गुरुवार, 9 जून 2011

कोई सुबह नहीं है जिसकी शाम नहीं होती ....

फोटो सुलेखा से
कोई सुबह नहीं है जिसकी शाम नहीं होती
ऐसी भी जंग होती है जहाँ तलवार नहीं होती
पीछे हट जाने से भी देखो सदा हार नहीं होती
दुश्चक्रों में घिरकर सूरज रश्मि भी रोती है
आभा कम होती है पर अन्धकार नहीं होती
दरिया मुड़ता है टकराकर सख्त पहाड़ों से
सोचे न कोई भूल से उसमें धार नहीं होती
राजनीति भी रण है एक और नहीं है कुछ
बे-बस जन की आह भी बे-आवाज़ नहीं होती
बक्त करेगा न्याय अगर सत्ताधारी सोते हैं
कोई सुबह नहीं है जिसकी शाम नहीं होती

केदारनाथ "कादर"

7 टिप्‍पणियां:

Arunesh c dave ने कहा…

सत्य ही लिखा आपने इनका नंबर भी आयेगा

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

कोई रात भी नहीं जिस की सहर न हो।

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

यथार्थ अभिव्यक्ति.

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

सचमुच, उम्‍मीद पर ही कायम है दुनिया।

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बाबूजी, न लो इतने मज़े...
चलते-चलते बात कहे वह खरी-खरी।

गोविन्द मिश्र "अजीब" ने कहा…

केदार भाई,
जय श्री कृष्णा,

आपके लेखन का कोई भी जवाब नही ....

BrijmohanShrivastava ने कहा…

बढिया कविता पढवाने धन्यवाद

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

bahut khoob, bahut umdaa aur prabhaavshali, badhai Kedar ji.

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