यह बात अब जन सामान्य में ही नहीं वरन् न्याय के सर्वोच्च मन्दिर में भी गूँज रही है कि न्यायपालिका में भ्रष्ट, पतित, बेईमान और रिश्वतखोर न्यायाधीशों की संख्या में निरन्तर बढ़ोत्तरी हो रही है।
अप्रैल 2011 में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस.एच. कपाडि़या ने एम.सी. सीतलवाड़ स्मृति व्याख्यान माला में भाषण देते हुए कहा कि “बेईमान और भ्रष्ट न्यायधीशों को राजनैतिक संरक्षण नहीं प्रदान किया जाना चाहिए। यदि न्यायपालिका से भ्रष्टचार को समाप्त करना है तो भ्रष्ट न्यायधीशों के साथ किसी भी प्रकार की दयालुता, कृपा या मेहरबानी नहीं दिखाई जानी चाहिए।” अपने भाषण में उन्होंने एक ओर तो राजनीतिज्ञों को सुझाव दिया कि वे भ्रष्ट एवं बेईमान न्यायाधीशों से दूर रहें, वहीं दूसरी ओर उन्होंने न्यायाधीशों को सलाह दिया कि वे सुविधादायक व्यवहार, सुविधाजनक बर्ताव तथा सेवानिवृत्ति के पूर्व ही या बाद में पद पाने की लालसा में किसी राजनैतिक संरक्षण प्राप्त करने की कामना के साथ राजनीतिज्ञों, विशेषकर सत्ताधारी, राजनीतिज्ञों से निकटता न बनाएँ।” न्यायमूर्ति एस.एच. कपाडि़या ने चेतावनी देते हुए कहा कि “न्यायाधीश राजनीतिज्ञों से दूरी बना कर रखें।“ यह प्रवृति “तुम मेरे काम आओ, मैं तुम्हारे काम आऊँगा” या “तुम मेरी मदद करो, मैं तुम्हारी मदद करूँगा“ को जन्म देती है और भ्रष्टाचार को पोषित करती है।“
उन्होंने आगे कहा कि यदि “कोई न्यायाधीश पक्षपात के आरोप से बचे रहना चाहता है तो उसे चाहिए कि वह समाज से थोड़ी दूरी और अलगाव बना कर रखे।
उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि “एक व्यक्ति जो न्यायाधीशों के संसार में प्रवेश करता है उसे स्वयं में अपने ऊपर कुछ नियंत्रण रखने होंगे। उसे वकीलों से, राजनैतिक दलों, उनके नेताओं से, मंत्रियों आदि से सामाजिक समारोहों के अतिरिक्त अन्य प्रकार के मेल मिलाप नहीं रखना चाहिए।“ उन्होंने कहा कि “न्यायपालिका अपने गुप्त भवनों में, जिन्हें भ्रष्ट और बेईमान न्यायाधीश सुरक्षा कवच समझते हैं, सूर्य का प्रकाश आने से भयभीत नहीं है परंतु सूर्य का प्रकाश इतना अधिक और प्रभावी न हो जाय कि उससे शरीर की खाल ही जल जाय।“
अप्रैल 2011 में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस.एच. कपाडि़या ने एम.सी. सीतलवाड़ स्मृति व्याख्यान माला में भाषण देते हुए कहा कि “बेईमान और भ्रष्ट न्यायधीशों को राजनैतिक संरक्षण नहीं प्रदान किया जाना चाहिए। यदि न्यायपालिका से भ्रष्टचार को समाप्त करना है तो भ्रष्ट न्यायधीशों के साथ किसी भी प्रकार की दयालुता, कृपा या मेहरबानी नहीं दिखाई जानी चाहिए।” अपने भाषण में उन्होंने एक ओर तो राजनीतिज्ञों को सुझाव दिया कि वे भ्रष्ट एवं बेईमान न्यायाधीशों से दूर रहें, वहीं दूसरी ओर उन्होंने न्यायाधीशों को सलाह दिया कि वे सुविधादायक व्यवहार, सुविधाजनक बर्ताव तथा सेवानिवृत्ति के पूर्व ही या बाद में पद पाने की लालसा में किसी राजनैतिक संरक्षण प्राप्त करने की कामना के साथ राजनीतिज्ञों, विशेषकर सत्ताधारी, राजनीतिज्ञों से निकटता न बनाएँ।” न्यायमूर्ति एस.एच. कपाडि़या ने चेतावनी देते हुए कहा कि “न्यायाधीश राजनीतिज्ञों से दूरी बना कर रखें।“ यह प्रवृति “तुम मेरे काम आओ, मैं तुम्हारे काम आऊँगा” या “तुम मेरी मदद करो, मैं तुम्हारी मदद करूँगा“ को जन्म देती है और भ्रष्टाचार को पोषित करती है।“
