आतंकवाद के नाम पर कचहरी सीरियल बम विस्फोट कांड में उत्तर प्रदेश एस0टी0एफ0 द्वारा अपने पदीय उत्तरदायित्व को पूरा न करके गैर ज़िम्मेदाराना तरीके से एक सोची समझी रणनीति के तहत आजमगढ़ के तारिक कासमी व जौनपुर के ख़ालिद मुजाहिद को बाराबंकी रेलवे स्टेशन के सामने डिटोनेटर, आर0डी0एक्स0 के साथ गिरफ्तारी दिखाई थी।
वस्तु स्थिति यह है कि कचहरी सीरियल बम विस्फोट काण्ड में फैजाबाद जनपद में अधिवक्ता समेत कई लोग मारे गए थे, ऐसे गंभीर घटना का खुलासा करने में एस0टी0एफ0 असमर्थ रही तो उसने अपना पीछा छुड़ाने के लिए शाबासी व ईनाम प्रोन्नत पाने के लिए तथा सोची समझी रणनीति के तहत 12 दिसम्बर 2007 तारिक कासमी को थाना रानी की सरांय जिला आजमगढ़ से उत्तर प्रदेश एस0टी0एफ0 द्वारा उठा लिया गया था। जिसका मुख्य सबूत यह है कि वहां आने वाले सभी अखबारों ने इस घटना को प्रमुखता से प्रकाशित किया था। तारिक कासमी के दादा ने दिनांक 14 दिसम्बर 2007 को लिखित सूचना थाना रानी की सरांय जिला आजमगढ़ को दिया था किन्तु पहले से गिरफ्तार तारिक कासमी को बाराबंकी रेलवे स्टेशन के सामने फर्जी तरीके से आर0डी0एस0 व डिटोनेटर के साथ गिरफ्तारी दिखाई। उन्हीं के साथ खालिद मुजाहिद थाना मडि़याहूं जिला जौनपुर से दिनांक 16 दिसम्बर 2007 को उ0प्र0 एस0टी0एफ0 द्वारा उठा लिया गया था, जिसकी पुष्टि सूचना अधिकार अधिनियम के तहत जन सूचना अधिकारी क्षेत्राधिकारी मडि़याहूॅ ने लिखित रूप में की है। बरामदगी आर0डी0एक्स0 व डिटोनेटर से सम्बंधित बात भी झूठी है क्योंकि उत्तर प्रदेश एस0टी0एफ0 का कहना है कि आर0डी0एक्स व डिटोनेटर बरामदगी के साथ दोनों नौजवानों के मोबाइल दिनांक 22.12.2007 को सुबह 9.00 बजे तक स्वीच आॅफ कर सर्वमोहर कर दिया गया था, किन्तु ए0टी0एस0 के विवेचना अधिकारी ने जो काल डिटेल दाखिल की है उसमें खालिद मुजाहिद के पास बरामद मोबाइल पर दिनांक 22.12.2007 को 11.49 बजे दिन में एस0एम0एस0 आया है जिससे साबित होता है कि रेलवे स्टेशन के सामने कोई भी बरामदगी नहीं हुई और न ही कोई चीज सर्वमोहर की गई।
तारिक कासमी व खालिद मुजाहिद के पास बरामद मोबाइल व कपड़ों को एस0टी0एफ0 द्वारा नए मारकीन के कपड़े खरीद कर सर्वमोहर करना बताया गया था, जबकि न्यायालय के समक्ष जब दोनों सर्वमोहर पैकेट सी0ओ0 चिरंजीव नाथ सिन्हा के साक्ष्य के समय खोला गया तो पुरानी सफेद चादर के दो भाग करके माल सर्वमोहर होना पाया गया जिससे यह साबित होता है कि रेलवे स्टेशन के सामने कोई बरामदगी व लिखा पढ़ी नहीं हुई थी।
लखनऊ में एस0टी0एफ0 द्वारा फर्द बरामदगी में साइकिल बरामद करना बताया गया है लेकिन फर्द बरामदगी में साइकिल का फ्रेम नम्बर और विवेचना में साइकिल की रसीद में दिए गए फ्रेम नम्बर अलग-अलग है।
