सोमवार, 27 जून 2011

यह ‘न्याय’ नहीं न्याय का ढकोसला है श्रीमान ओबामा!

इसे इतिहास की एक भारी विडंबना नहीं तो और क्या कहेंगे कि जो अमरीकी ओसामा बिन लादेन की हत्या के बाद न्यूयार्क के ‘ग्राउंड जीरो’ पर एकत्रित होकर ‘थैंक यू ओबामा’ का उन्मादपूर्ण नारा लगा रहे थे उन्हीं अमरीकियों को यह भरोसा दिलाने के लिए कि वह भी शुद्ध ‘अमरीकी’ हैं, राष्ट्रपति ओबामा को कुछ ही समय पूर्व अपना जन्म प्रमाणपत्र पेश करना पड़ा था। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी ओबामा की ख्याति ओसामा की हत्या के पूर्व तक कितनी गिरी हुई थी इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत सहित कुछ ही देशों में खेले जाने वाले क्रिकेट के हमारे धुरंधर धोनी के बराबर भी वह खड़े दिखाई नहीं देते थे। लेकिन अब स्थिति यह है कि ओसामा की हत्या की उनकी अपनी योजना की कामयाबी के बाद अमरीका के दो पूर्व राष्ट्रपतियों क्लिंटन तथा बुश सहित दुनिया के ढेर सारे राष्ट्राध्यक्षों/राजनेताओं की ओर से राष्ट्रपति ओबामा की प्रशंसा में कसीदे पढ़े जा रहे हैं।
आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जिस सर्वशक्तिमान अमरीकी राष्ट्रपति को अपनी अमरीकी नागरिकता तक को साबित करने के लिए मशक्कत करनी पड़ रही थी और जो लोकप्रियता के मामले में धोनी से भी नीचे के पायदान पर खड़ा था, वह कितने बुरे दिनों और शर्मनाक स्थिति का सामना कर रहा था और अपनी इन्हीं गिरी हुई स्थितियों में राष्ट्रपति ओबामा को तकरीबन आठ माह बाद होने वाले अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव के लिए भी अपने को तैयार रखना था। सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन भारी दुष्वारियों की कीचड़ में गहरे धँसे राष्ट्रपति ओबामा को इससे उबरने के लिए किसी ‘जादू की छड़ी’ की कितनी सख्त आवश्यकता थी? और, देखा जाए तो अपने नेवी सील्स कमांडो द्वारा निहत्थे ओसामा की हत्या का लाइव दृश्य देखे जाने के तुरंत बाद राष्ट्रपति ओबामा ने दंभपूर्वक जो वाक्य कहे-‘‘न्याय हो गया’’- वह ठीक उसी जादू की छड़ी की प्राप्ति की एक तरह से अभिव्यक्ति थी। अन्यथा, अमरीकी राष्ट्रपति की नजर में ‘न्याय’ की अवधारणा कैसी है, इसका क्रूरतम् और निर्लज्जतम मिसाल तो उसने उसी पाकिस्तान की धरती पर ओसामा की हत्या किए जाने के कुछ माह पूर्व ही दे दिए थे। गुप्तचर सेवा के दो दुस्साहसिक अमरीकियों द्वारा दो पाकिस्तानी नागरिकों को सरेआम गोली मार कर हत्या किए जाने की जघन्य घटना से पूरा पाकिस्तानी जनमानस स्तब्ध था। यह किसी भी देश की संप्रभु सरकार की नैसर्गिक न्याय प्रक्रिया का स्वाभाविक तकाजा है कि वह अपने नागरिकों के हत्यारे चाहे वे विश्व के सबसे ताकतवर देश के नागरिक ही क्यों न हों, को कानून के कटघरे में लाकर न्यायोचित सजा दिलाने के अपने अधिकार का दृढ़तापूर्वक पालन करे। दुनिया ने देखा कि पाकिस्तान की सरकार उन दो हत्यारे अमरीकी नागरिकों के साथ ठीक यही तो कर रही थी। लेकिन न्याय का दंभ भरने और दुनिया को सभ्यता का पाठ पढ़ाने वाले ओबामा प्रशासन को यह कतई मंजूर न हुआ। उसने पाकिस्तान सरकार के हाथों को इस नंगई और निर्ममता के साथ मरोड़ना शुरू कर दिया कि उसे दोनों हत्यारों को अपनी न्याय प्रक्रिया से गुजारे बिना छोड़ देना पड़ा।
