गुरुवार, 22 मार्च 2012

23 मार्च:शहीदे आजम भगत सिंह


अजीब था शहीदे आजम भगत सिंह
हवा में रहेगी मेरे ख्याल की बिजली
ये मुश्ते -ख़ाक हैं ,फानी रहे रहे न रहे |
फांसी के समय भगत सिंह की उम्र कुल 23 साल थी |उनके क्रांतिकारी जीवन की कुल अवधि 1923 से लेकर 1931 तक के कुल 8 वर्षो की ही रही |इतनी कम उम्र और इतने कम राजनितिक जीवन में भगत सिंह ब्रिटिश साम्राज्य से राष्ट्र की पूर्ण स्वतंत्रता के लिए देश के मेहनतकशो की मुक्ति के लिए वैचारिक एवं व्यावहरिक क्रान्ति का विराट और अथक प्रयास करते रहे |यह दुर्भाग्यपूर्ण है की देश का जन मानस उन्हें बम -पिस्तौल वाले बहादुर नौजवान राष्ट्रभक्त क्रांतिकारी के रूप में ही जानते है |विदेशी शोषण -लूट व परतंत्रता के संबंधो से राष्ट्र की पूर्ण स्वतंत्रता और राष्ट्र के मेहनत कशो के हित में समाज के क्रांतिकारी बदलाव के उनके महान वैचारिक और बहुआयामी प्रयासों को नही जानता |जबकि भगत सिंह की उच्चता ,महानता को समझने के लिए वर्तमान परिस्थितियों में राष्ट्र व समाज के क्रांतिकारी बदलाव के लिए भी देश के जनसाधारण को उनके उन प्रयासों को जानना जरूरी है |भगत सिंह के विचारों को आज के संदर्भ में जानने समझने का प्रयास जरुर किया जाना चाहिए |आज भगत सिंह हमारे बीच नही है लेकिन उनके चिंतन व विचार मौजूद है |

स्वतंत्रता आन्दोलन के क्रान्तिकारियो ,शहीदों में सबसे ज्यादा प्रसिद्धि प्राप्त नाम भगत सिंह का ही है |23 मार्च 1931 के दिन राजगुरु व सुखदेव के साथ उन्हें फांसी दी गयी थी |तब से आज तक देश के हर क्षेत्र में भगत सिंह व उनके साथियो के शहादत के दिन को 'शहीद दिवस ' के रूप में मनाया जाता है |भगत सिंह की शहादत के सर्वाधिक ऊँचे मूल्याकन के फलस्वरूप देश का जन मानस उन्हें 'शहीदे -आजम 'भगत सिंह के रूप में याद करता आ रहा है |उनके 81 वे शहादत दिवस के अवसर पर यह देखना और समझना बेहतर रहेगा कि उनकी शहादत का इतना उंचा मूल्याकन आखिर क्योंकर किया जाता है ?और हमे यह भी समझना होगा कि वर्तमान दौर में भगत सिंह और अन्य क्रान्तिकारियो को याद करने के साथ उनके क्रांतिकारी विचारों ,व्यवहारों से कुछ प्रेरणा ली जा सकती है या ली जानी चाहिए ?
