शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

शासन की बंदूक


खड़ी हो गई चाँपकर कंकालों की हूक
नभ में विपुल विराट-सी शासन की बंदूक

उस हिटलरी गुमान पर सभी रहें हैं थूक
जिसमें कानी हो गई शासन की बंदूक

बढ़ी बधिरता दसगुनी, बने विनोबा मूक
धन्य-धन्य वह, धन्य वह, शासन की बंदूक

सत्य स्वयं घायल हुआ, गई अहिंसा चूक
जहाँ-तहाँ दगने लगी शासन की बंदूक

जली ठूँठ पर बैठकर गई कोकिला कूक
बाल न बाँका कर सकी शासन की बंदूक

-नागार्जुन

1 टिप्पणी:

चंदन कुमार मिश्र ने कहा…

वाह…भाव नहीं…इस तरह से दीर्घ ऊ के साथ क यानी चूक, मूक, कूक, बन्दूक आदि लिखकर बाबा ने एक अनोखा काम किया है। आसान नहीं होगा ऐसी पँक्तियों का मिलना।

Share |