सेलुलर जेल- फोटो-कृष्ण कुमार यादव
रही बात उपायों की -शांतिमय अथवा दुसरे -जिन्हें हम क्रांतिकारी आदर्श की पूर्ति के लिए काम में लायेंगे |हम कह देना चाहते है की इसका फैसला बहुत कुछ उन लोगो पर निर्भर करता है जिसके पास ताकत है |क्रांतिकारी तो फायदा चाहने के सिद्धांत पर विश्वास करने के नाते शान्ति के उपासक है -सच्ची और टिकने वाली शान्ति के जिसका आधार न्याय तथा समानता पर है ,न की कायरता पर आधारित तथा संगीनों की नोक पर बचाकर रखी जाने वाली शान्ति के |
बयान के अन्त में कहा गया गया था ,'हम पर ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध युद्ध छेड़ने का अभियोग लगाया गया है |हम ब्रिटिश सरकार की बनाई हुई किसी भी अदालत से न्याय की आशा नही रखते और इसलिए हम न्याय के नाटक में भाग नही लेंगे |"
केस समाप्त हो जाने पर सम्राट के खिआफ युद्ध और सांडर्स की हत्या में सहायता करने के अभियोग में उन्हें उनके सात अन्य साथियो के साथ आजन्म कारावास का दंड दिया गया |सजा के बाद कुछ दिनों तक पंजाब की जेलों में रखकर बाकी लोगो को (भगत सिंह राजगुरु सुखदेव और किशोरी लाल के अतिरिक्त )मद्रास प्रांत की विभिन्न जेलों में भेज दिया गया |महावीर सिंह और गयाप्रसाद को बेलोरी (कर्नाटक राज्य के अंतर्गत ) सेंट्रल जेल ले जाया गया |
वे 1930 -31 के सत्याग्रह के दिन थे और बेलारी जेल स्याग्रही बन्दियो से भरा था |जेल में इन दोनों साथियो ने कैदी नम्बर की तख्ती सीने पर लटकाने ,टोपी पहने ,परेड के दौरान सर पर बिस्तरा आदि रखकर खड़े होने से इनकार कर दिया |
जेलर अपने समय का मुक्केबाज था |वह सिपाहियों से उन्हें खड़ा करवाता ,फिर हर एक पर दस -दस ,पन्द्रह -पन्द्रह तक मुक्केबाजी का अभ्यास करता |जेलर ने वाडर से कहकर महावीर सिंह की कोठरी खुलवाई |वाडरो ने महावीर सिंह को बाहर लाकर जेलर के सामने खड़ा कर दिया और उसने मुक्केबाजी शुरू कर दी |उस दिन महावीर सिंह के हाथो में हथकड़ी नही थी |उन्होंने एक झटके से अपना दाहिना हाथ छुडा लिया और जेलर के मुँह पर इतनी जोर से घुसा मार दिया की हाथ -पैर बंधे कैदियों पर घुसेबाजी का अभ्यास करने वाले उस बुजदिल जेलर का बहादुर कैदियों पर मुक्केबाजी समाप्त हो गयी |हालाकि इसके बाद दंड महावीर सिंह को तीस बेतों की सजा झेलनी पड़ी |हर बेत की सजा के साथ टिकटिकी पर बंधे महावीर सिंह 'जिंदाबाद 'के नारे लगाते रहे |उनके पीठ की खाल उधडती रही ,पर उनके नारे तीव्रतर होते गये |तीस की गिनती पूरी होने पर वहा खड़े अस्पताल के लोगो ने उन्हें टिकटिकी से उतारा और स्ट्रेचर पर डालकर अस्पताल ले जाना चाहा |लेकिन महावीर सिंह ने स्ट्रेचर पर लेटने या किसी का सहारा लेने से इनकार कर दिया |उन्होंने जेलर की ओर देखकर जेल को क़पा देने वाली आवाज में एक बार फिर नारा लगाया और उन्नत भाल टहलते हुए अपने अहाते चले गये |जेलर भी सर झुकाए धीमी गति से चुपचाप अपने दफ्तर की ओर चल दिया -जैसे बेत महावीर सिंह को नही उसकी को लगे हो |जनवरी 1933 में उन्हें उनके कुछ साथियो के साथ मद्रास से अण्डमान (काला पानी )भेज दिया गया |उन दिनों अण्डमान जेल की हालत बड़ी खराब थी |वहा इंसान जानवर बनाकर रखा जाता था |अस्तु सम्मानजनक व्यवहार ,अच्छा खाना ,पढने -लिखने की सुविधाए ,रात में रौशनी आदि की मांगो को लेकर सभी राजनितिक बंदियों ने 12 मई,1933 से अनशन आरम्भ कर दिया |उससे पूर्व इतने अधिक बन्दियों ने एक साथ इतने दिनों तक कही भी अनशन नही किया था |अनशन के छठे दिन से ही अधिकारियों ने बलपूर्वक दूध पिलाने का कार्यक्रम आरम्भ कर दिया
आधे घण्टे की कुश्ती के बाद दस -बारह व्यक्तियों ने मिलकर महावीर सिंह को जमीन पर पटक दिया और डाक्टर ने एक घुटना उनके सीने पर रखकर नली नाक के अन्दर चला दी |उसने यह देखने की परवाह नही की की नली पेट में न जाकर महावीर सिंह के फेफड़ो में चली गयी है |अपना फर्ज पूरा करने की धुन में पूरा एक सेर दूध उसने फेफड़ो में भर दिया और उन्हें मछली की तरह छटपटाता हुआ छोडकर अपने दल -बल के साथ दूसरे बन्दी को दूध पिलाने चला गया |यह घटना 17 मई 1933 की शाम की है |महावीर सिंह की तबियत तुरंत बिगड़ने लगी |कैदियों का शोर सुनकर डाक्टर उन्हें देखने वापस आया लेकिन उस समय तक उनकी हालत बिगड़ चूकि थी |उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहा देर रात के बारह बजे के बाद आजीवन लड़ते रहने का व्रत लेकर चलने वाला हमारा अथक क्रांतिकारी देश की माटी में विलीन हो गया |अधिकारियों ने चोरी -चोरी उनके शव को समुद्र के हवाले कर दिया |आगे चलकर उस अनशन में दो और क्रांतिकारी मोहित मित्र और मोहन किशोर शहीद हुए |महावीर सिंह के कपड़ो में उनके पिता का एक पत्र भी मिला था |वह पत्र उन्होंने महावीर सिंह के अण्डमान से लिखे उक्त पत्र के उत्तर में लिखा था | पत्र का सारांश कुछ ऐसा है "इस टापू पर सरकार ने देशभर के जगमगाते हीरे चुन -चुनकर जमा किए है |मुझे ख़ुशी है की तुम्हे उन हीरो के बीच रहने का मौक़ा मिल रहा है |उनके बीच रहकर तुम और चमको ,मेरा तथा देश का नाम अधिक रौशन करो ,यही मेरा आशीर्वाद है "|
क्रमश:
- सुनील दत्ता .
पत्रकार
1 टिप्पणी:
सुन्दर प्रस्तुति |
आभार ||
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