रविवार, 15 अप्रैल 2012

आखिर किसके लिए शर्मनाक है ?

                                  जनवरी 2012 में भूख और कुपोषण के संदर्भ में एक सर्वे की रिपोर्ट सार्वजनिक की गयी 'हंगामा अर्थात 'हंगर एंड माल न्यूट्रीशन ' (भूख व कुपोषण )नाम की यह रिपोर्ट कई दलों के सांसदों तथा उच्चस्तरीय समाज सेवी संस्थाओं द्वारा प्रस्तुत की गयी है |इसे देश के प्रधानमन्त्री द्वारा 10 जनवरी को जारी किया गया |इस रिपोर्ट में देश के पांच साल से कम उम्र के 42% बच्चो का वजन सामान्य से कम और 59% बच्चो का कद सामान्य से कम बताया गया |निम्न आय और निम्न शिक्षा प्राप्त परिवारों के बच्चो में कुपोषण की यह स्थिति अन्य परिवारों की तुलना में कही ज्यादा बताई गयी है |सर्वे रिपोर्ट में यह भी कहा गया है की इस देश के नौनिहालों में कुपोषण की यह स्थिति दक्षिणी अफ्रिका के गरीब देशो की तुलना में दो गुनी ज्यादा है |उन देशो में दुर्बल बच्चो की संख्या 24% है |भूख व कुपोषण के अन्तराष्ट्रीय आकंड़ो में भारत की स्थिति को पाकिस्तान ,नेपाल और श्रीलंका से भी खराब बताया गया है |हंगामा 'रिपोर्ट के अनुसार दुनिया का हर तीसरा कुपोषित बच्चा भारतीय है |प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने इस रिपोर्ट को जारी करते हुए देश में भूख व कुपोषण की इस स्थिति को राष्ट्रीय शर्म ' कहते हुए सर्वथा अस्वीकार्य बताया |उन्होंने राष्ट्र के सकल घरेलू उत्पादन में वृद्धि के वावजूद भूख व कुपोषण की उच्च स्थिति को निराशाजनक बताते हुए इसे खत्म करने के लिए गंभीर प्रयास किए जाने की भी बात कही |इस प्रयास में उन्होंने केंद्र सरकार की तरफ से पिछले 37 सालो से चलाई जा रही एकीकृत बाल -विकास योजना (आई .सी डी एस )को नाकाफी बताते हुए एक नया सघन व समग्र कार्यक्रम चलाए जाने की घोषणा की |खासकर भूख और कुपोषण की सबसे खराब स्थितियों वाले देश के 200 जिलो में सघन कार्यक्रम को अविलम्ब शुरू किए जाने की भी घोषणा की |
                                                     यह नया कार्यक्रम कब व कितना लागू होगा उसके क्या सार्थक निर्थक परिणाम आयेंगे यह बात की बात है |लेकिन प्रधानमन्त्री द्वारा रिपोर्ट में बताये गये भूख व कुपोषण की स्थितियों को राष्ट्रीय शर्म 'कहना अपने आप में एक सवाल है की आखिर यह राष्ट्रीय शर्म कैसे है और किनके लिए है ?
देश की केन्द्रीय और प्रांतीय सत्ता सरकारे इस बात को वर्षो से जानती और कबुलती रही है की देश की लगभग 30 -40% आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन जी रही है |देश के प्रधानमन्त्री  तक अपने कई बार के बयानों में यह कहते रहे है की देश के विकास का फल अभी आम लोगो तक नही पहुंच पाया है |फिर पिछले 20 सालो से देश की केन्द्रीय सरकारों के आते -जाते प्रधानमन्त्री गणऔर उनकी सरकारे देश के तेज आधुनिक विकास के नाम पर विदेशी नीतियों ,प्रस्तावों वाले आर्थिक सुधारों को लागू करने के साथ लोगो को कुर्बानी देने 'कड़े कदम बर्दाश्त करने 'कडवे घुट पीने 'आदि की हिदायते देती आ रही है |इसका व्यवहारिक परीलक्षण केन्द्रीय व प्रांतीय सत्ता सरकारों द्वारा किसानो की जमीनों का अधिकाधिक अधिग्रहण करने ,बुनकरों ,दुकानदारों आदि के उद्यम व्यापार को तोड़ने व छिनने विद्यार्थियों को आवश्यक सस्ती सुलभ शिक्षा को महगा और पहुच से बाहर करने ,साधारण पढ़े ,अनपढ़ मजदूरों कर्मचारियों के किसी हद तक स्थायी काम के अवसरों को काटने -घटाने आदि का काम करती रही है |स्थायी रोजगार रोजी की जगह बढती आशिक अर्ध या पूर्ण बेरोजगारी के साथ आम उपभोग के सामानों की मंहगाई को निरन्तर बढाने का काम करती रही है |ऐसी स्थितियों को सुनियोजित ढंग से बढाये जाने के फलस्वरूप उसे देश के गरीबो में ,साधारण मजदूरों ,किसानो ,दस्तकारो ,आदिवासियों एवं अन्य छोटे -मोटे कामो पेशो में लगे लोगो के बच्चो में बढ़ते कुपोषण पर देश की सरकारों को शर्म आखिर क्यों आनी चाहिए ?और क्यों आएगी ? एक दम नही आएगी |यह तो उनके नीतियों ,योजनाओं अनुसार ही हो रहा है |क्योंकि बच्चो का कुपोषण अपने आप में अलग समस्या नही है |बल्कि गिरती आर्थिक स्थितियों वाले व्यापक जनसाधारण से अभिन्न रूप से जुडी समस्या है |यह समस्या उनके रोजी रोजगार ,कामधंधे और आमदनियो की घटती गिरती स्थितियों का उनके घरो परिवारों के नौनिहालों में होता परीलक्षण है |