उन्होंने आगे कहा कि यदि “कोई न्यायाधीश पक्षपात के आरोप से बचे रहना चाहता है तो उसे चाहिए कि वह समाज से थोड़ी दूरी और अलगाव बना कर रखे।
उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि “एक व्यक्ति जो न्यायाधीशों के संसार में प्रवेश करता है उसे स्वयं में अपने ऊपर कुछ नियंत्रण रखने होंगे। उसे वकीलों से, राजनैतिक दलों, उनके नेताओं से, मंत्रियों आदि से सामाजिक समारोहों के अतिरिक्त अन्य प्रकार के मेल मिलाप नहीं रखना चाहिए।“ उन्होंने कहा कि “न्यायपालिका अपने गुप्त भवनों में, जिन्हें भ्रष्ट और बेईमान न्यायाधीश सुरक्षा कवच समझते हैं, सूर्य का प्रकाश आने से भयभीत नहीं है परंतु सूर्य का प्रकाश इतना अधिक और प्रभावी न हो जाय कि उससे शरीर की खाल ही जल जाय।“
यह सत्य है कि पिछले कुछ महीनों से, विशेषकर जब से न्यायमूर्ति एस.एच. कपाडि़या सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पद पर आसीन हुए हैं, सर्वोच्च न्यायालय ने जनता की आशाओं में पर लगा दिए हैं, न्यायापालिका के प्रति सम्मान बढ़ा है और लोकतंत्र को मजबूती प्रदान हुई है परंतु भ्रष्ट न्यायाधीशों पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। हम भूले नहीं है कि सर्वोच्च न्यायालय के भूतपूर्व न्यायाधीश रामा स्वामी पर संसद में जब भ्रष्टाचार का महाभियोग चला था उस समय उनके भ्रष्टाचार की पैरवी करने में, उसे सही ठहराने में केन्द्रीय मंत्री कपिल सिब्बल आगे आए थे, उन्हीं तर्कों के साथ जो आज वह टू जी स्पैक्ट्रम और कामनवेल्थ खेल घोटालों के बचाव में दे रहे हैं- “कोई घोटाला नहीं हुआ”, “कोई नुकसान नहीं हुआ” इत्यादि-इत्यादि।
आज भी भ्रष्टाचार के आरोपों से बुरी तरह से घिरे सिक्किम हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पी.डी. दिनाकरन के प्रकरण पर अच्छी-अच्छी, सुन्दर-सुन्दर और उपदेशात्मक बातें करने वाले उच्चतम न्यायालय के व्यवहार पर आश्चर्य होता है। सिक्किम हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बनने के पूर्व वह कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश थे। उनका नाम उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश पद के लिए प्रस्तावित किया गया था, यद्यपि वह भ्रष्टाचार के अनेक आरोपों में लांक्षित थे। उन पर जमीन घोटालों, आय से कई हजार गुना अधिक सम्पति बटोरने, भूमि सीमाबन्दी से अधिक जमीन रखने, सार्वजनिक, सरकारी एवं दलितों की भूमि पर जबरदस्ती कब्जा करने, साक्ष्यों को नष्ट करने, विक्रय प्रपत्रों में सम्पति का वास्तविक मूल्य से कम मूल्य दिखाने और इस प्रकार कर चोरी करने, स्टैम्प ड्यूटी की चोरी करने, गैर कानूनी निर्माण करने, बेनामी ट्रांजक्शन्स करने, तमिननाडु हाउसिंग बोर्ड द्वारा अपनी पत्नी एवं पुत्रियों के नाम से पाँच प्लाट आबंटित कराने इत्यादि के अनेक आरोप हैं। इतना ही नहीं दिनाकरन पर आरोप हैं कि उन्होंने कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पद पर रहते हुए नियमों के विरुद्ध जानबूझ कर गलत एवं बेईमानी भरा प्रबन्धन किया, वह न्यायाधीशों का क्रम इस प्रकार निश्चित करते थे जिससे बेईमानीपूर्ण न्यायिक निर्णय दिए जा सकें। उनको अविलम्ब हटाने, उनके ऊपर लगे आरोपों की जाँच के लिए, कर्नाटक के अधिवक्ताओं ने धरना दिया, प्रदर्शन किए, हड़तालें कीं, अदालतों का बहिष्कार किया। संसद में भी इस भ्रष्टाचारी न्यायाधीश के करतूतों की गूँज उठी।