जंहा तक भगत सिंह के सर्वाधिक मूल्याकन का सवाल है तो इसके लिए केवल भगत सिंह के जीवन एवं संघर्ष को ही जानना काफी नही होगा बल्कि उस दौर कि यानी 1907 से 1931 के दौर कि परिस्थितियों को तथा उसके महत्व व महानता को जानना ,समझना भी एकदम जरूरी है |क्योंकि ऐसी परिस्थितिया ही भगत सिंह जैसे महान क्रांतिकारी विभूतियों कि सृजनकर्ता होती है |ऐसी परिस्थितिया ही एक नही अनेकानेक महान विभूतियों को क्रान्तिकारियो और शहीदों को जन्म देती है |उनमे से कुछ विभूतियों को महानता के शिखर पर पहुचने का अवसर प्रदान करती है |भगत सिंह और उनकी शहादत कि महानता कि पृष्ठभूमि में भी ऐसी महान परिस्थितिया मौजूद रही है |कोई महान परिस्थिति भी अचानक नही बन जाती बल्कि वह अपेक्षित सामाजिक संघर्षो कि एक कड़ी के रूप में विकसित होती है |1905 -06 के बाद राष्ट्रीय संघर्षो के उभार कि परिस्थितियों के निर्माण में भी 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर उसके पहले और बाद में चले ब्रिटिश विरोधी आंदोलनों ,संघर्षो का निश्चित योगदान था |इतिहास कि थोड़ी बहुत जानकारी रखने वाला हर व्यक्ति जानता है कि भगत सिंह के समय कि वैश्विक परिस्थितिया महान परिवर्तनकारी परिस्थितिया थी |खासकर प्रथम विश्व युद्ध (1914-1917)के दौरान और उसके बाद रूस व कई यूरोपीय देशो में समाजवादी आंदोलनों व संघर्षो का सिलसिला चल पडा था |इसी के साथ हिन्दुस्तान जैसे तमाम पिछड़े व गुलाम देशो में विदेशी साम्राज्यी ताकतों के विरुद्ध राष्ट्र के स्वतंत्रता संघर्षो का सिलसिला भी तेज़ी से बढने लगा था |
विश्व युद्ध के दौर में ही रूस में 'मजदूर क्रान्ति ' सम्पन्न हुई थी |इस क्रान्ति ने दुनिया के तमाम पिछड़े देशो के मजदूरों ,किसानो एवं अन्य जनसाधारण को साम्राज्यी ताकतों की शोषण ,लूट तथा परतंत्रता व प्रभुत्व के संबंधो से अपने आप को पूरी ताकत से मुक्त कर लेने का पुरजोर आह्वान किया था और उसके लिए यथासंभव प्रेरणा व मदद भी दी थी |इसके फलस्वरूप इस देश में भी राष्ट्र की स्वतंत्रता के साथ जनसाधारण मजदूरों ,किसानो की स्वतंत्रता का लक्ष्य लेकर आंदोलनों ,संघर्षो की शुरुआत हो गयी |
अपने पुरवर्ती क्रान्तिकारियो ,शहीदों की तुलना में भगत सिंह और उनके साथियो की महानता इन्ही वैश्विक परिस्थितियों की देन थी |उन्होंने और उनके साथियो ने ब्रिटिश साम्राज्यी ताकतों से राष्ट्र की पूर्ण स्वतंत्रता के साथ -साथ इस राष्ट्र के नये पुराने धनाढ्य वर्गो से देश के जनसाधारण की मेहनत कशो की स्वतंत्रता का मुद्दा भी उठा दिया |ब्रिटिश राज को हटाकर हिन्दू राज ,मुस्लिम राज या जनतांत्रिक राष्ट्र -राज बनाने की जगह ,उन्होंने देश के मेहनतकशो के नेतृत्त्व में समाजवादी -प्रजातांत्रिक राष्ट्र राज के पक्ष में खुली घोषनाये की |