                                                                  अगर सत्ता सरकारे बहुसंख्यक जनसाधारण की गिरती स्थितियों पर शर्मसार होकर नीचे के बहुसंख्यक जनसाधारण की स्थितियों को ठीक करने में लग जाए ,अर्थात उनके श्रम उत्पादन व साधन का शोषण लूट करने और उन्हें तोड़ने -घटाने का काम बंद कर दे तो देश दुनिया के धन्नासेठो और उनके उच्चवर्गीय सेवको की सेवाए कैसे होगी ?  उन्हें उदारीकरणवादी छूटे कैसे मिलेंगी ?पूरे विश्व के धनाढ्य और उच्च समुदायों में अधिकाधिक जुड़ाव कैसे हो पाएगा ?देश के नाम पर देश के इन धनाढ्य व उच्च हिस्से की तेज वृद्धि व विकास कैसे हो पाएगी ?उनकी सेवा में लगे राजनितिक प्रशासनिक या गैर सरकारी व उच्चस्तरीय प्रचार माध्यमी विद्वान् व उच्च स्तरीय खिलाडियों एवं संस्कृतिकर्मियो आदि की उच्च स्तर की सुविधापरस्ती व चकाचौध कहा से आएगी ?और इस देश का नाम अग्रणी देशो में नाम कैसे होगा ? अगर ऐसा किया जाएगा तब तो यह देश दुनिया के धनाढ्य देशो और धनाढ्य वर्गो की नजर में गिर जाएगा 
|यह स्थिति ही देश की बनती बिगडती सरकारों के लिए असली शर्म की बात होगी |पूरा अन्तराष्ट्रीय जगत उन पर थू -थू करने लगेगा |विश्व का प्रचार तंत्र गालियों और  झूठी आलोचनाओं के भारी हमलो के साथ उन्हें हर तरह से शर्मसार करने लग जाएगा |ठीक उसी तरह से जैसे धनाढ्य वर्गीय अन्तराष्ट्रीय जगत और उसका प्रचार तंत्र विश्व के समाजवादी ,जनवादी और राष्ट्रवादी लीडरो और उनकी सरकारों के साथ करता आ रहा है |लेकिन उसकी नौबत नही आएगी |देश की आती -जाती या वर्तमान सरकारे ऐसा हरगिज नही करेंगी |इसीलिए तो वे एक तरफ तो पांच सितारा होटलों के हजारो रूपये थाली के खाने से लेकर आम समाज में भी भरे पेट वालो को अधिकाधिक खाने खिलाने के भव्य आयोजनों की भोगवादी संस्कृति बढाने में लगी है ,दूसरी तरफ लगभग 40 सालो से कुपोषण रोकने के नाम पर एकीकृत बाल विकास योजनाओं और उसके पुषटाहारो के आधे -अधूरे और भ्रष्टाचार से भरे कार्यक्रमों से ही जनसाधारण के बच्चो का कुपोषण दूर करने के दावे भी करती रही है |अब सरकार से मान्यता सर्वे रिपोर्ट ही इनके दावो को खारिज कर रहा है |उसे सुनकर स्वंय प्रधानमन्त्री महोदय नये सघन एकीकृत कार्यक्रम की बात कर रहे है |लेकिन उस पुराने व किसी नये एकीकृत कार्यक्रमों से नौनिहालों में बढ़ता कुपोषण रुकने वाला नही है |वह तब तक नही रुकने वाला है जब तक की देश की बहुसंख्यक आबादी में बढती साधनहीनता ,बढती बेकारी बेरोजगारी और उपर से बढती मंहगाई की मार के साथ बढाये जा रहे बहुप्रचारित आर्थिक विकास को रोका नही जाता |उनकी दिशा को बदला नही जाता |विकास के धनाढ्य एवं उच्चवर्गीय चरित्र को छोड़ा नही जाता |धनाढ्य एवं उच्च वर्गियो को ज्यादा से ज्यादा पाने -खाने की बुनयादी नीतियों को वापस लिया और खत्म नही किया जाता | बहुसंख्यक जनसाधारण के हितो में धनाढ्य एवं उच्च हिस्सों के स्वार्थी हितो अधिकारों को काटा -घटाया नही जाता |विदेशी नीतियों और उसके जरिये विदेशी या बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को देश की श्रम सम्पदा के लूटपाट के पुराने व नये संकुचित व खुले अधिकारों को घटाकर शून्य नही किया जाता |
यह देश से भूख व कुपोषण की बीमारी या कलंक के मिटाने के लिए अत्यंत आवश्यक है की अपरिहार्य है |इस बुनियादी कदम को उठाये बिना इसे राष्ट्रीय शर्म कहना या प्रचारित करना बेमानी है | ऐसे में मुझे फैज़ की लिखी एक नज्म याद आती है |
मां है रेशम के कारखाने में
बाप मसरूफ सूती मिल में है
कोख से मां की जब से निकला है
बच्चा खोली के काले दिल में है

जब यहाँ से निकल के जाएगा
कारखानों के काम आयेगा
अपने मजबूर पेट की खातिर
भूक सरमाये की बढ़ाएगा

हाथ सोने के फूल उगलेंगे
जिस्म चांदी का धन लुटाएगा
खिड़कियाँ होंगी बैंक की रौशन
खून इसका दिए जलायेगा

यह जो नन्हा है भोला भाला है
खूनीं सरमाये का निवाला है
पूछती है यह इसकी खामोशी
कोई मुझको बचाने वाला है!
-सुनील दत्ता पत्रकार
 09415370672
 

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