बुधवार, 30 मार्च 2011

हिन्दुत्व का ‘असीम’ आतंक भाग 1


किसी ने छब्बीस साला उम्र के सुधाकरराव मराठा उर्फ सुधाकरराव प्रभुणे के बारे में सुना है? एक कट्टर दक्षिणपंथी अपराधी जिसे पिछले दिनों मध्यप्रदेश पुलिस ने झाँसी में गिरफ्तार किया और उसके कब्जे से एक कार, एक रिवाॅल्वर और पाँच जिन्दा कारतूस बरामद किए। सुधाकर की गिरफ्तारी के पहले ही मध्यप्रदेश पुलिस उसके साथी शिवम् धाकड को उज्जैन में गिरफ्तार कर चुकी थी। वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के मुताबिक सुधाकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक-आतंकवादी सुनील जोशी के सम्पर्क में रह चुका था, जिसकी 2007 में रहस्यमय परिस्थितियों में हत्या कर दी गई थी। सुधाकर के बारे में जानकारी यह भी है कि उसने अपराध की दुनिया में तब प्रवेश किया जब वह उन्नीस साल का था।
गौरतलब है कि न पुलिस, न ही मीडिया में इस कुख्यात अपराधी की गिरफ्तारी पर उत्तेजना दिखाई दी। आम तौर पर छोटे मोटे अपराधियों को पकड़ने पर प्रेस कान्फ्रेन्स करने वाली पुलिस भी लगभग खामोश ही रही और मीडिया ने भी मौन बरतना जरुरी समझा। गिने-चुने अख़बारों को छोड़ दें तो मध्यप्रदेश के प्रिन्ट मीडिया ने भी यह ख़बर देना जरूरी नहीं समझा और इसके बावजूद कि उसकी गिरफ्तारी में उत्तर प्रदेश की पुलिस ने अहम भूमिका अदा की थी, परन्तु इस अपराधी को मध्य प्रदेश पुलिस को ‘सौंप’ दिया था। हिन्दी साप्ताहिक ‘लोक लहर’ द्वारा किए गए इस खुलासे पर भी हंगामा नहीं मचा कि अपनी गिरफ्तारी के वक्त सुधाकर के साथ संघ का कोई नेता था और जब सुधाकर को औपचारिक तौर पर गिरफ्तार किया गया तब संघ के इस नेता ने भोपाल में किसी वरिष्ठ पुलिस अधिकारी से बात की थी, जिसके चलते उसे वहीं छोड़ दिया गया।
यह अकारण नहीं था कि अपनी गिरफ्तारी के तत्काल बाद दिए अपने पहले औपचारिक वक्तव्य में सुधाकरराव मराठा ने साफ कहा कि फरारी के इस कालखण्ड में वह लगातार संघ/भाजपा नेताओं के सम्पर्क में रहा, जो उसकी लगातार मदद करते रहे। सुधाकर ने किसी तपन भौमिक के नाम का भी उल्लेख किया जो संघ एवम् भाजपा के बीच सेतु का काम करता है। एक बात जिसका उल्लेख जरूरी है वह यह कि सुधाकर मध्यप्रदेश के मालवा इलाके का रहने वाला था जिसे हिन्दुत्ववादी शक्तियों का गढ़ समझा जाता है और देश के अलग अलग हिस्सों में हिन्दुत्व आतंकवाद की जो घटनाएँ सामने आई हैं, उसमें यहाँ के कई लोग शामिल रहे हैं।
निश्चित ही इस मामले से जुड़े तमाम रोचक तथ्यों को देखते हुए पूरे मामले की उच्चस्तरीय जाँच की जरूरत दिखती है ताकि यह जाना जा सके कि आखिर अल्पसंख्यक समुदाय के कई अग्रणियों की हत्या करने वाले, या अन्तरधर्मीय शादी करने वाले जोड़ों को प्रताडि़त करने वाले इस अपराधी के साथ स्पेशल व्यवहार क्यों हुआ?
सुधाकर द्वारा अंजाम दिए गए पाँच हत्याओं के बारे में विवरण इस प्रकार हैं:-
-चित्तौड़गढ़ के जफर खान की हत्या जिसने सुधाकर की बहन ज्योति से शादी की थी।
-हनीफ शाह नामक गायक की हत्या जिसने हेमा भटनागर नामक युवती से विवाह किया था।
-मन्दसौर के गबरु पठान की हत्या जिसके भतीजे ने मन्दसौर के एक हिन्दू व्यापारी को मार डाला था।
-हिन्दुत्व एजेण्डा के तहत रतलाम के रमजानी शेरानी की हत्या।
-आर0आर0 खान नामक कांग्रेसी नेता की हत्या।
सुधाकरराव मराठा की गिरफ्तारी दरअसल संघ परिवार के अन्दर मौजूद श्रम विभाजन की नीति को उजागर करती है, जहाँ कुछ लोग शाखाओं में कवायद करते हैं और बाकियों को क्षमता एवं रुचि के अनुसार ‘हिन्दू राष्ट्र’ की स्थापना हेतु अध्यापन से लेकर अतिवाद के कामों में तैनात किया जाता है। फिर अतिवाद की शक्ल
आपराधिक गतिविधियों में प्रगट हो या आतंकी घटनाओं में परिणत हो।
हर राज्य, हर शहर, हर कस्बे में ऐसे लोग मिल सकते हैं जो खुद अपराध की दुनिया में संलग्न हों मगर साथ ही साथ किसी दक्षिणपंथी संगठन के लिए भी काम करते हों। अपने तईं वे हमेशा ही इस बात से इन्कार करेंगे कि वे किसी संगठन से औपचारिक तौर पर जुड़े हुए हैं, और वे संगठन भी इस बात से हमेशा ही इन्कार करेंगे कि इन अपराधियों की वे सेवाएँ लेते हैं। यह अलग बात है कि बिना किसी औपचारिक जुड़ाव के इन दक्षिणपंथी संगठनों की तरफ से कई सारे ‘गन्दे’ काम उन्हें ‘सौंपे (आउटसोर्स किए) जाते रहते हैं। फिर चाहे वह कर्नाटक में सक्रिय प्रसाद अट्टवार हो या हुबली बम धमाके में मुब्तिला अपराधी नागराज जाम्बागी हो, कंधमाल जिले के दंगों में सक्रिय अपराधी मनोज प्रधान हो या ग्राहम स्टीन्स की हत्या में आजीवन कैद की सज़ा काट रहा दारा सिंह हो।
संवैधानिक एवं असंवैधानिक के बीच की धूमिल रेखा को मद्देनज़र रखते हुए तथा हिन्दुत्ववादी संगठनों द्वारा कायम किए गए आनुषंगिक संगठनों के विशाल ताने-बाने को देखते हुए -जहाँ एक सिरा बिल्कुल संसदीय काम में संलिप्त दिखता है तो दूसरा सिरा विशुद्ध अतिवादी हरकतों में मुब्तिला दिखता है। इसका ताजा प्रमाण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता असीमानन्द की वह अपराधस्वीकृति है जो उसने मजिस्टेट के सामने दी।