भगत सिंह के क्रांतिकारी जीवन पर अमेरिका व कनाडा में रह रहे हिन्दुस्तानियों द्वारा गठित गदर पार्टी के संघर्षो व प्रयासों का भी असर जरुर पडा था |भगत सिंह अपने क्रांतिकारी जीवन में 1857 के स्वतंत्रता संघर्ष से लेकर गदर पार्टी के उद्देश्यों व क्रियाकलापों से प्रेरणा व उर्जा ग्रहण करते रहे थे |जंहा तक उस दौर की राष्ट्रीय परिस्थितियों का सवाल है तो 1905 में बंगाल के विभाजन के विरुद्ध राष्ट्रवादी आंदोलनों व संघर्षो का ज्वार उठा हुआ था |यह ज्वार विदेशी बहिष्कार के साथ ,स्वदेशी अपनाने राष्ट्रीय -शिक्षा -संस्कृति को बढावा देने तथा स्वराज्य का लक्ष्य हासिल करने के लिए राष्ट्रवादी संघर्ष के रूप में आगे बढ़ता रहा था |राष्ट्रीय आंदोलनों के इसी उभार के दिनों में लोकमान्य तिलक का यह राष्ट्रवादी सन्देश पूरे देश में गूजने लगा था की "स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे |"
राष्ट्र की इन्ही महान संघर्षशील एवं क्रांतिकारी परिस्थितियों में पंजाब के लायलपूर जिले के बंगा गाँव में 27 अक्तूबर 1907 को भगत सिंह का जन्म हुआ था |भगत सिंह का बचपन पंजाब में खासतौर पर प्रथम विश्व युद्ध के दौर में अंग्रेजी शासन के भारी दमन व उत्पीडन को देखते और भोगते बीता था |1919 में घटा जलियावाला बाग़ काण्ड उसकी चरम अभिव्यक्ति था |उस समय 7 वीक्लास का छात्र रहा 12 साल का भगत सिंह जलियावाला बाग़ की घटना के बाद वहा की मिट्टी लेने गया और उसे अपने साथ लाया भी |यह जलियावाला बाग़ काण्ड के साथ -साथ ब्रिटिश शासन द्वारा किए जाते रहे दमन के प्रति बालक भगत सिंह में उठते विद्रोह व विरोध का एक परिलक्षण भी था | ब्रिटिश शासन के दमन -अत्याचार के विरुद्ध पंजाब में खड़े होते रहे आंदोलनों ,संघर्षो की परिस्थियों ने भी भगत सिंह और उनके साथियो को महान क्रांतिकारी बनाने में महत्व पूर्ण भूमिका निभायी |
इन आम परिस्थियों के अलावा भगत सिंह के साथ जुडी विशिष्ठ परिस्थितियाँ भी थी |भगत सिंह का स्वंय एक राष्ट्रवादी -क्रांतिकारी परिवार में जन्म और पालन -पोषण |भगत सिंह के जन्म के समय पिता किशन सिंह और चाचा अजित सिंह ब्रिटिश साम्राज्यवाद विरोधी ,राष्ट्रवादी गतिविधियों कर कारण जेल में थे |ठीक उनकी पैदाइश के ही दिन दोनों रिहा होकर घर पहुचे थे |इसलिए घरवालो ने भगत सिंह का नाम भागो वाला (यानी भाग्य वाला )रख दिया |निसंदेह:भगत सिंह की पारिवारिक पृष्ठ भूमि ने उन्हें भागो वाला से महान क्रांतिकारी भगत सिंह बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी |दूसरी भूमिका लाहौर के नेशनल कालेज की परिस्थितियों की थी |इस कालेज में भगत सिंह ने उच्च शिक्षा लेने के लिए दाखिला लिया था |उस समय लाला छबीलदास उस कालेज के प्रिंसिपल थे वे नौजवानों को पाठ्य पुस्तके पढने के साथ -साथ इस बात को प्रोत्साहित करते रहते थे की उन्हें राष्ट्र व समाज हित में क्या कुछ पढ़ना और जानना चाहिए|
