सोमवार, 4 अप्रैल 2011

भूमि अधिग्रहण के विरुद्ध आंदोलनों को संगठित किया जाना जरूरी है


वर्तमान दौर का भूमि अधिग्रहण मुख्यत: निजी क्षेत्र कि व्यापारिक एवं वाणिज्यिक कम्पनियों के लिए किया बढ़ाया जा रहा है | किसान को जमीन से ,ग्रामीणों को गावं से उजाड़ा व् विस्थापित किया जा रहा है |कम्पनियों को मालिकाने के साथ स्थापित किया जा रहा है |कम्पनियों के स्वार्थ पूर्ति के लिए कृषि भूमि को हडपने की यह नीति डलहौजी की ह्ड्पो नीति से भी ज्यादा गम्भीर खतरनाक एवं व्यापक है।
कुछ साल पहले पश्चिम बंगाल के सिंगुर और नंदी ग्राम के किसानो की भूमि का अधिग्रहण ,देशव्यापी चर्चा का विषय बना हुआ था |पश्चिम बंगाल की सरकार सिंगूर में टाटा मोटर्स के लिए तथा नंदी ग्राम में एक इंडोनेशिया कम्पनी के लिए कृषि भूमि अधिग्रहण कर रही थी | उसे बंगाल के आधुनिक औद्योगिक विकास के लिए आवश्यक बता रही थी |उस अधिग्रहण का व्यापक विरोध हुआ |इसी फलस्वरूप टाटा साहब को अपनी लखटकिया कार का कारखाना गुजरात ले जाना पड़ा |
औद्योगिक एवं व्यापारिक कम्पनियों के हितो में कृषि भूमि का वर्तमान दौर में अधिग्रहण देश के हर प्रान्त में हर क्षेत्र में किया जा रहा है |देश की केन्द्रीय व् प्रांतीय सरकारे पिछले १०-१५ सालो से अधिग्रहण की प्रक्रिया को तेजी के साथ आगे बढाती जा रही है |सत्ता -सरकार में आती जाती रहने वाली सभी राजनीतिक पार्टिया यह काम करती रही है |यह बात दूसरी है की सत्ता से बाहर होने के बाद वे भूमि अधिग्रहण का विरोध कर रहे किसानो का साथ देती दिखाई पड़ जाती है |लेकिन असलियत यह है कि वे भूमि अधिग्रहण का विरोध नही करती बल्कि अधिग्रहण के लिए ज्यादा मुआवजा न देने के लिए सत्तासीन पार्टी के विरोध की राजनीति करती है |फिर सत्ता -सरकार में आने पर अधिग्रहण की उसी प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में लग जाती है |
वतमान दौर में भूमि अधिग्रहण को देश के आधुनिक एवं औद्योगिक विकास के लिए तथा सशक्त रास्ट्र के निर्माण के लिए आवश्यक बताया जा रहा है |देश में बुनियादी ढाचे के विकास के नाम पर ,४ ,६ , ८ लेन की सडको के लिए भूमि अधिग्रहण किया जा रहा है |फिर इस सडको के किनारे व्यापारिक प्रतिष्ठानों .आधुनिक आवासों तथा मनोरंजन स्थलों आदि से सुसज्जित टाउनशिप के निर्माण के लिए भी कृषि भूमि का अधिग्रहण किया जा रहा है |इसके अलवा विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (सेज ) के लिए कृषि भूमि का अधिग्रहण तो १० - १५ साल पहले से ही किया जा रहा है |बताने की जरूरत नही कि,टाउनशिप और विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र के लिए किया जाने वाला अधिग्रहण घोषित और एकदम नग्न रूप में कम्पनियों के हित में किया जा रहा अधिग्रहण है |
इसके अलावा अधिग्रहीत भूमि पर बन रही एक्सप्रेस वे नाम की सडको के निर्माण का ठेका भी बड़ी कम्पनियों के पास ही है |
फिर उन सडको का प्रमुखता से इस्तेमाल भी भारी एवं तेज गति के वाहनों के मालिक व् सेवक ही कर रहे है |फुटपाथियो ,स्किल स्वरों आदि के लिए उसका इस्तेमाल कर पाने की गुंजाइश ही बहुत कम है साफ़ बात है कि सडक निर्माण से लेकर उसके इस्तेमाल तक का सबसे बड़ा लाभ कम्पनियों को ही मिलना है और मिल भी रहा है |
देश के आधुनिक विकास के लिए जमीनों का अधिग्रहण पहले भी किया जाता रहा है |लेकिन २०-२५ साल पहले के भूमि अधिग्रहण में न तो आज जैसी तेजी थी और न ही उसे इतने व्यापक स्तर पर चलाया और बढाया ही जा रहा था फिर उस दौर में गैर कृषिक कार्यो के लिए कृषि भूमि का अधि ग्रहण कम से कम किये जाने की नीति भी आमतौर पर अपनाई व लागू की जा रही थी |इसके अलावा उस दौर के भूमि अधिग्रहण और वर्तमान दौर के भूमि अधिग्रहण में एक और भी प्रमुख अन्तरहै |वह यह कि सरकारों द्वारा पहले का भूमि अधिग्रहण मुख्यत: सार्वजनिक कार्यो के लिए ,प्रत्यक्ष रूप में नजर आने वाले जनहित व जनसेवा के कार्यो के लिए किया जा रहा था |परन्तु १९८५ -९० के बाद यह अधिग्रहण मुख्यत:निजी क्षेत्र के औद्योगिक ,व्यापारिक ,कम्पनियों के लिए किया जा रहा है उन्ही के दिशा -निदेश के अनुसार बुनियादी ढाचे का कई लेन कई सडको आदि का विकास विस्तार किया जा रहा है |यह बात दूसरी है कई देशी व विदेशी कम्पनियों के निजी हितो ,स्वार्थो को भी अब सत्ता -सरकार से लेकर प्रचार माध्यमो तक में रास्ट्रीय -हित सावर्जनिक -हित कहा जाने लगा है |इसी तरह से किसानो द्वारा अधिग्रहण का विरोध भी बताया व् प्रचारित किया जा रहा है |जमीने बचाने के लिए किये जा रहे उनके न्याय संगत विरोध व् आन्दोलन को मुख्यत: ज्यादा मुआवजे के लिए किया जा रहा प्रचारित कर उसे कमजोर करने और तोड़ने का प्रयास भी किया जा रहा है
इन्ही प्रचारों के साथ वर्तमान दौर के भूमि अधिग्रहण को बढ़ाया जा रहा है |किसानो को जमीनों ,ग्रामवासियों को गाँवो से उजाड़ा व् विस्थापित किया जा रहा है |देशी -विदेशी औद्योगिक ,व्यापारिक एवं वाणिज्यिक कम्पनियों को जमीन का मालिकाना देने के साथ स्थापित किया जा रहा है |उनके सेवको को आधुनिक साधनों -सुविधाओ के साथ आवासित किया जा रहा है |उसके लिए सरकारे उन्हें हर तरह की छूटे -सुविधाए दी जा रही है |
कम्पनी हित में कृषि भूमि के बढ़ते अधिग्रहण का दूसरा व अहम पहलू यह भी है की बढ़ते अधिग्रहण के साथ अराजक रूप से बढ़ते शहरीकरण के साथ कृषि भूमि के रकबे में हो रही कमी को उपेक्षित किया जा रहा है |सरकारों द्वारा खाद्यान्नों के उत्पादन वृद्धि दर में आ रही कमी की स्वीकारोक्ति तथा खाद्यान्नों की बढती महंगाई के बावजूद यह उपेक्षा की व बढाई जा रही है |
औद्योगिक एवं व्यापारिक कम्पनियों के बढ़ते लाभों के चलते खेती के बढ़ते रहे संकटो के साथ अब उद्योग व्यापर के बड़े मालिको के स्वार्थपूर्ति के लिए कृषि भूमि को हडपने की नीति अपनाई व लागु की जा रही है |वर्तमान दौर की यह' भूमि हड्पो नीति 'डलहौजी नीति से कंही ज्यादा खतरनाक एवं व्यापक है |यह केवल किसानो का ग्रामवासियों का विस्थापन ही नही बल्कि राष्ट्र की आम जनता को खाद्यान्नों के अभाव में महगाई में और ज्यादा फंसाना भी हैं ,उन्हें भुखमरी झेलने के लिए मजबूर करना भी है|
लिहाज़ा कम्पनी कम्पनी हित में चलाये बढाये जा रहे कृषि भूमि के अधिग्रहण का विरोध किये जाने की आवश्यकता है |
देश -प्रदेश में जगह -जगह किसानो के अधिग्रहण के विरोध व आन्दोलन को समर्थन देने की आवश्यकता है |सभी क्षेत्र के ग्रामीणों व किसानो द्वारा कम्पनियों के हित में किए जा रहे अधिग्रहण के विरोध के लिए आगे आने की आवश्यकता है देश के खाद्यान्न उत्पादन के रकबे के अधिग्रहण के विरोध के लिए खाद्यान्नों की महगाई झेल रहे कृषक हिस्सों को भी आगे आने की आवश्यकता है |
उन वैश्वीकरण नीतियों ,सम्बन्धो के विरोध की आवश्यकता है ,जिसके अंतर्गत किसानो व कृषि क्षेत्र के संकटो को तेजी से बढ़ते जाने के साथ अब कृषि भूमि के हडप लेने की प्रक्रिया को भी बढ़ाया जा रहा है |
भूमि अधिग्रहण के लिए इस तर्क का सहारा लेना कत्तई गलत है कि सरकार ही जमीन की वास्तविक मालिक है |इसलिए वह इसका अधिग्रहण जब चाहे कर सकती है |
यह कहना सरकारों द्वारा व्यापक किसानो ,ग्रामीणों ,की उपेक्षा को गावं व जमीन से अन्यायपूर्ण बेदखली को न्याय संगत ठहराना है |अधिग्रहीत भूमि का कम्पनियों को किया जा रहा अन्यायपूर्ण हस्तांतरण को उचित ठहराना है |
सही बात तो यह है कि भूमि अधिग्रहण का मौजूदा दौर और उस पर गढ़े जाने वाले उपरोक्त तर्क भी इसबात की पुष्टि करते है ,देश की सत्ता सरकारे भले ही अपने आप को जनतान्त्रिक सरकारे कहती है ,लेकिन उनका असली काम कम्पनी राज व सरकारे करती है , लेकिन उनका असली काम क्म्पब्नी राज व सरकार का ही है इसका सबूत उन तमाम कानूनों में ,भूमि अधिग्रहण कानून (१८९४ )में भी देखा जा सकता है ,जिसे ब्रिटिश सत्ता के काल में बने कानूनों का वर्तमान राज व सरकार द्वारा संचालन ,उसके स्वतंत्र राज व जनतान्त्रिक राज होने का नही ,अपितु कम्पनी राज होने का सबूत है |

सुनील दत्ता
पत्रकार
09415370672

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