठी वालों, छोटे दुकानदारों को हटाया जा रहा है और उनकी रोजी-रोटी छीनी जा रही है। कई जगह घरों को भी तोड़ा जा रहा है। इसी तरह राजमार्गों को चार लेन-छः लेन बनाने, बायपास और एक्सप्रेस मार्ग बनाने में भारी मात्रा में किसानों को उजाड़ा जा रहा है तथा खेती की जमीन छीनी जा रही है। यदि इसी तरह बड़े पैमाने पर खेतों को खतम किया जाता रहा तो, देश में अन्न संकट पैदा हो सकता है।
7. इन्हीं मोटरगाड़ियों के लिए एक्सप्रेसवे, हाईवे, बायपास, फ्लाईओवर, नए पुल, पार्किंग स्थल आदि बनाने में इस गरीब देश का अरबों-खरबों रुपया बरबाद हो रहा है। यदि इतनी गाड़ियां नहीं होती, तो पुरानी सड़कों और पुराने पुलों से भी काम चल सकता था। इनके कारण सड़कों की मरम्मत पर भी ज्यादा खर्च करना पड़ता है।
8. यह मत सोचिए कि मोटरगाड़ियों की संख्या में यह विस्फोट आबादी में वृद्धि के कारण हो रहा है। भारत की आबादी तो केवल दो-ढाई फीसदी की दर से बढ़ रही है, किन्तु गाड़ियों (खास तौर पर कारों व मोटरसाईकिलों) की तादाद हर साल 20-25 प्रतिशत बढ़ रही है। बसों और ट्रकों की संख्या तो ठीक है (उसमें भी कुछ गैर जरुरी परिवहन हो सकता है) किन्तु एक कार सिर्फ एक या दो आदमी को ले जाती है और जगह काफी घेरती है। यह आबादी विस्फोट नहीं, ‘कार विस्फोट’ है, जो मुसीबत पैदा कर रहा है।
9. मोटरवाहनों के कारण सड़कों पर दुर्घटनाएं भी बढ़ती जा रही हैं। हमारे राजमार्ग मौत के राजमार्ग बनते जा रहे हैं।
10. मोटरगाड़ियों के धुएं से हवा जहरीली होती जा रही है। दुनिया के पर्यावरण को बिगाड़ने, जलवायु परिवर्तन और धरती के गरम होने में मोटरगाड़ियों का भी योगदान है। इसी तरह शोर भी बढ़ता जा रहा है। ऐसी ही हालत रही तो लोग जल्दी ऊंचा सुनने लगेंगें और बहरापन बढ़ेगा।
11. पैदल या साईकिल से चलने पर शरीर की कसरत होती है। गाड़ियों से चलने से मोटापा,हृदयरोग, रक्तचाप, मधुमेह, कब्ज, बवासीर जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं। अपना शरीर ठीक रखने के लिए हमंे अलग से जिम, योगासन, भ्रमण, दवाईयों का सहारा लेना पड़ रहा है। यदि पैदल या साईकिल से चलते तो शायद इनकी जरुरत ही नहीं पड़ती (या कम पड़ती)।
12. पृथ्वी पर जितने भी चैपाये हैं, उनमें सिर्फ इंसान ने ही पिछले पैरों पर खड़े होकर चलना सीखा है (चिम्पांजी और कंगारु जरुर दो अपवाद है)। इंसान ने लाखों सालों में यह महारत हासिल की है। यदि गाड़ियों का ऐसा प्रचलन बढ़ता गया, तो कहीं वह पैदल चलना भूल तो नहीं जाएगा ? इतिहास में बड़े-बड़े काम पैदल चलकर ही हुए है। गौतम बुद्ध, महावीर स्वामी, ईसामसीह, शंकराचार्य और गुरुनानक ने पैदल घूम-घूम कर ही अपना संदेश फैलाया है। व्हेनसांग, फाह्यान और मार्को पोलो ने पैदल ही दुनिया की दूरियां नापी थी।
13. महंगी कारों और मोटरसाईकिलों ने इस देश में विलासिता और शान-शौकत की भोगवादी संस्कृति को बढ़ावा दिया है तथा अमीर-गरीब की खाई को बढ़ाया है। दुनिया में कभी भी सबके पास कार नहीं हो सकती है, लेकिन साईकिल हो सकती है। इक्कीसवीं सदी का आदर्श वाहन साईकिल ही हो सकता है।
14. दुनिया के अमीर देशों में भी साईकिलों का प्रचलन और लोकप्रियता बढ़ रही है। वहां के रास्तों पर पैदल व साईकिलों के लिए अलग लेन बनाई जाती है। डेनमार्क की सड़कों पर अब मोटर गाड़ियों से ज्यादा साईकिलें दिखाई देती हैं। फ्रांस में प्रतिवर्ष पूरे देश का चक्कर लगाने वाली एक अंतरराष्ट्रीय साईकिल दौड़ आयोजित होती है, जिसे देखने के लिए लाखों लोग जुटते हंै। इस का नाम ‘टूर डी फ्रांस’ है। पेरिस मंे नगर निगम ने किराये पर देने के लिए 20 हजार साईकिलों की एक जोरदार व्यवस्था की है, जिन्हें 1639 केन्द्रों से कहीं से भी उठा सकते हैं और कहीं भी जमा कर सकते हैं। इसका नाम है ‘वेलिब’ यानी साईकिल की आजादी। यूरोप, अमरीका, कनाडा, आस्टेªलिया आदि में कई नगरों में ऐसी योजनाएं शुरु हुई हैं और ऐसी साईकिल दौड़ें भी लोकप्रिय हो रही है। क्या हम उनसे सीखेंगे ?
हम क्या कर सकते हैं ?
1. कार-मोटर साईकिल की जगह पैदल व साईकिल पर चलना शुरु करें। लंबी दूरी के लिए सार्वजनिक वाहनों (बस, रेलगाड़ी, रिक्शा, टैक्सी आदि) का इस्तेमाल करें।
2. अपने नगर व इलाके में साईकिल का प्रचार करें। साईकिल-दौड़ें व साईकिल-रैलियां आयोजित करें। ‘साईकिल क्लब’ का गठन करें। जीवन भर साईकिल चलाने वाले बुर्जुगों को सम्मानित करें।
3. मोटरवाहन उद्योग को सरकार द्वारा दिए जा रही रियायतों, अनुदान व प्रोत्साहन का विरोध करें। सरकार की परिवहन नीति बदलने के लिए जनमत बनाएं।
4. शहरों के व्यस्त बाजारों और भीड़ वाले इलाकों को ‘वाहन-मुक्त जोन’ बनाने के लिए अभियान चलाएं। सड़कों पर पैदल व साईकिलों के लिए अलग लेन बनाने की मांग करें।
5. बच्चों द्वारा वाहन चलाने पर पूरी तरह रोक लगे और सही प्रशिक्षण व जांच के बगैर किसी को ड्राइविंग लाईसेन्स न दिया जाए, इस दिशा में कोशिश करें।
सुनील
मोबाईल 09425040452
2 टिप्पणियां:
It would not be at all strange if history came to the conclusion that the perfection of the bicycle was the greatest incident of the nineteenth century. ~Author Unknown
The bicycle is the most civilized conveyance known to man. Other forms of transport grow daily more nightmarish. Only the bicycle remains pure in heart. ~Iris Murdoch, The Red and the Green
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