महत्वपूर्ण बात यह भी है कि तत्कालीन पुलिस प्रमुख विक्रम सिंह तथा बृजलाल ने योजनाबद्ध तरीके से मुस्लिम नौजवानों को आतंकी घटनाओं में निरूद्ध किया था। जनता के दबाव पर सरकार ने आर0डी0 निमेष कमीशन भी बनाया जिसकी भी रिपोर्ट अभी तक तैयार नहीं हुई। इन फ़र्ज़ी मुकदमों को अविलम्ब वापस लेने की आवश्यकता है। जिससे जनता में विधि के शासन के प्रति विश्वास पैदा हो सके पुलिस में मौजूद उन तत्वों की छानबीन करने की आवश्यकता है जो फ़र्ज़ी मुकदमों में लोगों को निरूद्ध करते हैं।
कचहरी सीरियल बम विस्फोट कांड में एस0टी0एफ0 ने फर्जी लोगों की गिरफ्तारी करके केस को न खोला होता और ईमानदारी से छानबीन की होती तो वास्तविक मुल्जिम पकड़े जाते और आतंक फैलाने वाली घटनाओं पर अंकुश लगता।
हम उत्तर प्रदेश सरकार से मांग करते हैं कि आतंकवाद के नाम पर सोची समझी रणनीति के तहत गिरफ्तार सभी मुल्जिमानों को अविलम्ब रिहा करें तथा निरूद्ध व्यक्तियों को उचित मुआवजा दें तथा दोषी अधिकारियों को दण्डित भी करें जिससे ऐसे किसी निर्दोष आदमी को फर्जी मुकदमें में फँसाने की जुर्रत न कर सकें। कचहरी सीरियल बम विस्फोट कांड में पुनः जांच कर दोषियों/अपराधियों को गिरफ्तार किया जाए।
- मुहम्मद शुऐब
एडवोकेट
- रणधीर सिंह ‘सुमन
एडवोकेट
वस्तु स्थिति यह है कि कचहरी सीरियल बम विस्फोट काण्ड में फैजाबाद जनपद में अधिवक्ता समेत कई लोग मारे गए थे, ऐसे गंभीर घटना का खुलासा करने में एस0टी0एफ0 असमर्थ रही तो उसने अपना पीछा छुड़ाने के लिए शाबासी व ईनाम प्रोन्नत पाने के लिए तथा सोची समझी रणनीति के तहत 12 दिसम्बर 2007 तारिक कासमी को थाना रानी की सरांय जिला आजमगढ़ से उत्तर प्रदेश एस0टी0एफ0 द्वारा उठा लिया गया था। जिसका मुख्य सबूत यह है कि वहां आने वाले सभी अखबारों ने इस घटना को प्रमुखता से प्रकाशित किया था। तारिक कासमी के दादा ने दिनांक 14 दिसम्बर 2007 को लिखित सूचना थाना रानी की सरांय जिला आजमगढ़ को दिया था किन्तु पहले से गिरफ्तार तारिक कासमी को बाराबंकी रेलवे स्टेशन के सामने फर्जी तरीके से आर0डी0एस0 व डिटोनेटर के साथ गिरफ्तारी दिखाई। उन्हीं के साथ खालिद मुजाहिद थाना मडि़याहूं जिला जौनपुर से दिनांक 16 दिसम्बर 2007 को उ0प्र0 एस0टी0एफ0 द्वारा उठा लिया गया था, जिसकी पुष्टि सूचना अधिकार अधिनियम के तहत जन सूचना अधिकारी क्षेत्राधिकारी मडि़याहूॅ ने लिखित रूप में की है। बरामदगी आर0डी0एक्स0 व डिटोनेटर से सम्बंधित बात भी झूठी है क्योंकि उत्तर प्रदेश एस0टी0एफ0 का कहना है कि आर0डी0एक्स व डिटोनेटर बरामदगी के साथ दोनों नौजवानों के मोबाइल दिनांक 22.12.2007 को सुबह 9.00 बजे तक स्वीच आॅफ कर सर्वमोहर कर दिया गया था, किन्तु ए0टी0एस0 के विवेचना अधिकारी ने जो काल डिटेल दाखिल की है उसमें खालिद मुजाहिद के पास बरामद मोबाइल पर दिनांक 22.12.2007 को 11.49 बजे दिन में एस0एम0एस0 आया है जिससे साबित होता है कि रेलवे स्टेशन के सामने कोई भी बरामदगी नहीं हुई और न ही कोई चीज सर्वमोहर की गई।
