
“सभ्यताओं के टकराव“ के सिद्धांत से ही जन्मी है यह मान्यता कि सभी आतंकी मुसलमान होते हैं। यह मानने में किसी को कोई गुरेज नहीं हो सकता कि अमरीका द्वारा स्थापित किए गए मदरसों में मुस्लिम युवकों को निर्दयता से निर्दोष पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को मारने के लिए प्रायोजित किया गया था परंतु हमें यह भी याद रखना चाहिए कि भारत में हुए आतंकी हमलों के बाद पकड़े गए अधिकांश मुस्लिम युवक, अंततः निर्दोष साबित हुए।
यह सोचना भी गलत है कि भारत में आतंकी हमलों में केवल हिन्दू मारे जाते हैं। 26.11.2008 के आतंकी हमले में मारे गए मुसलमानों का प्रतिशत, आबादी में उनके प्रतिशत से कहीं अधिक था। हालिया (13.7.11) हमले में भी दोनों समुदायों के लोग मारे गए। यह कहना कि आतंकवाद की समस्या का हल हिन्दुओं में एकता स्थापित करना और हिन्दू पार्टी को समर्थन देना है, राजनैतिक प्रचार के अतिरिक्त कुछ नहीं है। भारत ने अपनी इच्छा से धर्मनिरपेक्ष राज्य बने रहना स्वीकार किया था। हमारे
संविधान निर्माताओं ने बहुत सोच-समझकर इस्लामिक या हिन्दू राष्ट्र के सिद्धांत को खारिज किया था।
हम यह नहीं भूल सकते कि हेमन्त करकरे की सूक्ष्म जाँच के फलस्वरूप प्रज्ञा सिंह ठाकुर से लेकर असीमानंद तक तथा आर0एस0एस0 के एक प्रमुख नेता इन्द्रेश कुमार के आतंकवादी हमलों में शामिल होने के अकाट्य सुबूत सामने आए हैं। इस्लाम के नाम पर लोगों के दिमागों में ज़हर भरने का काम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक महाशक्ति कर रही है, जिसका लक्ष्य अपने राजनैतिक उदेश्यों की पूर्ति है। हमारे देश में हिन्दुत्व की विचारधारा की पोषक वे शक्तियाँ हैं जो हमारे देश के बहुवादी एवं प्रजातांत्रिक चरित्र का गला घोंटना चाहती हैं। बहुवाद व प्रजातंत्र हमारे स्वतंत्रता संग्राम की थाती हैं। आतंकवादी हमलों का बदला लेने या पाकिस्तान पर हमला करने की बातें शुद्ध पागलपन हैं और ऐसा कोई भी कदम, भारतीय उपमहाद्वीप को बर्बादी के रास्ते पर ले जाएगा।
किसी एक समुदाय पर आतंकवाद का पोषक होने का आरोप लगाना गलत है। कुछ असीमानंदों या दयानंदों के कारण पूरा हिन्दू समुदाय आतंकवादी नहीं हो जाता।
-राम पुनियानी
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