आज की रात बहुत गरम हवा चलती है
आज की रात न फुटपाथ पे नींद आएगी।
सब उठो, मै भी उठूँ, तुम भी उठो, तुम भी उठो
कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जाएगी।
ये जमीन तब भी निगल लेने पे आमादा थी
पाँव जब टूटी शाखों से उतारे हम ने।
इन मकानों को खबर है ना मकीनो को खबर
उन दिनों की जो गुफाओं में गुजारे हम ने।
हाथ ढलते गए सांचे में तो थकते कैसे
नक्श के बाद नए नक्श निखारे हम ने।
कि ये दीवार बुलंद, और बुलंद, और बुलंद,
बाम-ओ-दर और जरा, और सँवारा हम ने।
-कैफ़ी आजमी
आज की रात न फुटपाथ पे नींद आएगी।
सब उठो, मै भी उठूँ, तुम भी उठो, तुम भी उठो
कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जाएगी।
ये जमीन तब भी निगल लेने पे आमादा थी
पाँव जब टूटी शाखों से उतारे हम ने।
इन मकानों को खबर है ना मकीनो को खबर
उन दिनों की जो गुफाओं में गुजारे हम ने।
हाथ ढलते गए सांचे में तो थकते कैसे
नक्श के बाद नए नक्श निखारे हम ने।
कि ये दीवार बुलंद, और बुलंद, और बुलंद,
बाम-ओ-दर और जरा, और सँवारा हम ने।
-कैफ़ी आजमी
2 टिप्पणियां:
खूबसूरत रचना
सुंदर नज़्म !
आभार !!
मेरी नई कविता "अनदेखे ख्वाब"
एक टिप्पणी भेजें