यह किसानो की खेती में बढ़ायी जा रही मुहताजी का अगला चरण है विदेशी निवेश को बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा एक नया परिपत्र "एकीकृत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश परिपत्र " जारी कर दिया गया है |इस नये परिपत्र के जरिये बीजो के उत्पादन एवं विकास में विदेशी निवेश को खुली छूट की इज़ाज़त दे दी गयी है | अब इस छूट के बाद विदेशी कम्पनिया ,बिना किसी रोक - टोक के ,या बिना पूर्व शर्त के कृषि के बीज क्षेत्र में प्रवेश कर सकती है |अब कोई भी भी विदेशी कम्पनी खाद्यान्न के बीजो ,सब्जी ,बागबानी यहा तक कि मछली पालन और पशुपालन के लिए भी बीजो के उत्पादन व विकास का काम कर सकती है |सरकार और देश के प्रचार माध्यम कृषि में प्रत्यक्ष निवेश को तथा विदेशी कम्पनियों की छुट को दूसरी हरित क्रांति का रास्ता बता रहे है |कंही भी ,किसी भी प्रमुख पार्टी द्वारा इसका कोई कारगर विरोध नही किया जा रहा है |जाहिर सी बात है की पूरा शासकीय हल्का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए तैयार है |यह तैयारी पहले से चल रही है |खेती में डंकल -प्रस्ताव लागू किये जाने के बाद खेती पर विदेशी कम्पनियों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष अधिकारों में तेज़ी से बढ़ाव शुरू हो गया था |आप को याद होगा कि ,डंकल -प्रस्ताव की खेती पर लागू होने वाली प्रमुख धारा "ट्रिप्स " के अंतर्गत ,विदेशी साम्राज्यी ताकतों और उनकी बहुराष्ट्रीय बीज कम्पनियों ने आधुनिक शोधित बीजो पर अपना पेटेंटी अधिकार मान लेने यानी सर्वेसर्वा अधिकार मान लेने का प्रस्ताव किया था |जनवरी १९९५ में डंकल -प्रस्ताव को स्वीकार किये जाने के बाद स्वाभाविक रूप से उन्हें यह अधिकार मिल भी चुका है |इसके बाद यह सभी जानते है की खेती की लागत का तेज़ी से बढना ,खेती में सरकारी छूटो व सुविधाओं में तेज़ी से कमी आना ,सरकारों द्वारा सिचाई जैसी बुनियादी व सावर्जनिक ढाचे को उपेक्षित किया जाना ,विदेशो से महगे अनाजो का आयात किया जाना ,परन्तु देश के किसानो को बढती लागत के मुकाबले भी कम मूल्य दिए जाने आदि की प्रकिर्या लगातार बढती रही है |फलस्वरूप खेती में किसान का घाटा तेज़ी से बढ़ता रहा है |किसानो का खासा बड़ा हिस्सा संकटोमें ,कर्जो में फसने के लिए मजबूर होता रहा है |
डंकल -प्रस्ताव को स्वीकार करने के ४ - ५ साल बाद से ,यानी 2000 से लेकर 2010 तक की सरकारी रिपोर्टो के अनुसार २ लाख ६० हजार किसान आत्महत्याए कर चुके है |वास्तविक संख्या इससे कंही ज्यादा होगी या है |फिर अभाव ग्रस्तता के चलते निरंतर होते जीवन के क्षरण से टूटने व मरने वालो की संख्या तो और ज्यादा होगी |इसी बीच धनाढ्य कम्पनियों द्वारा ठेके पर खेती (अनुबंध खेती )करने का सिलसिला भी चालू हुआ |किसानो की खेती ठेके पर लेकर उनसे अपने खेत में मजदूरी कराने और ज्यादा से ज्याद लाभ कमाने के कुछ सालो बाद आमतौर पर खेतो को अन -उपजाऊ बनाकर वे कम्पनिया चम्पत भी होती रही है| अब नई हरित क्रांति के रूप में अनुबंध खेती ,ठेके पर खेती ,कार्पोरेट खेती की वकालत की जा रही है |इसे आगे बढाया जा रहा है |और इस तर्क के साथ बढाया जा रहा है कि आम किसान खेती में लागत लगा पाने में कमजोर है| अत: अनुबंध खेती के जरिये ,अपनी लागत के बोझ से किसान समुदाय मुक्ति पा सकते है| इससे खेती के उत्पादन में वृद्धि भी कंही ज्यादा हो जाएगी |इन प्रचारों के विपरीत ,अभी तक होती रही अनुबंध खेती के जरिये खाद्यान्न उत्पादन को तो आमतौर पर कंही बढावा नही मिल पाया है |इसमें नकदी फसलो के उत्पादन को ही बढावा मिलता रहा है और वह भी अस्थायी रूप में| अब विदेशी बीज कम्पनियों को बीज उत्पादन व विकास में निवेश की पूरी छुट देकर ,किसानो द्वारा अपने बीजो के उत्पादन व विकास पर पूर्ण विराम लगाने का काम हो रहा है |सरकारों द्वारा बीज के उत्पादन व विकास के काम से पूरी तरह हाथ खीच लेने का भी काम हो रहा है |खेती को देशी धनाढ्य कम्पनियों के साथ ,विदेशी कम्पनियों के हवाले किये जाने के काम को आगे बढाया जा रहा है |