लाहौर में लाला लाजपत राय की 'द्वारका दास लाइब्रेरी 'और लाहौर के ही अनारकली बाज़ार में 'रामकृष्ण एंड सन्स' की किताबो की दूकान से भगत सिंह को मैगजीन ,गैरी बाल्डी,वाल्टेयर,जैसे यूरोपीय क्रान्तिकारियो के जीवन संघर्ष को पढने और जानने के साथ विक्टर ह्यूगो ,टालस्टाय,बर्नाड शा ,मैक्सिम गोर्की आदि जैसे महान लोगो के साहित्य को भी पढने का सुअवसर मिला और उससे उन्होंने भरपूर मार्ग दर्शन लिया | भगत सिंह को देश के जनसाधारण के प्रति मेहनत कशो के प्रति सिद्धांतनिष्ठ एवं कर्तव्यनिष्ठ होने का मार्गदर्शन देने में सोहन सिंह जोश ने अहम भूमिका निभायी |वे कम्युनिस्ट नेता होने के साथ -साथ 'कीरति' मासिक पत्रिका के सम्पादक भी थे |
वे भगत सिंह से विभिन्न विषयों पर चर्चा करने के साथ -साथ उन्हें 'कीरति 'में लिखने के लिए प्रोत्साहित भी करते रहते थे |उन्ही के शुरूआती प्रयासों के फलस्वरूप भगत सिंह कई अखबारों के लेखन ,सम्पादन में महत्व पूर्ण भूमिका निभाने में सफल रहे |
इसके अलावा वे ब्रिटिश ताकतों के विरुद्ध देश में होते रहे विरोधो ,विद्रोहों के खासकर 1857 के और फिर उससे भी ज्यादा गदर पार्टी के विरोध -विद्रोह के प्रयासों को जानने समझने में लगे रहते थे |वे गदर पार्टी के महान नेता करतारसिंह सराभा की फोटो अपने पास रखते थे और कहते थे कि यह मेरा गुरु ,मेरा साथी और मेरा भाई है | याद रखने की बात है कि करतार सिंह सराभा को भगत सिंह से कम उम्र में (19 )वर्ष फांसी के फंदे पर झुलना पडा था |यह बात स्मरणीय है कि गदर पार्टी के करतार सिंह सराभा जैसे ज्यादातर पंजाब से जुड़े हुए थे |इन्ही महान संघर्षशील अन्तराष्ट्रीय व राष्ट्रीय तथा स्थानित परिस्थितियों ने भगत सिंह को महान क्रांतिकारी की भूमिका निभाने के लिए उनका पथ प्रशस्त किया |उन्हें वैचारिक व व्यहारिक रूप में राष्ट्रीय व सामाजिक क्रान्ति का अग्रदूत बनने का सुअवसर प्रदान किया |यह बात दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश कि बहुसंख्यक जनता उन्हें बम पिस्तौल वाले बहादुर नौजवान एवं राष्ट्रभक्त क्रांतिकारी बलिदानी के रूप में जानती है |जबकि राष्ट्र स्वतंत्रता से लेकर समाज के बदलाव के बारे में उनके वैचारिक क्रान्ति के प्रयास कही ज्यादा है |देश कि आम जनता के लिए आज के दौर में भी वे प्रयास मार्गदर्शक और दिशानिर्धारक है |
देश काल कि उपरोक्त परिस्थितियों से उर्जा लेते हुए सबसे पहले नेशनल कालेज के छात्र के रूप में भगत सिंह और उनके साथियो ने 1926 में लाहौर में नौजवान भारत सभा का गठन किया |भगत सिंह इस सभा के महासचिव और भगवती चरण वोहरा प्रचार मंत्री बने |1928 में अमृतसर में हुए सम्मलेन में नौजवान भारत सभा ने अपना घोषणा पत्र जारी किया उसमे साफ़ कहा गया है कि "हमे अपनी जनता को आने वाले महान संघर्ष के लिए करना पडेगा |हमारी राजनैतिक लड़ाई 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के ठीक बाद से ही आरम्भ हो गयी थी |वह कई दौरों से होकर गुजर चूकि है |20 वी शताब्दी के आरम्भ से अंग्रेज नौकरशाही