तकदीर ने लिखा जिन्दगी का तराना है
महबूब के आगोश में सभी को जाना है
करते रहते हैं इंतज़ार ख़ुशी के ख़त का
खुले खतों में हर्फों सेही दिल बहलाना है
जो करते हैं बातें आसमां तक जाने की
लौट वापस उनको भी जमीं पे आना है
करते हैं मुहब्बत जरुरतमंदों की तरह
क्या दुनिया भी किसी का आशियाना है
जो तूने लिखा दिया इतिहास हो गया
लकीरों में लिखा भी कैसे मिटाना है
जीने का सहारा बन ढूढ़ते हैं ताजिंदगी
तन्हा ही तो एक दिन सबको जाना है
खुद का लिखा न पढ़ पाए "ए जिन्दगी"
क्या लेकर आये क्या ले कर जाना है
जलाते सभी हैं चरागों को शाम ढले ही
''ज्योति'' एक दिन सबको बुझ जाना है
-ज्योति डांग
4 टिप्पणियां:
ज्योति डांग जी की रचना बहुत सुन्दर है!
आज रिश्तों की अज़्मत रोज़ कम से कमतर होती जा रही है। रिश्तों की अज़्मत और
उसकी पाकीज़गी को बरक़रार रखने के लिए उनका ज़िक्र निहायत ज़रूरी है। मां का रिश्ता
एक सबसे पाक रिश्ता है। शायद ही कोई लेखक ऐसा हुआ हो जिसने मां के बारे में कुछ
न लिखा हो। शायद ही कोई आदमी ऐसा हुआ हो जिसने अपनी मां के लिए कुछ अच्छा न कहा
हो। तब भी देश-विदेश में अक्सर मुहब्बत की जो यादगारें पाई जाती हैं वे आशिक़ों
ने अपनी महबूबाओं और बीवियों के लिए तो बनाई हैं लेकिन ‘प्यारी मां के लिए‘
कहीं कोई ताजमहल नज़र नहीं आता।
ऐसा क्यों हुआ ?
इस तरह के हरेक सवाल पर आज विचार करना होगा।
‘प्यारी
मां‘ के नाम से ब्लाग शुरू करने का मक़सद यही है।
इस प्यारे से ब्लाग को एक टिनी-मिनी एग्रीगेटर की शक्ल भी दी गई है ताकि
ज़्यादा से ज़्यादा मांओं और बहनों के ब्लाग्स को ब्लाग रीडर्स के लिए उपलब्ध
कराया जा सके। जो मां-बहनें इस ब्लाग से एक लेखिका के तौर पर जुड़ने की
ख्वाहिशमंद हों वे अपनी ईमेल आईडी भेजने की मेहरबानी फ़रमाएं। मेरी ईमेल आईडी है -
eshvani@gmail.com
खूबसूरत अभिव्यक्ति
गज़ब कर दिया ज्योति जी …………हर शेर यथार्थ बोध कराता हुआ……………शानदार गज़ल्।
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