इन तमाम आन्दोलनों की अगुवाई मुख्यतः कर्नाटक उच्च न्यायालय के वरिष्ठ एडवोकेट श्री पी.पी. राव एवं कमेटी फार जुडीशियल एकाउन्टेबिलिटी के संयोजक वरिष्ठ एडवोकेट श्री वागाई कर रहे थे। अन्ततः दिनाकरन के ऊपर लगे आरोपों की जाँच के लिए एक तीन सदस्यीय कमेटी गठित की गई जिसमें उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति आफताब आलम, कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे.एस. केहर एवं वरिष्ठ एडवोकेट श्री पी.सी. राव थे। जनता और अधिवक्ताओं के दबाव के चलते पी.डी. दिनाकरन को कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद से सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पद पर स्थानान्तरण कर दिया गया। प्रश्न उठता है कि यदि सरकार और उच्चतम न्यायालय ने दिनाकरन जैसे बेईमान और भ्रष्ट न्यायाधीश को जेल की राह नहीं दिखाई तो उन्हें कम से कम कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सौमित्र सेन की भाँति, जिनके ऊपर भी भ्रष्टाचार के आरोप हैं, जबरन छुट्टी पर क्यों नहीं भेजा? जिसके ऊपर भ्रष्टाचार के अनेक गंभीर आरोप लगे हों, जिनकी जाँच चल रही हो और जाँच समिति में उच्चतम न्यायालय का एक वर्तमान न्यायाधीश हो, उस आरोपित न्यायाधीश को दूसरे राज्य का मुख्य न्यायाधीश बना दिया जाय? यह कैसी और किस प्रकार की न्यायिक पारदर्शिता और निर्णय है?
इन तमाम आन्दोलनों की अगुवाई मुख्यतः कर्नाटक उच्च न्यायालय के वरिष्ठ एडवोकेट श्री पी.पी. राव एवं कमेटी फार जुडीशियल एकाउन्टेबिलिटी के संयोजक वरिष्ठ एडवोकेट श्री वागाई कर रहे थे। अन्ततः दिनाकरन के ऊपर लगे आरोपों की जाँच के लिए एक तीन सदस्यीय कमेटी गठित की गई जिसमें उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति आफताब आलम, कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे.एस. केहर एवं वरिष्ठ एडवोकेट श्री पी.सी. राव थे। जनता और अधिवक्ताओं के दबाव के चलते पी.डी. दिनाकरन को कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद से सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पद पर स्थानान्तरण कर दिया गया। प्रश्न उठता है कि यदि सरकार और उच्चतम न्यायालय ने दिनाकरन जैसे बेईमान और भ्रष्ट न्यायाधीश को जेल की राह नहीं दिखाई तो उन्हें कम से कम कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सौमित्र सेन की भाँति, जिनके ऊपर भी भ्रष्टाचार के आरोप हैं, जबरन छुट्टी पर क्यों नहीं भेजा? जिसके ऊपर भ्रष्टाचार के अनेक गंभीर आरोप लगे हों, जिनकी जाँच चल रही हो और जाँच समिति में उच्चतम न्यायालय का एक वर्तमान न्यायाधीश हो, उस आरोपित न्यायाधीश को दूसरे राज्य का मुख्य न्यायाधीश बना दिया जाय? यह कैसी और किस प्रकार की न्यायिक पारदर्शिता और निर्णय है?
- राम किशोर
क्रमश:
2 टिप्पणियां:
इतने आरोप…एक आदमी पर…फिर भी छुट्टा घूम रहा है अपराधी…
Very rightly said. Corruption needs to be stopped and two hours each day can very nicely be spent removing corruption. Best of Luck. Do check out my post too and vote if you like it Aye Zindagi!
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