मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

सुना है हाकिम सारे दीवाने अब ज़िंदां के हवाले होगे

सुना है हाकिम सारे दीवाने अब ज़िंदां के हवाले होगे

सारे जिनकी आँख ख़ुली है

सारे जिनके लब ख़ुलते हैं

सारे जिनको सच से प्यार

सारे जिनको मुल्क़ से प्यार

और वे सारे जिनके हाथों में सपनों के हथियार

सब ज़िंदां के हवाले होंगे!

ज़ुर्म को अब जो ज़ुर्म कहेंगे

देख के सब जो चुप न रहेगें

जो इस अंधी दौड़ से बाहर

बिन पैसों के काम करेंगे

और दिखायेंगे जो उनके चेहरे के पीछे का चेहरा

सब ज़िंदां के हवाले होंगे

जिनके सीनों में आग बची है

जिन होठों में फरियाद बची है

इन काले घने अंधेरों में भी

इक उजियारे की आस बची है

और सभी जिनके ख़्वाबों में इंक़लाब की बात बची है

सब ज़िंदां के हवाले होंगे

आओ हाकिम आगे आओ

पुलिस, फौज, हथियार लिये

पूंजी की ताक़त ख़ूंखार

और धर्म की धार लिये

हम दीवाने तैयार यहां है हर ज़ुर्म तुम्हारा सहने को

इस ज़िंदां में कितनी जगह है!

कितने जिंदां हम दीवानों के

ख़ौफ़ से डरकर बिखर गये

कितने मुसोलिनी, कितने हिटलर

देखो तो सारे किधर गये

और तुम्हें भी जाना वहीं हैं वक़्त भले ही लग जाये

फिर तुम ही ज़िंदां में होगे!

* ज़िंदां- कारावास


अशोक कुमार पाण्डेय

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