इतना ही नहीं पराकाष्ठा तो उस समय हो गई जब उच्चतम न्यायालय की जस्टिस एस.एस. बेदी और जस्टिस के.सी. प्रसाद की खण्डपीठ ने दिनाकरन के इम्पीचमेंट (न्यायाधीश की नौकरी से बर्खास्त किए जाने की कार्यवाही) से पूर्व होने वाली जाँच को ही रोक दिया। स्मरण रहे कि दिनाकरन के खिलाफ आरोपों की जाँच के लिए बनाई गई तीन सदस्यीय समिति को राज्य सभा ने बनाया था जिसमें उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति आफताब आलम, कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे.एस. केहर और कर्नाटक उच्च न्यायालय के वरिष्ठ एडवोकेट श्री पी.पी. राव थे।
इस तीन सदस्यीय समिति ने दिनाकरन को नोटिस भेज कर चेताया था कि वे अपने ऊपर लगाए गए 16 आरोपों का 20 अप्रैल, 2011 तक उत्तर दें अन्यथा समिति अपनी आगे की कार्यवाही करेगी।
इस बीच दिनाकरन ने उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की कि चूँकि वरिष्ठ अधिवक्ता श्री पी.पी. राव, जो समिति के सदस्य हैं उनसे (दिनाकरन से) दुराग्रह रखते हैं अतः जब तक वह जाँच समिति में हैं तब तक समिति निष्पक्ष जाँच नहीं कर सकती। उच्चतम न्यायालय ने इसी अपील के आधार पर पूरी जाँच पर ही रोक लगा दी। वाह! बहुत खूब! प्रश्न उठता है कि राज्य सभा के निर्णय पर उच्चतम न्यायालय ने रोक क्यों लगाई? हमारे देश में तो संसद ही सर्वोपरि है। इसके उपरान्त भी यदि श्री पी.पी. राव, एडवोकेट से दिनाकरन को निष्पक्षता की आशा नहीं थी तो उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आफताब आलम और कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति केहर भी क्या दिनाकरन से दुराग्रह रखते थे? यदि उच्चतम न्यायालय इतनी निष्पक्षता और पादर्शिता का हिमायती है और भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए कृत संकल्प है, तो उसे श्री पी.पी. राव, एडवोकेट, के स्थान पर किसी अन्य को समिति में नियुक्त करने का आदेश देना चाहिए था। क्या उच्चतम न्यायालय का यह आदेश न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति केहर का अपमान नहीं है? उच्चतम न्यायालय के इस निर्णय से कौन से तत्वों को, किस प्रकार के लोगों को प्रोत्साहन मिलेगा?
दिनाकरन की ही भाँति उच्चतम न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एवं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष के.जी. बालाकृष्णन पर भी आय से अधिक सम्पत्ति रखने, बेनामी सम्पत्तियाँ रखने, अपने परिवार के सदस्यों द्वारा की गई बेईमानी, भ्रष्टाचार आदि कुकृत्यों पर पर्दा डालने के आरोप हैं। बालाकृष्णन तो अपनी सम्पत्ति का विवरण देने के लिए भी तैयार नहीं हैं। उन्होंने जो आयकर रिटर्न दाखिल किए हैं उसका भी वह खुलासा करने से मना कर रहे हैं।
दिनाकरन, सौमित्र सेन बाल कृष्णन की भाँति ही देश के लगभग पचास से अधिक न्यायाधीशों के विरुद्ध बेईमानी, भ्रष्टाचार, आय से अधिक सम्पत्ति रखने, हेराफेरी, धोखाधड़ी, नाजायज सम्पत्ति रखने, अपने मित्रों-सम्बन्धियों के साथ पक्षपात करने और उनको लाभ पहुँचाने आदि के मुकदमे चल रहे हैं।
देखना है कि उच्चतम न्यायालय कब अपने घर-न्यायपालिका में गंदगी फैलाने वालों पर चाबुक चलाती है, उन्हें बाहर का रास्ता दिखाती है।
- राम किशोर
मो. 09452242237
1 टिप्पणी:
देखना है कि उच्चतम न्यायालय कब अपने घर-न्यायपालिका में गंदगी फैलाने वालों पर चाबुक चलाती है, उन्हें बाहर का रास्ता दिखाती है।
अन्दाजा तो है ही कि क्या होगा…
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