रविवार, 6 नवंबर 2011

नया भूमि अधिग्रहण विधयेक और उसके मसौदे में संशोधन

 ( क्या किसानो के हित में , या किसानो के विरोध में )

इस अन्याय का प्रतिकार भूमि अधिग्रहण का मार सहने वाले किसानो और उससे ग्रामीणों को ही करना होगा | उन्हें भूमि अधिग्रहण और उसके मसौदा को , उसमे किये जाते रहे संशोधनों को स्वंय अपनी चर्चा का तथा विरोध का विषय बनाना होगा
नया भूमि अधिग्रहण विधेयक लोकसभा में पेश किया जा चुका है | इसका मसौदा 29 जुलाई को जारी किया गया था | 5 सितम्बर के समाचार पत्रों में इस मसौदे का वह संशोधित रूप प्रकाशित हुआ , जिसे संसद में पास करवा कर कानून का रूप दिया जाना है | यही कानून , भूमि अधिग्रहण के 1894 के कानून की जगह लेगा | संसद में बहस के बाद यह कानून के रूप में कैसे सामने आता है , यह बाद की बात है | पर दिलचस्प बात यह है कि 29 जुलाई को देशव्यापी राय मशविरे के लिए जारी मसौदे में कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण बदलाव कर दिये गये है | इस बदलाव के लिए सरकार को किसने सलाह दी ? क्या किसानो ने ?एकदम नही | किसानो या किसान संगठनों कि राय तो कही चर्चा तक में नही आई | लेकिन उद्योगपतियों के संगठनों और प्रचार माध्यमी जगत के दिग्गजों कि राय जरुर आती रही | इस संदर्भ में समाचार पत्रों में सूचनाये भी प्रकाशित होती रही | बेहतर है कि किसी भी नतीजे पर पहुचने से पहले मसौदे में दिये गये बदलाव को मोटे तौर पर देख लिया जाए 
1 . 29 जुलाई को जारी किये गये मसौदे में यह कहा गया था कि , खेती योग्य और सिंचित जमीन का अधिग्रहण नही किया जाएगा |लेकिन उद्योगपतियों के संगठनों और उनके समर्थको के खुले दबाव के बाद इसके अधिग्रहण को हरी झंडी दे दी गयी है | बड़े उद्योगपतियों के संगठन "पिक्की " द्वारा मसौदे पर सुझाव के रूप में यह बयान समाचार पत्र में प्रकाशित भी हुआ है | हाँ , इस सुझाव में सांत्वना के तौर पर ग्रामीण विकास मंत्री ने विधेयक में यह प्राविधान जोड़ दिया है कि ( लेकिन कितने दिन बाद , यह अनिश्चित है ) उस जिले में उतनी कृषि भूमि का सिंचित भूमि में विकास कर दिया जाएगा |
2--- जुलाई के मसौदे में ग्रामीण इलाको कि जमीन का मुआवजा बाज़ार दर से 6 गुना ज्यादा दिये जाने का प्रस्ताव किया गया था | अब अधिग्रहण के बाद मुआवजे कि रकम अदा करने वाली कम्पनियों , डेवलपरो के दबाव में उसे घटाकर 4 गुना कर दिया गया है | 
3--- तीसरा और अत्यंत महत्वपूर्ण बदलाव - मसौदे में यह प्रस्तावित था कि 5 साल तक अधिग्रहित भूमि का घोषित उद्देश्य के लिए न इस्तेमाल किये जा सकने कि स्थिति में वह जमीन किसानो एवं ग्रामवासियों को लौटा दी जायेगी | लेकिन अब नये संशोधन के अनुसार अब वह जमीन इस्तेमाल न किये जाने के वावजूद जमीन के मालिक किसानो को बिलकुल लौटाई नही जायेगी | अब वह भूमि राज्य भूमि प्राधिकरण के कब्जे में चली जायेगी | कुछ समाचार पत्रों में यह सुचना भी आई थी कि 5 वर्ष कि मियाद को संशोधित करके 10 वर्ष कर दिया जाना है | अर्थात 10 साल तक अधिग्रहित जमीन का इस्तेमाल न होने पर वह राज्य भूमि प्राधिकरण के कब्जे में चली जायेगी | 
