गुजरात में देशी-विदेशी पूँजी निवेश आकर्षित करने के लिए मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा चलाए जा रहे ‘वाइब्रेंट गुजरात’ का पाँचवा संस्करण पिछले दिनों पूरा हो गया। खबरों के मुताबिक इसमें रिकॉर्ड 7936 सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर हुए जिससे लगभग 20-83 लाख करोड़ से ज्यादा के पँूजी निवेश की संभावना है। निजीकरण को विकास का पर्याय बताने वाली अंग्रेजी मीडिया से लेकर अपनी भाषा से हिंदुत्व की सेवा करने वाले हिंदी अखबारों ने इसे मोदी के विकास के गुजरात माडल की उपलब्धि बताते हुए उन्हें 21वीं सदी में भारत को महाशक्ति बनाने के लिए सबसे उपयुक्त रहनुमा घोषित कर दिया।
गौरतलब है कि ‘वाइब्रेंट गुजरात’ का अभियान भाजपा ने यू0पी0ए0-प्रथम के शासनकाल के मध्य में मोदी के मुस्लिम विरोधी साम्प्रदायिक छवि को बदल कर उन्हें विकासवादी चेहरा देने के लिए शुरू किया था ताकि भाजपा यू0पी0ए0 के कथित विकासवादी नारों से उसी के हथियार से मुकाबला कर सके। इस लिहाज से ‘वाइब्रेंट गुजरात’ को किसी आर्थिक आयोजन के बजाए आजाद भारत के सबसे वीभत्स राज्य प्रायोजित साम्प्रदायिक जनसंहार के खलनायक, जिन्हें सर्वोच्च न्यायालय तक ने ‘रोम के जलने के दौरान बाँसुरी बजाने वाले नीरो’ की संज्ञा दी हो, के मेकओवर की कोशिशों के पाँच साल पूरे होने के बतौर देखना होगा। इस पूरी परिघटना को राजनैतिक नजरिए से इसलिए भी समझना जरूरी है कि मोदी के ‘गुजरात माॅडल’ को विकास के मानक और प्रतीक के बतौर स्थापित किए जाने का मतलब भारतीय लोकतंत्र को टिकाए रखने वाले सबसे महत्वपूर्ण स्तम्भ धर्मनिरपेक्षता से समझौता कर के राज्य को अल्पसंख्यकों के जान-माल के रक्षक के बजाए उनके नस्लीय सफाए के औजार में तब्दील कर देने और इस मानवताविरोधी अपराध को, आवारा पँूजी के निवेश से बनने वाले विशेष आर्थिक क्षेत्रों जैसे ढाँचे खडे़ कर के, जायज ठहराने के तर्क को वैधता मिलना है।
इसलिए नरेंद्र मोदी के इस मेकओवर के प्रयास को सिर्फ एक बदनाम राजनीतिज्ञ को एक अच्छी छवि में ढालने के उपक्रम के बतौर ही नहीं देखा जा सकता, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की बुनियादी
अवधारणाओं के साथ उसके कर्णधारों द्वारा रोज-रोज किए जाने वाले विश्वासघातों के इस दौर में नरेंद्र मोदी, शासकवर्ग द्वारा पूरी राज्य व्यवस्था को अपने अनुकूल मेकओवर करने की कोशिशों के प्रतीक बन जाते हैं।
इसीलिए हम देखते हैं कि मोदी के ‘गुजरात माॅडल’ की प्रशंसक सिर्फ भाजपा शासित राज्यों की सरकारें ही नहीं हैं, बल्कि कांग्रेसी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की
अध्यक्षता वाले योजना आयोग के उपाध्यक्ष और उदारीकरण आधारित विकास के पैरोकार मोंटेक सिंह अहलुवालिया से लेकर उड़ीसा के आदिवासियों को विस्थापित कर के बेशकीमती खनिजों को काओर्पोरेट निगमों को कौडि़यों के दाम बेचने पर उतारू बीजद सरकार तथा विदर्भ को किसानों की मृत्युभूमि बना देने वाली एन0सी0पी0 सरकार तक में इसके समर्थक दिखते हैं, जो गाहे-बगाहे सार्वजनिक तौर पर इसे जाहिर भी करते रहे हैं। जिसमें ताजा नाम हरियाणा की कांग्रेस सरकार के वित्त मंत्री अजय सिंह यादव का है जिन्होंने पिछले दिनों बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस में ‘गुजरात मॅाडल’ को हरियाणा के लिए अनुकरणीय बताया।
दरअसल नरेंद्र मोदी के विकास का ‘गुजरात मॅाडल’ इस वैचारिकी से संचालित है कि विकास सिर्फ और सिर्फ फासीवादी निजाम में ही सम्भव है। यानी अगर आपको विकास चाहिए तो फिर राज्य से सामाजिक सुरक्षा की गारंटी की माँग मत करिए, किसी सोहराबुद्दीन या इशरत जहाँ के फर्जी एंकाउंटर पर सवाल मत उठाइए और अगर आपको इन मुद्दों पर न्याय चाहिए तो हमारे राज्य से बाहर के किसी न्यायालय मंे शरण लीजिए। अब चूँकि राज्य से सुरक्षा और न्याय की गारंटी की सबसे ज्यादा जरूरत स्वाभाविक तौर पर अल्पसंख्यकों, आदिवासियों और दलितों को ही होती है, इसलिए विकास के इस मॅाडल में एक छुपा हुआ निहितार्थ यह भी है कि ये सारे कमजोर तबके विकास में रुकावट हैं। इसलिए, विकास करना है तो इनका सफाया सबसे पहली शर्त है, जिसे राज्य खुद अपनी मशीनरी से अंजाम दे सकता है। नरेंद्र मोदी के विकास के ‘गुजरात माॅडल’ का यही निहितार्थ गैर भाजपा दलों और सरकारों को उसका उपासक बनाता है। आखिर उड़ीसा, महाराष्ट्र, झारखण्ड और आंध्र प्रदेश की गैर भाजपाई राज्य मशीनरियाँ विकास के नाम पर किसका और कैसे सफाया कर रही हैं, यह किससे छिपा हुआ है।
दरअसल विकास का ‘गुजरात माडल’ किसी स्त्री विरोधी अश्लील भोजपुरी गाने जैसा एक द्विअर्थी हथियार है, जिससे आप किसी स्त्री का शाब्दिक बलात्कार भी कर सकते हैं और सवाल उठने पर उसकी कोई दूसरी व्याख्या दे कर अपने को पाक-साफ भी घोषित कर सकते हैं। भगवा ब्रिगेड इस हथियार का अपने सबसे उन्नत प्रयोगशाला गुजरात से सैकडों मील दूर पूर्वोत्तर के नेपाल से सटे तराई इलाकों में कैसे इस्तेमाल करता है, इसका सटीक उदाहरण है। जहाँ भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ के संगठन हिंदू युवा वाहिनी के कार्यकर्ता जुलूसों के दौरान मुस्लिम मुहल्लों से गुजरते वक्त त्रिशूल लहराते हुए ‘यू0पी0 अब गुजरात बनेगा-पूर्वांचल शुरुआत करेगा’ के नारे लगा कर लोगों को दहशतजदा करते हैं, और जब कोई उनसे इसका मतलब पूछता है तब उनका जवाब होता है कि वे पूर्वांचल में गुजरात की तरह विकास करना चाहते हैं।
-शाहनवाज आलम
1 टिप्पणी:
Aabhaar.
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जीवन की हरियाली के पक्ष में।
इस्लाम धर्म में चमत्कार।
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