डंकल -प्रस्ताव को स्वीकार करने के ४ - ५ साल बाद से ,यानी 2000 से लेकर 2010 तक की सरकारी रिपोर्टो के अनुसार २ लाख ६० हजार किसान आत्महत्याए कर चुके है |वास्तविक संख्या इससे कंही ज्यादा होगी या है |फिर अभाव ग्रस्तता के चलते निरंतर होते जीवन के क्षरण से टूटने व मरने वालो की संख्या तो और ज्यादा होगी |इसी बीच धनाढ्य कम्पनियों द्वारा ठेके पर खेती (अनुबंध खेती )करने का सिलसिला भी चालू हुआ |किसानो की खेती ठेके पर लेकर उनसे अपने खेत में मजदूरी कराने और ज्यादा से ज्याद लाभ कमाने के कुछ सालो बाद आमतौर पर खेतो को अन -उपजाऊ बनाकर वे कम्पनिया चम्पत भी होती रही है| अब नई हरित क्रांति के रूप में अनुबंध खेती ,ठेके पर खेती ,कार्पोरेट खेती की वकालत की जा रही है |इसे आगे बढाया जा रहा है |और इस तर्क के साथ बढाया जा रहा है कि आम किसान खेती में लागत लगा पाने में कमजोर है| अत: अनुबंध खेती के जरिये ,अपनी लागत के बोझ से किसान समुदाय मुक्ति पा सकते है| इससे खेती के उत्पादन में वृद्धि भी कंही ज्यादा हो जाएगी |इन प्रचारों के विपरीत ,अभी तक होती रही अनुबंध खेती के जरिये खाद्यान्न उत्पादन को तो आमतौर पर कंही बढावा नही मिल पाया है |इसमें नकदी फसलो के उत्पादन को ही बढावा मिलता रहा है और वह भी अस्थायी रूप में| अब विदेशी बीज कम्पनियों को बीज उत्पादन व विकास में निवेश की पूरी छुट देकर ,किसानो द्वारा अपने बीजो के उत्पादन व विकास पर पूर्ण विराम लगाने का काम हो रहा है |सरकारों द्वारा बीज के उत्पादन व विकास के काम से पूरी तरह हाथ खीच लेने का भी काम हो रहा है |खेती को देशी धनाढ्य कम्पनियों के साथ ,विदेशी कम्पनियों के हवाले किये जाने के काम को आगे बढाया जा रहा है |
यह कृषि के बीज व विकास के लिए विदेशी निवेश को ,विदेशी कम्पनियों को छूट देना ही नही है |बल्कि किसानो को बीज के लिए मुहताज बनाना भी है |किसानो के बीज पर अधिकारों को काटते -घटाते जाना भी है |यह एक प्रक्रिया है जो पहले हरित क्रांति के जरिये धीरे -धीरे चलायी बढ़ाई गयी और अब इसे तेज़ी से बढाया जा रहा है |पहले उनसे उनके परम्परागत बीज छीने गये ,फिर शोधित बीजो की समय पर आपूर्ति में कमी से उसकी मंहगाई को बढाकर किसानो की कम्पनियों के बीजो पर निर्भरता बढ़ाई गयी |खेती पर डंकल -प्रस्ताव के पेटेन्ट कानून लागू कर बीजो के उत्पादन व विकास पर किसानो के स्वाभविक अधिकार को लुटेरी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को सौप दिया गया और अब उन्ही को बीज के उत्पादन व विकास का प्रत्यक्ष अधिकार दिया जा रहा है |इसी के साथ किसानो की जमीनों को हडपने का काम भी लगातार बढ़ता जा रहा है |सरकार के अगले परिपत्रो के द्वारा किसानो की जमीनों पर विदेशी कम्पनियों को पूर्ण मालिकाने का अधिकार भी जरुर मिल जाएगा |यह दशा है ,किसानो से खेती -किसानी करने और जमीनों के मालिकाने के अधिकारों को छीनते जाने की |स्वाभाविक तौर पर डंकल -प्रस्ताव और इन तमाम परिपत्रो के प्रति अपने विरोधो को उठाना और उसे संगठित करना अब मुख्यत:किसानो का ही कार्यभार है |
जागो -जागो दोस्तों अब अपनी आँखे बंद मत रखो उठो अगर हमारी जमीन हमारी ही नही रही तो हम कंहा रहेगे ?
पत्रकार
09415370672
1 टिप्पणी:
इस सरकारी परिपत्र का रामदेव या हजारे तो विरोध करने से रहे.इन घ्रणित प्रस्तावों की हम घोर निंदा करते तथा सर्कार से इन्हें वापिस लेने की मांग करते हैं.
एक टिप्पणी भेजें