इसके अलावा मसौदे के कई अन्य सुझावों में बदलाव किये गये है | जिन्हें हम कानून के रूप में आने के बाद प्रस्तुत करेंगे और उस पर चर्चा भी करेंगे | लेकिन अभी तक मसौदे में किये गये उपरोक्त संशोधनों से यह बात समझना कतइ मुश्किल नही है कि , ये संशोधन किसानो द्वारा नही , बल्कि बड़े उद्योगपतियों , व्यापारियों द्वारा कराए गये है | कयोंकि भूमि अधिग्रहण से सम्बन्धित मसौदे व विधेयक को किसानो को बताने और उनकी राय जान्ने का तो कोई प्रयास ही नही किया गया | 29 जुलाई को पेश किये गये मसौदे का कोई सरकुलर ग्राम सभाओं तक को नही भेजा गया | फिर 26 जुलाई को जारी किये गये मसौदे के केवल एक माह बाद उसे विधेयक या कानून का रूप देने में यह बात स्पष्ट है कि इस मसौदे पर कृषि - भूमि के मालिक से कोई राय नही ली जानी थी | इनकी जगह भूमि अधिग्रहण के घोर समर्थक भूमि लोलुप कम्पनियों के प्रमुखों व डेवलपरो आदि जैसे गैर किसान , धनाढ्य वर्गो की ही राय ली जाने वाली थी | कयोंकि वे ही सत्ता सरकार से अपने हितो में नीतियों , मसौदो , विधेयको को बनाने व लागू करने - करवाने के लिए सत्ता सरकार के इर्द - गिर्द मडराते रहते है | सरकारे भी इन्ही की सुनती है |इनसे ही राय मशविरा करती है | साफ़ बात है कि यह मसौदा भी उन्ही के लिए जारी किया गया था , न कि किसानो तथा अन्य ग्रामीण हिस्सों के लिए | क्या यह कृषि भूमि पर किसानो व अन्य ग्रामवासियों से जुड़े अहम मुद्दे पर उकी अनदेखी करने का अन्याय नही है ? एकदम है | लेकिन इसे कहेगा कौन ? केन्द्रीय सरकार में बैठी पार्टियों ने तो अन्याय किया ही है , लेकिन विरोधी पार्टियों ने भी सरकार पर उस मसौदे के बारे में किसानो से राय मशविरा लेने की कोई बात नही करके उसी अन्याय का साथ दिया है | ज्यादातर प्रचार माध्यमि बौद्धिक हिस्सों ने भी इसी अन्याय का साथ दिया है | इसलिए अब इस अन्याय का प्रतिकार भूमि अधिग्रहण का मार सहने वाले किसानो और उससे ग्रामीणों को ही करना होगा | उन्हें भूमि अधिग्रहण और उसके मसौदो को , उसमे किये जाते रहे संशोधनों को स्वंय अपनी चर्चा का तथा विरोध का विषय बनाना होगा | यह विरोध संगठित रूप और व्यापक रूप में , गाँव स्तर से लेकर देश स्तर पर किये जाने की आवश्यकता हैं | इसके लिए उन्हें अपनी किसान समितियों और महा समितियों को भी जरुर खड़ा करना होगा | ताकि इसके जरिये वे किसान विरोधी नीतियों के विरोध के साथ कृषि विकास , कृषि सुरक्षा की मांग खड़ी कर सके | उसके लिए सरकारों पर बराबर दबाव डाल सकें | हम कब सचेत होंगे जब हमसे सब कुछ छीन जाएगा ?


सुनील दत्ता
पत्रकार
09415370672

3 टिप्‍पणियां:

चंदन कुमार मिश्र ने कहा…

वाह री सरकार…विधेयक जिसके लिए बनाती है उसी से नहीं पूछा जाता कुछ भी…

Rewa Tibrewal ने कहा…

apke lekh padh kar sahi mai sacchi jankari milti hai...paper mai tho hum hamesha padhte rehte hai...par puri baat samajh nahi aati

संध्या आर्य ने कहा…

खरी खरी जानकारी के साथ ज्ञानवर्धक लेख इसके लिये शुक्रिया .....छोटे शहरो मे शिक्षित वर्ग की संख्या बहुत ज्यादा नही है और जरुरी भी नही की वह खेती से जुडा हो सबसे बडी समस्या उनलोगो तक जानकारी पहुंचाने की है और उन्हे इतनी बडी बडी बाते समझाने की होगी क्योकि जो खेती से जुडा वर्ग है,वह शिक्षित नही है और उन्हे समझाना एक टेढी खीर ....आभार!!

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