ने भारत के प्रति एक नयी नीति अपनाई है |वे हमारे देश के पूंजीपतियों तथा निम्न पूंजीपति वर्ग को सहूलियत देकर उन्हें अपनी तरफ मिला रहे है |दोनों का हित एक हो रहा है |भारत में ब्रिटिश पूंजी के अधिकाधिक प्रवेश का अनिवार्यत:यही परिणाम होगा |निकट भविष्य में बहुत शीघ्र हम उस वर्ग को तथा उसके नेताओं को विदेशी शासको के साथ जाते देखेंगे |अत:'अब देश को तैयार करने के भावी कार्यक्रम का शुभारम्भ इस आदर्श वाक्य से होगा -क्रान्ति जनता द्वारा जनता के हित में |दूसरे शब्दों में 98 प्रतिशत के लिए स्वराज्य जनता द्वारा प्राप्त ही नही बल्कि जनता के लिए भी |
यह एक बहुत कठिन काम है ...........युवको के सामने काफी कठिन काम है और उनके साधन बहुत थोड़े है |उनके मार्ग में बहुत सी बाधाये भी आ सकती है लेकिन थोड़े किन्तु निष्ठावान व्यक्तियों की लगन उन पर विजय पा सकती है |युवको को आगे जाना चाहिए |उनके सामने जो कठिन एवं बाधाओं से भरा मार्ग है ,और उन्हें जो महान कार्य सम्पन्न करना है ,उसे समझना होगा |उन्हें अपने दिल में यह बात रख लेनी चाहिए कि सफलता मात्र एक संयोग है जबकि बलिदान एक नियम |.......................... इस बीच नौजवान भारत सभा के क्रान्तिकारियो ने काकोरी ट्रेन डकैती में पकडे गये रामप्रसाद बिस्मिल जैसे क्रान्तिकारियो को जेल से छुडा लेने की योजना भी बनाई ,परन्तु ब्रिटिश पुलिस प्रशासन की बड़ी और संगठित ताकत के चलते वह योजना अमल में नही लायी जा सकी |
इसी दौरान भारत में संवैधानिक सुधारों के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा मनमाने ढंग से गठित साइमन कमीशन का देश में आगमन हुआ |इस कमीशन का देश भर में विरोध हुआ |30 अक्तूबर 1928 को यह कमीशन लाहौर पहुचा |विरोध प्रदर्शन में हुए लाठी चार्ज के चलते लाला लाजपत राय पर लाठियाँ बरसाने के लिए जिम्मेदार पुलिस अधिकारी साडर्स की हत्या कर दी |भगत सिंह ने इसमें प्रमुख भूमिका निभाई |साडर्स -वध के बाद क्रान्तिकारियो द्वारा गठित हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक संगठन की तरफ से जारी नोटिस में यह घोषणा की गयी कि.....'मनुष्य का रक्त बहाने के लिए हमे खेद है |परन्तु क्रान्ति की बलि वेदी पर कभी -कभी रक्त बहाना अनिवार्य हो जाता है |हमारा उद्देश्य एक ऐसी क्रान्ति से है जो मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण का अन्त कर देगी ।इन कारवाइयो के साथ -साथ भगत सिंह कीरति नाम की पंजाबी पत्रिका में तथा हिदी के प्रताप ,प्रभा महारथी ,चाँद आदि पत्रिकाओं में राष्ट्र की स्वतंत्रता और समाज कीं विभिन्न समस्याओं को लेकर लिखते रहे |उनके लेखो में पंजाब -की भाषा तथा लिपि की समस्या (1924) 'विश्व प्रेम '(1929 )'युवक '(1925) 'धर्म और हमारा स्वतंत्रता संग्राम (1928 )'साम्प्रदायिक दंगे 'और उनका इलाज़ '(1928) 'अछूत 'समस्या (1928) 'मैं नास्तिक क्यों हूँ '(1930 )आदि जैसे महत्वपूर्ण लेख है |राजनीतिक लेखो में वे और उनके क्रांतिकारी साथी राष्ट्र की क्रांतिकारी घटनाओं और शहीदों के जीवन संघर्षो को लेकर निरंतर लेख लिखते और प्रकाशित करते रहे