तारिक कासमी व खालिद मुजाहिद के पास बरामद मोबाइल व कपड़ों को एस0टी0एफ0 द्वारा नए मारकीन के कपड़े खरीद कर सर्वमोहर करना बताया गया था, जबकि न्यायालय के समक्ष जब दोनों सर्वमोहर पैकेट सी0ओ0 चिरंजीव नाथ सिन्हा के साक्ष्य के समय खोला गया तो पुरानी सफेद चादर के दो भाग करके माल सर्वमोहर होना पाया गया जिससे यह साबित होता है कि रेलवे स्टेशन के सामने कोई बरामदगी व लिखा पढ़ी नहीं हुई थी।
लखनऊ में एस0टी0एफ0 द्वारा फर्द बरामदगी में साइकिल बरामद करना बताया गया है लेकिन फर्द बरामदगी में साइकिल का फ्रेम नम्बर और विवेचना में साइकिल की रसीद में दिए गए फ्रेम नम्बर अलग-अलग है।
आतंकवाद संबंधित प्रदेश में विभिन्न थानों में दर्ज की गई तहरीरों की भाषा एक है और उनको एक साथ रखने पर यह साबित होता है कि सभी प्रथम सूचना रिपोर्ट की तहरीर एक ही व्यक्ति ने लिखी है। रही बात आर0डी0एक्स0, डिटोनेटर बरामदगी की बात वह पूरी तरीके से फ़र्ज़ी इस तरह से साबित होती है कि उसे कहीं भी पेश नहीं की गई है केवल कागज में ही बरामदगी है व कागज में ही डिस्पोजल किया गया है।
दोनों निर्दोष नवजवानों को एस0टी0एफ0 ने उनके इकबालिया बयान के आधार पर ही कार्यवाही की है वह इकबालिया बयान भी एस0टी0एफ0 ने अपने मन से लिखा था। यदि दोनों नौजवानों ने कोई इकबालिया बयान दिया होता तो नवजवानों का कलमबंद बयान मजिस्टेªट के सामने कराया गया होता। इस सम्बन्ध में कोई प्रार्थना पत्र भी किसी न्यायालय में एस0टी0एफ0 ने नहीं दिया है। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि तत्कालीन पुलिस प्रमुख विक्रम सिंह तथा बृजलाल ने योजनाबद्ध तरीके से मुस्लिम नौजवानों को आतंकी घटनाओं में निरूद्ध किया था। जनता के दबाव पर सरकार ने आर0डी0 निमेष कमीशन भी बनाया जिसकी भी रिपोर्ट अभी तक तैयार नहीं हुई। इन फ़र्ज़ी मुकदमों को अविलम्ब वापस लेने की आवश्यकता है। जिससे जनता में विधि के शासन के प्रति विश्वास पैदा हो सके पुलिस में मौजूद उन तत्वों की छानबीन करने की आवश्यकता है जो फ़र्ज़ी मुकदमों में लोगों को निरूद्ध करते हैं।
कचहरी सीरियल बम विस्फोट कांड में एस0टी0एफ0 ने फर्जी लोगों की गिरफ्तारी करके केस को न खोला होता और ईमानदारी से छानबीन की होती तो वास्तविक मुल्जिम पकड़े जाते और आतंक फैलाने वाली घटनाओं पर अंकुश लगता।
हम उत्तर प्रदेश सरकार से मांग करते हैं कि आतंकवाद के नाम पर सोची समझी रणनीति के तहत गिरफ्तार सभी मुल्जिमानों को अविलम्ब रिहा करें तथा निरूद्ध व्यक्तियों को उचित मुआवजा दें तथा दोषी अधिकारियों को दण्डित भी करें जिससे ऐसे किसी निर्दोष आदमी को फर्जी मुकदमें में फँसाने की जुर्रत न कर सकें। कचहरी सीरियल बम विस्फोट कांड में पुनः जांच कर दोषियों/अपराधियों को गिरफ्तार किया जाए।
- मुहम्मद शुऐब
एडवोकेट
- रणधीर सिंह ‘सुमन
एडवोकेट
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