उत्तर प्रदेश में डॉ बी.पी सिंह की हत्या के अभियुक्त डॉ वाई.एस सचान कि हत्या जिला कारागार लखनऊ में कर दी गयी। उत्तर प्रदेश शासन के अधिकारियो ने प्रथम द्रष्टया आत्महत्या का मामला माना है जिसकी प्रथम सूचना रिपोर्ट लखनऊ के गोसाईंगंज थाने में दर्ज की गयी है। डॉ सचान का शव कारागार के अस्पताल की दूसरी मंजिल पर निर्माणाधीन शौचालय में पाया गया था। डॉ सचान का शव बेल्ट से लटका हुआ था। हाथों की नसें कटी हुई थीं और शव के ऊपर चोटों के भी निशान थे। मेडिकोलीगल विशेषज्ञों के अनुसार कोई भी व्यक्ति हाथ की नसें काट कर फांसी नहीं लगा सकता है अगर फांसी लगाएगा तो हाथ की नसें नहीं काट सकता है। शव की दशा देख कर ही प्रथम द्रष्टया आत्महत्या का मामला न होकर हत्या का सीधा-सीधा मामला है। उत्तर प्रदेश में हाई प्रोफाइल मामलों में पोस्टमार्टम रिपोर्ट तैयार करने वाले डॉक्टर शासन और प्रशासन की मंशा के अनुरूप हेर-फेर करते हैं। जिसका ताजातरीन उदहारण लखीमपुर निघासन थाने की पुलिस द्वारा की गयी हत्या के पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दिखाई दी।
डॉ वाई.एस सचान सी.एम.ओ परिवार कल्याण डॉ बी.पी सिंह की हत्या के आरोपी थे। विवेचना चल रही थी करोडो रुपये के घोटाले सामने आ रहे थे। सत्तारूढ़ दल के कई नेताओं का नाम सामने आ रहा था और डॉ सचान की हत्या कारागार में हो जाती है। इससे पूर्व 2006 में कविता चौधरी हत्याकांड के मुख्य अभियुक्त रवीन्द्र प्रधान की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गयी थी। आतंकवाद के आरोप में कारगार में निरुद्ध आरोपी शकील की जहर देकर हत्या हो गयी थी। अन्नु त्रिपाठी की हत्या वाराणसी जेल में हुई थी। कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश में कारागारों की स्तिथि बहुत बुरी है। उत्तर प्रदेश में 2008 में 295 मौतें हुई थी। गंभीर अपराधों में कानून न्याय का कोई अर्थ नहीं रहता है। बड़े अधिकारीयों और नेताओं को बचाने के लिये लोगों को बलि का बकरा बनाया जाता है।
सुमन
लो क सं घ र्ष !
डॉ वाई.एस सचान सी.एम.ओ परिवार कल्याण डॉ बी.पी सिंह की हत्या के आरोपी थे। विवेचना चल रही थी करोडो रुपये के घोटाले सामने आ रहे थे। सत्तारूढ़ दल के कई नेताओं का नाम सामने आ रहा था और डॉ सचान की हत्या कारागार में हो जाती है। इससे पूर्व 2006 में कविता चौधरी हत्याकांड के मुख्य अभियुक्त रवीन्द्र प्रधान की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गयी थी। आतंकवाद के आरोप में कारगार में निरुद्ध आरोपी शकील की जहर देकर हत्या हो गयी थी। अन्नु त्रिपाठी की हत्या वाराणसी जेल में हुई थी। कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश में कारागारों की स्तिथि बहुत बुरी है। उत्तर प्रदेश में 2008 में 295 मौतें हुई थी। गंभीर अपराधों में कानून न्याय का कोई अर्थ नहीं रहता है। बड़े अधिकारीयों और नेताओं को बचाने के लिये लोगों को बलि का बकरा बनाया जाता है।
सुमन
लो क सं घ र्ष !
4 टिप्पणियां:
हतप्रभ हूँ !
YHAN KUCHH BHI HO SAKTA 'SUMAN JI''...KAASH....????????
लगता है आप भी दलित विरोधी है इसीलिए दलित सरकार पर ऐसे आरोप लगा रहे है :)
यही कहेगी ना मायावती अपनी गर्दन बचाने !!
बिलकुल सही आंकलन दिया है आपने.
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