इनमे 'होली के दिन रक्त के छीटे' (1926) 'काकोरी के वीरो से परिचय ''काकोरी के शहीदों की फांसी के हालात' (1928) 'काकोरी के शहीदों के लिए प्रेम के आंसू 'सूफी अम्बा प्रसाद (1928) बलवंत सिंह (1928) डाक्टर मथुरा सिंह (1928) शहीद करतार सिंह सराभा (1928) मदनलाल धिगरा (1928) शहीद खुदीराम बोस (1928) अराजकता वाद (1928) विद्यार्थी और राजनीत (1928) 'नौजवान भारत सभा लाहौर का घोषणा पत्र (1928) हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएसन का घोषणा पत्र (1929 )बम का दर्शन (1930 )क्रांतिकारी मसौदा (1931) युद्ध अभी जारी है (1931 ) तथा अन्य बहुत सारे सारगर्भित एवं महत्वपूर्ण लेख तथा पर्चे व पत्र आदि शामिल है |भगत सिंह के जीवन के बाद की घटनाओं में असेम्बली बम काण्ड प्रमुख है |ब्रिटिश साम्राज्य का जन विरोधी और मजदूर विरोधी नीतियों को बढावा देने के लिए सरकार सदन में चर्चा के बाद सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक (पब्लिक सेफ्टी बिल )और 'औद्योगिक विवाद विधयेक (ट्रेड डिस्प्यूट बिल ) लागू करने जा रही थी |असेम्बली हाल में उन्ही बिलों पर चर्चा के दौरान भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल 1929 को हाल की खाली जगह पर दो बमो का धमाका करने के साथ हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक सेना की तरफ से पर्चे फेके |इस बम विस्फोट से कोई मारा नही गया और न ही बम फेकने के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त वहा से भागे नही |उन्होंने पूर्वनियोजित योजना के अनुसार अपनी गिरफ्तारिया दी |इसके बाद उसी योजनानुसार न्यायालय की सुनवाई के दौरान भगत सिंह ने अपना ब्यान अदालत के माध्यम से पूरे देश में पहुचा दिया |वे ब्यान भी एक महत्वपूर्ण एतिहासिक दस्तावेज बन चुके है |न्यायालय में पहला मुकदमा असेम्बली बम काण्ड को लेकर था जिसकी जिमीदारी दोनों ने बम के साथ पर्चे फेकने के रूप में ही ले ली थी |अदालत में उन्होंने स्पष्ट कहा की उनका उद्देश्य भरी सरकार की जनविरोधी बिलों के प्रति अपने विरोध को सुनाना था न की किसी को मारना |इस केस में दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी | लाहौर षड्यंत्र केस में भगत सिंह ,राजगुरु और सुखदेव को मृत्यु दंड दिया गया |मुकदमे के दौरान भगत सिंह ने क्रान्तिकारियो के साथ जेल में होते रहे अमानुषिक व्यवहार व अत्याचार के विरुद्ध लंबा अनशन किया |लेकिन इस बीच उनका लिखना पढ़ना और पत्र व्यवहार निरन्तर जारी रहा |अनशन के दौरान कमजोर हालात में स्ट्रेचर पर लाये जाने के वावजूद उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य और उसकी न्यायालयी व्यवस्था के ढोंग ,पाखण्ड