शनिवार, 15 अक्तूबर 2011

किसानो का बलिदान लेता हुआ एक और अधिग्रहण


(महाराष्ट्र के मावल के आंदोलनरत किसानो पर गोलीबारी )

9 अगस्त को महाराष्ट्र में पुणे के निकट मावल में पुलिस की गोली से चार किसान मारे गये | भागते किसानो पर दो पुलिस के दरोगाओ द्वारा दौडाते हुए उन पर गोली चलाने और सिपाहियों द्वारा तोड़ - फोड़ करने की खबरे समाचार -पत्रों में आई है | उस घटना के चित्रों को महाराष्ट्र विधानसभा में प्रदर्शित भी किया गया था | आखिर किसानो को गोलियों का शिकार क्यों होना पडा ? कयोकि 'पावना बाँध ' से पिपरी चीचवाड़ा म्युनिसिपल कापोरेशन के लिए पानी की सप्लाई की पाइप लाइनों के लिए इस मावल गाँव की जमीन अधिग्रहण किया जाना था | सच्चाई यह है कि पुणे - मुम्बई मार्ग पर पिपरी - चीचवाड़ा टाउनशिप के लिए विकास प्राधिकरण के जरिये हजारो एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है | इस इलाके के भूमि अधिग्रहण का मामला वैसे तो पुराना है पर अब वह राजमार्ग के विस्तार और टाउनशिप के विकास के नाम पर पिछले कई सालो से बढ़ता जा रहा है | 1957 में किसानो की जमीन का अधिग्रहण पावना बाँध के लिए हुआ था और अब वह अधिग्रहण राजमार्ग व उसके इर्द - गिर्द टाउनशिप के विस्तार के लिए तथा उसे पानी कई सप्लाई के लिए किया जा रहा है | अगर 1957 में उस बाँध के जरिये एक सार्वजनिक उद्देश्य को पूरा किया जाना था , तो आज के निजीकरण के दौर में उसका उद्देश्य बिल्डरों , डेवलपरो तथा आई ० टी ० कम्पनियों को टाउनशिप के विकास के जरिये भारी लाभ दिलाना है | बताया जाता है की यह परियोजना देश के केन्द्रीय मंत्री शरद पवार के भतीजे और महाराष्ट्र सरकार के उप - मुख्य मंत्री अजित पवार के सपनो की परियोजना है | महाराष्ट्र में कांग्रेस पार्टी और राष्ट्र वादी कांग्रेस पार्टी की सत्ता - सरकार है | इसके मुख्य मंत्री भी कांग्रेस पार्टी के ही है | उत्तर प्रदेश में भट्टा पारसौल में किसानो पर गोली चलाने का विरोध कर रही कांग्रेस पार्टी मावल में वैसी ही घटना को अंजाम देने के बाद अब उसकी जांच करवा रही है , वह भी बड़े दबाव के बाद | घटना में पुलसिया कारवाई की तो इस गोली काण्ड के लिए मुख्यत:वहा के किसानो द्वारा किये गये उग्र प्रदर्शन को ही जिम्मेवार बता रही है |................... फिर महाराष्ट्र के जैतपुरा से लेकर होते - बढ़ते भूमि अधिग्रहण पर किसानो के विरोध प्रदर्शन और सरकार द्वारा उसके बलपूर्वक दमन पर वहा के नामी - गिरामी स्वंय - सेवक संगठन और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी उसका उल्लेखनीय व कारगर विरोध नही किया | जबकि भूमि अधिग्रहण का मुद्दा आम किसानो की जीविका और देश के खाद्यानो उत्पादन से जुड़ा मुद्दा है | भ्रष्टाचार के मुद्दे से कही ज्यादा बुनियादी मुद्दा है | विरोधी पार्टियों व प्रचार माध्यमो के लिए तो ऐसी खबरे तब प्रमुख बनती है जब किसानो की लाशें गिर जाए , घर जला दिये जाए।
फिर उनका वह विरोध भी कम्पनियों डेवलपरो के निजी लाभों के लिए किये जा रहे अधिग्रहण के विरोध के नाम पर नही बल्कि बेहतर मुआवजे और किसानो की पुनर्स्थापना के लिए विरोधो - समझौतों के रूप में ही प्रचारित कर दिया जाता है।
इसलिए अब किसानो का तथा खाद्यान्नो की महगाई झेल रहे जनसाधारण का दायित्व है कि , वह सत्ता - सरकारों द्वारा भूमि अधिग्रहण के विरुद्ध आन्दोलित किसानो के दमन के विरोध के साथ - साथ वर्तमान दौर में निजी लाभों के लिए बनाये जा रहे 'सेज टाउनशिप ' आदि के लिए किये जा रहे अधिग्रहण का विरोध होना चाहिए | धनाढ्य एवं उच्च हिस्सों को कृषि भूमि जमीन मालिक बनने कि छुट दिये जाने कि नीतियों , विधेयको , कानूनों का जबर्दस्त तरीके से विरोध करना होगा तब शायद हम अपनी जमीने बचा सके

सुनील दत्ता
पत्रकार
09415370672

1 टिप्पणी:

चंदन कुमार मिश्र ने कहा…

अन्ना नाम का आदमी तो उसी महाराष्ट्र में रहता है न?

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