आर्थिक विश्लेषकों की प्रत्यक्ष एवं परोक्ष समीक्षा एवं उनके यह विचार कि भारत में उड़ीसा राज्य एवं उसकी जनता के हित के लिए पोस्को प्रोजेक्ट हस्ताक्षरित नहीं किया गया है। हम इस बात को पूछने पर मजबूर हैं कि आखिर इससे कौन लाभान्वित होगा और जनता पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?
संभवतः यह बात रेखांकित करने योग्य है कि एक ऐसा लोकतंत्र हो जिसमें सभी की सक्रिय सहभागिता हो तथा नागरिकों का एक समूह हो जो सदा सर्तक रहे तब ही शासक वर्ग को मजबूर किया जा सकेगा कि वह जिम्मेदारी की भूमिका में आए। राज्यों का एक समूह यह देखे कि उड़ीसा की ‘रायल्टीज’ में बढ़ोत्तरी हो। समझौते के स्मृति पत्र में उड़ीसा राज्य सरकार को यह स्पष्ट आश्वासन देती है कि वह प्रोजेक्ट की प्रगति हेतु हर सुविधा प्रदान करेगी परन्तु इस बात पर चुप है कि प्रोजेक्ट के कार्यों से स्थानीय समुदायों पर क्या कुप्रभाव पड़ेगा?
उड़ीसा राज्य सरकार को जिम्मेदार बनाना:- उड़ीसा के नागरिकों को चाहिए कि वे राज्य सरकार से प्रोजेक्ट की विस्तृत योजनाओं की पूर्ण पारदर्शिता की मांग करें। क्या वहाँ के अवसरों का मूल्यांकन एवं विश्लेषण किया गया? पोस्को द्वारा जल प्रयोग का आर्थिक मूल्य क्या होगा? जो लोग बेघर हो जाएँगे। उनके नुकसान का आंकलन कैसे होगा? पास पड़ोस के कृषक वर्ग की बड़ी बरबादी होगी। कृषि उत्पादन का जो नुकसान होगा उसका आर्थिक मूल्यांकन कैसे होगा एवं लाखों कृषक परिवारों की आजीविका में जो विघ्न होगा, इन सब बरबादियों का आर्थिक मूल्यांकन किस प्रकार किया जाएगा? यह बात तो स्पष्ट है कि उनका उद्योग लाखों प्रभावितों को रोजगार तो दे नहीं सकेगा। अब हम इन सब का तख़मीना लगा सकते हैं। कृषि मामलों का वार्षिक नुकसान 100 करोड़ के आसपास होगा। अर्थात लगभग उसी वेतन/ मजदूरी के बराबर जो इस प्लान्ट से सालाना आर्जित होगा। यह एक बड़ी धनराशि हुई। इसी से कुछ ऐसे प्रश्न सामने आते हैं जिनका उत्तर, सरकार को देना ही होगा। उडि़या समाज को भी यह सुनिश्चित करना है कि सरकार इन प्रश्नों का स्पष्ट उत्तर दे।
कृषि क्षेत्र में जो हानियाँ र्हुइं उनके सरकारी अनुमान क्या हैं और जिसके लिए उड़ीसा राज्य सरकार को जिम्मेदार करार देना चाहिए। जब तक उसे बिल्कुल निष्क्रिय न मान लिया जाए। इतने अधिक भूजल उपयोग और उसके विपरीत प्रभाव सम्बंधी हानियों का उड़ीसा राज्य सरकार ने क्या तख़मीना लगाया है?