को नगा करने के साथ -साथ क्रान्तिकारियो के लक्ष्यों ,उद्देश्यों को स्पष्ट करने तथा उनके विरुद्ध होते रहे दुष्प्रचारो का जबाब देना जारी रखा |23 मार्च 1931 के दिन सारे नियम -कानून ताक पर रखकर भगत सिंह ,राजगुरु और सुखदेव को शाम के समय फांसी दे दी गयी |जेल प्रशासन ने उनकी लाशें परिजनों को भी नही दी |उनको सतलुज के किनारे जलाकर खत्म कर दिया |क्योंकि उनको डर था की लाशें पाकर भारी जन समूह इकठ्ठा हो सकता है और ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ उग्र विरोध के लिए खड़ा हो सकता है |साम्राज्यवादियों की यह करतूत एकदम समझ में आने वाली है |लेकिन कडवी सच्चाई यह भी है की 1947 से पहले और उसके बाद भी देश के ख्याति प्राप्त नेताओं द्वारा भी भगत सिंह और उनके साथियो के साथ भारी अन्याय किया जाता रहा है |उनके क्रान्ति के महान व गंभीर उद्देश्यों पर पर्दा डालने का काम किया जाता रहा है |उन्हें मुख्य रूप से कांग्रेस व गांधी जी के अहिंसा के पथ के विपरीत हिंसा के पथ के अनुगामी के रूप में चित्रित किया जाता रहा |आज भी देश का जन मानस गांधी व अन्य कांग्रेसी नेताओं को अहिंसावादी देशभक्त तथा भगत सिंह व अन्य क्रान्तिकारियो को हिंसावादी देशभक्त के रूप में ही जानता है |
जबकि सच्चाई एकदम दूसरी है |वह यह की 1922 -24 के बाद से देश का धनाढ्य एवं उच्च हिस्सा कांग्रेस व मुस्लिम लीग जैसी पार्टियों की अगुवाई में ब्रिटिश साम्राज्यवाद से समझौता करते हुए सत्ता की बागडोर को अपने हाथ में लेना चाहता था |देश पर 250 सालो से आधिपत्य जमाए रहे ब्रिटिश साम्राज्यवादियों के लूट के संबंधो को बरकरार रखते हुए देश के संसाधनों पर और शासन सत्ता पर धनाढ्य एवं उच्च वर्गो का पूर्ण अधिकार स्थापित करना चाहता था |इन्ही अधिकारों को ब्रिटिश साम्राज्य के साथ किए जाते रहे समझौतों के जरिये बढाया भी जाता रहा था |और फिर समझौतों की अगली व अंतिम कड़ी के रूप में 1947 की स्वतंत्रता का समझौता भी पूरा कर लिया गया |इसकी भविष्यवाणी भगत सिंह के संगठन हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक संगठन ने अपने घोषणा (वर्ष 1929 ) में पहले ही कर दी थी |इसे आप संगठन के घोषणा पत्र में देख सकते है |उस घोषणा पत्र के कुछ अंश "".भारत साम्राज्यवाद के जुए के नीचे पिस रहा है |इसमें करोड़ो लोग आज अज्ञानता और गरीबी के शिकार हो रहे है |भारत की बहुत बड़ी जनसख्या मजदूरों और किसानो की है ,उनको विदेशी दबाव एवं आर्थिक लूट ने पस्त कर दिया है |भारत के मेहनतकश वर्ग की हालत आज बहुत गंभीर है |उसके सामने दोहरा खतरा है -विदेशी पूंजीवाद का एक तरफ से और भारतीय पूंजीवाद के धोखे भरे हमले का दूसरी तरफ से |भारतीय पूंजीवाद विदेशी पूंजी के साथ हर रोज बहुत से गठजोड़ कर रहा है |कुछ राजनैतिक नेताओं का डोमिनियन (प्रभुता सम्पन्न ) का रूप स्वीकार करना भी हवा के उसी रुख को स्पष्ट करता है |......
