शुक्रवार, 16 मार्च 2012
इज्जतदार जिंदगी की चाहत-2
विस्थापन से रोजी का एक स्थायी संकट पैदा होता है क्योंकि विस्थापन मनुष्य को उन परिस्थितियों से दूर करता है जिनमें वह अपने ज्ञान का इस्तेमाल करके अपनी रोजी चला रहा होता है। इसके अलावा एक सामाजिक संकट भी पैदा होता है क्योंकि वह या तो अपने समुदाय से अलग कर दिया जाता है या फिर पूरा समुदाय ही विस्थापित हो जाता है। यानी विस्थापन के बेहद दूरगामी आर्थिक, सांस्कृतिक, सामाजिक एवं दार्शनिक नतीजे होते हैं। गरीब होने के चलते उसे कोई सक्षम नया ज्ञान हासिल करने का मौका नहीं मिलता है और वह सस्ती मजदूरी के काम करने के लिए मजबूर हो जाता है। विस्थापन से मुकाबला केवल जिनका विस्थापन होता है वे ही कर लें, संभव नही है। इस मुकाबले का दारोमदार पूरे लोकविद्याधर समाज पर है और यह उनकी सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा, बराबरी और इज़्ज़त की लड़ाई का हिस्सा बनना होगा। वाराणसी में हाल ही में सम्पन्न लोकविद्या जन आन्दोलन के अधिवेशन में इस सिलसिले में दो माँगें उभर कर आईं। पहली यह कि लोकविद्या के आधार पर जीवनयापन का अधिकार होना चाहिए तथा इसे एक मौलिक संवैधानिक अधिकार बनाया जाना चाहिए। दूसरी यह कि इस देश के हर बालिग को पक्की नौकरी मिलनी चाहिए, जिसे जो आता है उसके बल पर यह नौकरी मिले और इस नौकरी में सरकारी नौकरी के बराबर की तनख्व़ाह मिले। यह लोकविद्या के आधार पर ऐसी आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा की माँग है जिसके बगैर जि़न्दगी में केवल अभाव और बेइज्जती का ही समाना करना पड़ता है। इसके लिए लोकविद्याधर समाज का एक ज्ञान आन्दोलन खड़ा करना होगा, सार्वजनिक दुनिया में यह दावा पेश करना होगा कि किसान, कारीगर, आदिवासी, छोटे-छोटे दुकानदार और महिलाएँ जो ज्ञान रखते हैं वह विश्वविद्यालय के ज्ञान से किसी भी अर्थ में कम नही है, इसलिए अपने ज्ञान के बल पर लोकविद्याधर समाज को भी वे सब हक और मौके मिलने चाहिए जो आधुनिक पढ़े-लिखे समाज को प्राप्त हैं। इन समाजों का चारों तरफ हो रहा विस्थापन हमें यह कहता नज़र आता है कि लोकविद्याधर समाज के सारे अंग एक साझा ज्ञान आन्दोलन के कगार पर खड़े हैं, जो इस नये दर्शन के आधार पर सबके लिए बराबरी और इज़्ज़त की दुनिया की एक तस्वीर पेश करता है।
-सुनील सहस्र बुद्धे
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2 टिप्पणियां:
सच सभी को इज्जतदार जिंदगी की चाहत रहती है बस सभी सकारात्मक सोच बनाकर पहल करें तो फिर कोई भी गरीब हो या विस्थापित सूरत बदलते देर नहीं लगेगी..
बहुत बढ़िया सार्थक प्रस्तुति..आभार!
लेकिन नक़्कारखाने में तूती की आवाज़ है आपकी बात आज के इस 'समर्थ का वर्चस्व' वाले समय में.
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