
बहुधा, यह देखने में आता है की सामान्य व्यक्तियों का उत्पीडन कानून और प्रक्रिया के नाम पर होता रहता है और असाधारण विशेषाधिकार प्राप्त उच्च न्यायालय आँख मूंदे रहते हैं लेकिन जैसे ही बड़ी-बड़ी कंपनियों, राजनेताओं, अफसरशाहों के मामले आते हैं तो उसमें प्रक्रिया यदि दोषपूर्ण हुई तो उसका लाभ उसको तुरंत मिलता साधारण व्यक्तियों के मामले में प्रक्रिया का पालन हो या न हो वह दंड का भागीदार हो जाता है। क्यूंकि न्याय की देवी की अब आँखें खुली हुई हैं और तराजू में पसंघा भी पैदा हो गया है। इसका इलाज वर्तमान व्यवस्था में मौजूद ही नहीं।
सुमन
लो क सं घ र्ष !
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