- सुभाष गाताडे
क्रमश:

2 टिप्‍पणियां:

Ratan Singh Shekhawat ने कहा…

राष्ट्रीय स्वयं सेवक की कारगुजारियों को हिंदुत्व से जोड़ने वालो तुम्हे शर्म आनी चाहिए | क्या हिंदुत्व का मतलब संघ है ? क्या संघ पुरे हिन्दू समाज का प्रवक्ता है ?

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

भाई अब तो ये भी सोचना पड़ता है इस देश में कि कहीं मजिस्ट्रेट साहब तो आस्था या आतंक के दबाव में नहीं हैं,हो सकता है कि असीमानंद को उल्टा लटका कर इतना धोया गया हो कि वो हर अपराध के पीछे अपनी मुख्य भूमिका स्वीकार ले और वही बोलने लगे तोते की तरह जो "वो"लोग चाहते हों या ये उल्टा लटका कर धोने का अनुप्रयोग जाति,धर्म,भाषा आदि पर विचार करने के बाद करा जाता है?मजिस्ट्रेट अंकल क्रय-विक्रय के दायरे से बाहर होने लगे क्या???
आग्रह मुक्त होकर लिखा....?? और अन्य गैर हिंदू अपराधियों पर भी लिखिये ताकि लोकतान्त्रिकता की सुगंध बनी रहे लेखन में...

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