यह ठीक है कि अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी ओसामा बिन लादेन एक नहीं, दो नहीं, सैकड़ों नहीं बल्कि हजारों अमरीकियों तथा विश्व व अन्य कई देशों के नागरिकों की जघन्य हत्या का कसूरवार था- वह मौत की सजा पाने से कम का हकदार नहीं था। लेकिन पूरे विश्व ने जब यह जाना, स्वयं अमरीकी प्रशासन की स्वीकारोक्ति द्वारा, कि धावा बोलने वाले अमरीकी सैनिक यदि चाहते तो बिल्कुल निहत्था और नितांत प्रतिरोधविहीन ओसामा को बड़ी आसानी से बंदी बनाया जा सकता था, बजाय इसके उन्होंने उसे वहीं ढेर कर दिया तो यह समस्त न्यायप्रिय लोगों के मन में एक तरह से जुगुप्सा जगा देने वाली बात थी। यह तो आधुनिक इतिहास में मानवता के सबसे बड़े अपराधी हिटलर के लापता हत्यारे सहयोगियों को पकड़े जाने पर भी न हुआ था। उन्हें उनके पनाहगाहों में धावा बोलकर ढेर नहीं किया गया था बल्कि अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के कटघरे में उन्हें घसीट लाया गया और न्याय प्रक्रिया की लंबी अवधि से गुजरते हुए अंततः उन्हें फाँसी के तख्ते तक पहुँचाया गया।
लेकिन अपने समय के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा को ओसामा बिन लादेन के साथ ऐसा करना था भी क्या? पहली बात तो यह कि आतंकवादी ओसामा हिटलर की तरह किसी देश का कोई स्वायत्त शासक नहीं था। वह अफगानिस्तान में सोवियत फौजों के खिलाफ अमरीकी लड़ाई में स्वयं अमरीका द्वारा खड़े किए गए भाड़े के सैनिकों के एक गिरोह का तथाकथित धार्मिक उन्मादी सरदार था। दूसरी बात यह कि अमरीकी धन और हथियारों से सींच कर ही वह तैयार किया गया और अंततः अमरीकियों के ही खून का प्यासा बन बैठा। जिस लापता भस्मासुर अर्थात् ओसामा बिन लादेन को वर्षों से अमरीकी प्रशासन तलाश रहा था वह दरअसल लापता था ही नहीं। जैसा कि लादेन के खिलाफ 4 ‘हेलिकाप्टरों, 40 मिनट और 25 सैन्य कमांडो की इस दुर्दांत अमरीकी कार्रवाई- जिसका कूटनाम दिया गया जेरोनिमो ई0के0आई0ए0, की पूरी अन्र्तवस्तु को बारीकी से देखने से साफ जाहिर है। कहा जाता है कि पाकिस्तान के अत्यंत सामरिक महत्व के शहर एबटाबाद में जिस आलीशान हवेली में धावा बोल कर ओसामा की हत्या की गई थी, धावा बोलने वाले अमरीकी कंमाडों वैसी ही हवेली का निर्माण कर काफी दिनों तक ‘आपरेशन ओसामा’ का रिहर्सल करते रहे थे। यह बात स्वयं अमरीकी पक्ष की तरफ से जाहिर की गई है। लेकिन जो बात छिपा ली गई है क्या लगता नहीं है कि वह ठीक वही बात है जो इस पूरी कार्रवाई से अपने आप साफ झलकती नजर आती है।
2001 में वल्र्ड ट्रेड सेंटर को जमींदोज किए जाने के बाद अमरीका को अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन की तकरीबन 10 वर्षों से तलाश थी। इस तलाश में उसके साथ पाकिस्तान भी साझीदार था। इसके एवज में अमरीका को अपनी अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी लड़ाई में इस तथाकथित विश्वस्त सहयोगी को प्रतिवर्ष अकूत धन देने पड़ते थे। कहते हैं कि इस वर्ष ही पाकिस्तान अपनी इस सहयोगी भूमिका के लिए 3 अरब डालर अमरीका से वसूलने वाला था। पूरे दो दशक बीतने के बाद ओसामा रविवार की आधी रात को जब मार गिराया गया तो अफगानिस्तान के राष्ट्रपति करजई के ये शब्द खासे मायने रखते हैं, ‘‘अमरीकियों ने लादेन को लोगान में नहीं पाया और न ही वह उन्हें कंधार में मिला या काबुल में, उन्हें वह पाकिस्तान के एबटाबाद में मिला।’’ और बेहद तड़प के साथ उन्होंने आगे यह भी कहा, ‘‘पिछले दस वर्षों से हम जो कह रहे थे, नाटो व दुनिया ने उसे कभी नहीं माना। हम झुलसते रहे और अब ओसामा एबटाबाद में मारा गया।’’
करजई के इस तड़प भरे वक्तव्य के गहरे निहितार्थ हैं। यानी अमरीका को चाहिए था एक ऐसा सबल बहाना जिसका वास्ता देकर वह अफगानिस्तान में अपनी फौजी उपस्थिति और आए दिन तथाकथित आतंकवादी अड्डों के सफाया के नाम पर ड्रोन हमलों में निरीह नागरिकों की हत्या के अपने घिनौने कृत्य को जायज ठहरा सके। पाकिस्तान को भी चाहिए था एक ऐसा हथियार जिसका आतंक दिखाकर अपने दिवालिया अर्थतंत्र के लिए अकूत अमरीकी धन के निरंतर आमद की व्यवस्था को बनाए रख सके। जाहिर है, अमरीका और पाकिस्तान दोनों के अत्यंत पाप भरे इन स्वार्थों की पूर्ति के लिए सबसे अचूक उपाय था ओसामा बिन लादेन के अस्तित्व को लंबे समय तक बनाए रखना। अपनी-अपनी सरकारों के निर्देश पर सी0आई0ए0 तथा आई0एस0आई0 के चतुर नक्शानवीसों ने मिलकर ही ओसामा के लिए वह नक्शा बनाए होंगे जिसके घेरे में अपने मारे जाने के दिन तक सुरक्षित पनाह पाता रहा था। करजई का इशारा भी कि ‘‘पिछले दस वर्षों से हम जो कह रहे थे, नाटो व दुनिया ने उसे कभी नहीं माना, और अब ओसामा एबटाबाद में मारा गया है’’, इसी नापाक नक्शे को बेपर्दा करता जान पड़ता है। ओसामा तो लगता है सर्वशक्तिमान अमरीका को हिला देने वाले 9/11 कांड के बाद से ही सी0आई0ए0 तथा आई0एस0आई0 के इस संयुक्त नक्शे के घेरे में आ चुका था और जिसकी अफगानिस्तान के राष्ट्रपति करजई को अच्छी तरह से भनक मिल चुकी थी।
यह तो कहिए कि विश्व में आई आर्थिक सुनामी में अमरीकी अर्थतंत्र के ढहने के साथ-साथ राष्ट्रपति ओबामा की लोकप्रियता भी तेजी से लुढ़कने लगी थी और इस खास कारण ने ओबामा को भारी बेचैनी मंे डाल दिया। जैसा कि बताया जा चुका है, संसार का यह सबसे ताकतवर राष्ट्रपति धोनी जैसे शख्स से भी लोकप्रियता के मामलों में पिट गया था तो फिर ऐसी अपमानजनक स्थिति में बने रहकर ओबामा पुनः अगला राष्ट्रपति चुने जाने का ख़्वाब क्या खाक देखते! यहीं पर चाहिए थी ओबामा को अभी और इसी वक्त एक ऐसी ‘जादू की छड़ी’ जो उनकी लुढ़कती लोकप्रियता पर चमत्कारिक रूप से रोक तो लगा ही दे आगामी राष्ट्रपति चुनाव में उनकी जीत की गारंटी भी दिला सके। फिर क्या था, यहीं से उस रंगमंच और उस पर खेले जाने वाले नाटक के निर्माण की कथा शुरू हो जाती है जिसके घोर घिनौने प्रदर्शन के स्तब्धकारी रोमांच से दुनिया अभी भी उबर नहीं पाई है।