उड़ीसा राज्य सरकार की इन सब बातों से निपटने की क्या योजना है? पोस्को से प्राप्त लाभ को कृषि सम्बंधी हानियों हेतु राहत दी जा सकती है या बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं या शैक्षिक कार्यों में इन समुदायों को सुविधा प्रदान की जा सकती है। या लाभ की धनराशि से इन समुदायों हेतु लघु उद्योगों की स्थापना भी की जा सकती है। हम को यह देखना चाहिए कि उड़ीसा राज्य सरकार ने इन सब के लिए क्या योजनाएँ बनाई हैं।
वास्तव में नए रोजगार सृजन से उड़ीसा को वेतन से 120 करोड़ सालाना का अप्रत्यक्ष लाभ मिल सकता है जिससे स्थानीय आर्थिक दशा सुदृढ़ हो सकती है। दूसरी ओर पोस्कों को भूमि लीज़ पर देने से उसे 180 करोड़ रूपये की कीमत का नुकसान उठाना पड़ रहा है। जल मूल्य की 75 करोड़ सालाना की हानि, कृषि सम्बंधी 100 करोड़ वार्षिक हानियाँ तथा प्रोजेक्ट पर 2400 से 3600 करोड़ टैक्स हानियाँ भी उठानी पड़ रही हैं।
इसके अतिरिक्त कोयले पर बाजार आधारित ‘रायल्टी’ का नुकसान और इससे सम्बंधित 12 एम0टी0/वार्षिक स्टील की जो हानियाँ हैं वे अलग हैं।
ये सब ऐसे ‘इस्टीमेट’ हैं जिन्हें ‘मेमोरैन्डमआॅफअन्डरस्टैंडिंग’ (डव्न्) के आंकड़ोंसेछनकरआईहुईसूचनाओंसेसावधानीपूर्वकहासिलकियागयाहै।इन सबके सम्बंध में उड़ीसा सरकार ने कभीपारदर्शिता नहीं दिखाई।परन्तु जो रुझान हैं वे स्पष्ट हैं। गैरमुनासिबरायल्टीकेस्तरकेकारण।जबकिउनलोगोंपरप्रत्यक्षलाभकीअपेक्षाअप्रत्यक्षहानिकाअधिकभारपड़ाहै।अबक्याउड़ीसासरकारयहजवाबदेगीकियह‘डील’ उड़ीसा के लिए क्यों बेहतर है?
सरकार के इरादे या दिशाएँ स्पष्ट हैं, जब कोई इस बात पर यह विचार करता है कि भारत का कुल ज्ञात भण्डार 18 बिलियन टन है, इसमें से 4.5 बिलियन टन उड़ीसा में है। इस 4.5 में से राज्य सरकार एक बिलियन टन पोस्को को दे देगी और इसमें से 400 एम0टी0 वह कोरिया को निर्यात कर देगी।उड़ीसा सरकार केवल 48000 करोड़ रुपये दर्शाती है, वह उस धनराशि को नहीं बता रही है जो घोटालों में गया, न ही अवसरों के नुकसान और प्रत्यक्ष मूल्यों के नुकसान को बतलाती है। अब इन बातों पर जब प्रश्न उठाए जाते हैं तो उन्हें उड़ीसा विरोधी बताया जाता है और राजनेताओं व नौकरशाहों की मशीनरी द्वारा उन्हें धमकाया जाता है।
जब उड़ीसा सरकार के जीत हार के धागे को देखा जाता है तो यह बात सामने आती है कि पोस्को विजयी हुई, उड़ीसा राज्य सरकार के राजनेता एवं नौकरशाहों ने भी विजय प्राप्त की, अगर इस खेल में कोई हारा तो वह उड़ीसा की जनता है।
खनिज को जिस प्रकार कम दाम पर बेच दिया गया है और जिस ढीलेपन से समझौता या ‘डील’ हुई वह यह बताने के लिए काफी है कि इसके द्वारा कितनी गै़र जिम्मेदारी का परिचय दिया गया और कितनी अपारदर्शिता की गई? फिर भी अभी सब कुछ गया नहीं है। एक सृदृढ़ और निगरानी रखने वाला समुदाय सरकार को इस बात के लिए मजबूर कर सकता है कि वह जिम्मेदार बने और उसे आर्थिक समझ आ जाए।
हमारा इस बात पर पूर्ण विश्वास है कि पुनर्वास या विस्थापितों के जिन मुद्दों की बात होती है यह वास्तव में इसलिए है कि पोस्को को 2,50,000 करोड़ की जो सब्सिडी लौह अयस्क के मूल्यों पर दे दी गई है, इस पर से हमारा ध्यान हट जाए।
-डाॅ0 सनत मोहंती/संदीप दास वर्मा
-अनुवादक-डाॅ.एस.एम. हैदर
क्रमश:
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