भारतीय पूंजीपति भारतीय लोगो को धोखा देकर विदेशी पूंजीपति से विश्वास घात की कीमत के रूप में सरकार से कुछ हिस्सा प्राप्त करना चाहता है |......... फिर फांसी से 13 दिन पहले जेल से लिखे लेख 'युद्ध अभी जारी है (10 मार्च 1931 ) में भगत सिंह ,राजगुरु ,सुखदेव ने यह घोषणा की है की "अंग्रेज जातिऔर भारतीय जनता के मध्य एक युद्ध चल रहा है |....हमने निश्चित रूप से इस युद्ध में भाग लिया है |...यह युद्ध तब तक चलता रहेगा जब तक शक्तिशाली व्यक्तियों ने भारतीय जनता और श्रमिको की आय के साधनों पर अपना एकाधिकार कर रखा है |चाहे ऐसे व्यक्ति अंग्रेज पूंजीपति और अंग्रेज या सर्वथा भारतीय ही क्यों ना हो |उन्होंने आपस में मिलकर एक लूट जारी चाहे शुद्ध भारतीय पूंजीपति के द्वारा ही निर्धनों का खून चूसा जा रहा हो तब भी |..इससे कोई अन्तर नही पड़ता |यह युद्ध जारी रहेगा ..जब तक की समाज का वर्तमान ढ़ाचा समाप्त नही हो जाता |.....
क्या यह युद्ध आज भी जारी नही है ? एकदम जारी है |अमेरिका इंग्लैण्ड जैसे साम्राज्यी देशो की साम्राज्यी कम्पनियों ,सरकारों और उनकी सहयोगी बनी भारत -पाक जैसे पिछड़े देशो की धनाढ्य कम्पनियों व सरकारों में गठजोड़ व सहयोग से जारी है |पिछड़े देशो के जनसाधारण पर हो रहे आर्थिक ,कुटनीतिक एवं सैन्य हमलो के रूप में जारी है |पिछले 20 सालो से देश दुनिया के धनाढ्य वर्गो के हितो को बढाने और जनसाधारण के हितो को काटने -घटाने वाली वैश्वीकरणवादी आर्थिक नीतियों और भोगवादी संस्कृति नीतियों के रूप में प्रत्यक्ष:जारी है |फिर यह युद्ध ईराक ,अफगानिस्तान ,लीबिया जैसे पिछड़े देशो में हमलावार सैन्य साम्राज्यी नीतियों के रूप में भी प्रत्यक्ष:जारी है इस युद्ध और हमले को देश का जनसाधारण महंगाई ,बेकारी के रूप में ,खेती -किसानी एवं छोटे स्तर के कारोबारों की टूटन के रूप में महंगाई और पहुच से बाहर होती जा रही शिक्षा के रूप में ,नग्न -अर्धनग्न लचर भोगवादी संस्कृति के रूप में और सामाजिक टूटन -बिखराव आदि के रूप में झेलता जा रहा है |दुःख कष्ट और जिल्लत से जीने की मजबूरी के साथ वह आत्महत्या का रास्ता भी पकड़ता जा रहा है |क्योंकि वह इस युद्ध को देख नही पा रहा है ,समझ नही पा रहा है |आवश्यकता है इस जारी युद्ध को समझने की और संगठित होकर उसका मुकाबला करने की |विदेशी वैश्विक नीतियों के विरोध के साथ राष्ट्र व राष्ट्र के जनसाधारण को वैश्विक लूट व प्रभुत्व के संबंधो से मुल्त करने के लिए नया क्रांतिकारी युद्ध छड़ने की |उसके लिए भगत सिंह व अन्य राष्ट्रीय अन्तराष्ट्रीय क्रान्तिकारियो से सबक ,शिक्षा व मार्ग दर्शन ग्रहण करने की |
युद्ध अभी जारी है ...

-सुनील दत्ता
पत्रकार
साभार चर्चा आज कल

1 टिप्पणी:

रविकर ने कहा…

ताजम-ताजा मामला, जाती पब्लिक भूल ।
बात पुरानी हो गई, अब क्या देना तूल ।

अब क्या देना तूल, भगत सुखदेव विचारे ।
राज गुरू सिरमौर, राज से हारे हारे ।

डंका कुल संसार, शहीदे आजम बाजा ।
ये पब्लिक सरकार, भूलते ताजम-ताजा ।

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