कथा यह गढ़ी गई कि नाटक के अंतिम प्रदर्शन अर्थात् ‘आॅपरेशन ओसामा’ के मामले में बेचारे पाकिस्तान को बिल्कुल नामालूम सी स्थिति में रखा गया था। यह इसलिए भी जरूरी था कि यदि यह जरा भी उजागर हो जाय कि इस नाटक के कथानक की तैयारी में सी0आई0ए0 तथा आई0एस0आई0 दोनों की बराबर की भागीदारी थी तो पाकिस्तानी सत्ता केन्द्र को तो अपने ही नागरिकों के प्रचंड क्रोध की ज्वाला में भस्म हो जाना तय था। अगर यह सच नहीं होता तो अमरीकी नेवी सील्स कमांडो के वीर बाँकुरों की उस अत्यंत सुरक्षित और आई0एस0आई0 द्वारा संरक्षित एबटाबाद की हवेली में सीधे उतरते नानी मर गई होतीं। और, अमरीकी प्रशासन भला इस भारी जोखिम में अपने सैनिकों को डालता ही क्यों जिसके लिए अफगानिस्तान की धरती पर बेपनाह ड्रोन हमलों में अनगिनत बेगुनाह लोगों की हत्या एक सामान्य घटना से अधिक शायद ही और कुछ रह गया हो! यहाँ तो मामला ओसामा जैसे दुनिया के सबसे घिनौने आतंकवादी का था जिसके पनाहगाह पर सीधे ड्रोन हमला करके उसे मारने की कार्रवाई पर शायद ही कोई भारी हंगामा खड़ा होता और यदि इस ड्रोन हमले में ओसामा के साथ-साथ उसके आसपास के मकानों में रहने वाले भी मारे गए होते तो भी अमरीका के लिए यह कोई भारी शर्मिंदगी की बात नहीं होती।
लेकिन यहाँ तो पर्दा उठने के पहले रंगमंच के एक-एक कोने को मानो प्रशिक्षित कुत्तों की तरह अमरीकी कमांडो को सुंघा दिया गया था और आॅपरेशन ओसामा के कई-कई रिहर्सल भी करा दिए गए थे। ऐन वक्त पर पाकिस्तान की तरफ से ‘मैदान साफ है’ की हरी झंडी दिखा दी गई थी। पाकिस्तानी पक्ष का अरज तो बस इतना ही था कि ‘माई बाप’! इस पूरे कांड में पाकिस्तान के गायब रहने के ढोंग को फैलाने में कोई चूक न होने पाए।’ अमरीकी प्रशासन ने सचमुच इस ढोंग को प्रचारित/प्रसारित करने में कोई कोताही नहीं बरती।
अंततः राष्ट्रपति बराक ओबामा के शब्दों में ‘न्याय हो गया।’ इसी के साथ दुनिया ने यह भी देख लिया कि जो अमरीकी ओबामा नाम से आजिज आने लगे थे आज वे ही न्यूयार्क की सड़कों पर ‘थैंक यू ओबामा’ का उन्मादपूर्ण नारा लगा रहे थे। अर्थात् कहना यह पड़ेगा कि ओबामा का ‘आॅपरेशन जादू की छड़ी’ पूरी तरह कामयाब रहा। मगर दुनिया के समस्त न्यायप्रिय लोगों के मन-मस्तिष्क को बुरी तरह से मथ रहे इस प्रचंड प्रश्न का ओबामा क्या जवाब देंगे कि निहत्थे ओसामा को न्याय के कटघरे में खड़ा करके उससे उसके गुनाहों की स्वीकृति सुनने और अंततः उसे सभ्य तरीके से फाँसी तक ले जाने के बजाय उसे वहीं ढेर कर देने की कायरतापूर्ण कार्रवाई क्यों की गई? किस ‘न्याय’ के तहत, पाकिस्तानी सत्ता केन्द्र, साथ ही उसकी पूरी न्याय प्रणाली की बाँह निर्ममतापूर्वक मरोड़ते हुए अपने दो हत्यारे अमरीकी नागरिकों को उड़ा ले जाया गया, राष्ट्रपति ओबामा से दुनिया भर के न्यायप्रिय लोगों का एक सवाल यह भी है और जब तक इन बातों का ठोस जवाब नहीं मिल जाता तब तक कहना यह पड़ेगा कि ‘‘श्रीमान ओबामा यह न्याय नहीं न्याय का ढकोसला है!’’

-सुमन्त
मो0:- 09835055021

3 टिप्‍पणियां:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत बढिया व विचारणीय पोस्ट लिखी है।आभार।

vijai Rajbali Mathur ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
vijai Rajbali Mathur ने कहा…

जब तक अमरीका का जंगल राज है तब तक जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत चरितार्थ होती रहेगी.

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